Part - 23. "तमोगुण का शातिर तत्व जानता है सतोगुण को कैसे अकर्मण्य बनाना "

Part - 23. "तमोगुण का शातिर तत्व जानता है सतोगुण को कैसे अकर्मण्य बनाना "

व्यवस्थित चिंतन विचारों की शक्ति का आधार है

हम तप के विषय पर हैं॥ तप एक चुनौती है॥ मनुष्य का व्यक्तित्व तमोगुण से ही उत्कर्ष प्राप्त करने के लिए उठता है॥ तमोगुण जल्दी से जाता नहीं है बाबू, स्वरूप बदल लेता है॥ सतोगुणी व्यक्ति की निष्क्रियता, सतोगुणी की ऐसी सज्जनता जो अनीति को राजमार्ग देती है, वह भी तमस ही है॥ यदि सतोगुणी जीव उसे सतोगुण जानकर के, यह विचार करता है कि मेरा उत्कर्ष हो रहा है, तो वह भ्रम में है॥ सतोगुणी जीव जब तक अपने सत्त्व की रक्षा के लिए सबल और सक्षम नहीं है तब तक उसका सतो किसी काम का नहीं॥ किसी भी दिन उसे कोई रजो अथवा तमो का प्रहार उसे परास्त कर देगा और वह छिन्न भिन्न हो जाएगा॥ प्रहार बाहर से हो अथवा भीतर से, क्योंकि अध्यात्म जगत में हम भीतर से बाहर आते हैं, पाश्चात्य समझ बाहर से भीतर जाती है पर हम भीतर से बाहर जाते हैं; तो प्रहार कहीं भी हो, भीतर अथवा बाहर, इसलिए सतोगुणी जीव विशेष रूप से अध्यात्म पथ का, उस पर दायित्व अधिक है॥ क्योंकि उसमें विवेक जाग गया है॥ ईश्वर के प्रकाश की निकटता को वह प्राप्त हो रहा है इसलिए इसमें उसका दायित्व अधिक बनता है उसकी जिम्मेवारी बढ़ जाती है कि वह अपने सतोगुण में आत्म उत्कर्ष प्राप्त करते हुए यह सुनिश्चित करे कि मेरा भीतर का और बाहर का वातावरण भी अनुकूल रहे, प्रतिकूल नहीं रहे॥ यदि सतोगुणी व्यक्ति की सज्जनता भीतर अथवा बाहर प्रतिकूलता को अवसर देती है तो वह सतोगुण नहीं है, वह तमो का प्रभाव है जो अभी गया नहीं है॥

आपने दुर्वासा ऋषि का नाम सुना है, जिनकी तपोभूमि मथुरा रही॥ दुर्वासा ऋषि के विषय में यह जाना जाता है कि वे बहुत जल्दी क्रोधित होते थे, वे क्रोधी थे, जबकि सत्य यह नहीं है॥ ब्रह्म ऋषियों का कथन है कि वे क्रोधी नहीं थे, बल्कि अपनी सही बात को सही स्वरूप में, अंग्रेजी का शब्द प्रयोग कर रहा हूँ बहुत सुन्दर शब्द लगेगा यहाँ; वे अपनी बात को Assertively कहते थे, he was assertive अर्थात अपनी बात को रखने में दम रखते थे॥ जिसको लगता था यह मेरे अनुकूल नहीं है वह कहता था कि ये तो क्रोधी हैं॥ किसी बात को आप अपनी पूरे बल से रखें पूरी शक्ति से बात रखें, कि नहीं यह अनुकूल है, और आप सामने वाले की बात नहीं मानते हुए, अपनी सही बात को बल देकर प्रस्तावित करें, तो सामने वाला कह सकता है कि यह तो क्रोधी व्यक्ति है, कहे॥ अत: तमो से सतो की रक्षा करना आवश्यक है और वह केवल तप से होती है॥

अध्यात्मिक साधक के लिए तप का सबसे बड़ा औचित्य क्या है? सतो लुंज-पुंज है, जमीन से उठा छोटा सा पौधा, जिसे कोई भी प्यार देकर चला जाएगा, तेज हवा चली तो गिर जाएगा॥ इसलिए सतो का पौधा या सतो का अस्तित्व लुंज-पुंज नहीं रहे, सशक्त हो, बलवान हो, इसके लिए तप आवश्यक है॥ तप सतो के भीतर की लुंज-पुंज अवस्था को सबल सक्षम बनाता है॥ सामान्यत: सतो पर जो प्रहार आते हैं अधिकांशत: तमो से ही आते हैं॥ सतो को, रजो अपना प्रभाव फिर भी कम दिखाता है, तमो बहुत अधिक दिखाता है क्योंकि तमो छद्म है, जबकि रजोगुण को छुपना नहीं आता॥ रजो तो जब आएगा खुलकर खेलेगा जबकि तमो छद्म है, छुपकर आता है रूप बदल कर आता है॥ तमो को हमने अभी तक कुछ जाना ही नहीं॥ तमो के विस्तृत स्वरूप को जान लें तो हमें तप के साथ प्रेेम हो जाएगा॥ तमो के छद्म रूप अत्यन्त घातक हैं॥ हाँ मैं तमो की कुछ बड़ाई भी कर चुका हूँ पहले सत्संग में निद्रा ईत्यादि के रूप में, कि शयन ईत्यादि तमो का आवश्यक स्वरूप है॥ पर आवश्यक रूप एक है अनावश्यक रूप हजार हैं॥

उदाहरण के लिए:
एक मेरा लड़का food industry से जुड़ा हुआ है, उसका बहुत अच्छे स्तर का काम है॥ कुछ समय पूर्व वह जब कोई उत्पाद नहीं बनाता था, तो चर्चा होती थी परामर्श होता था, मैं तो उसके विषय का टेक्निकल नहीं था पर वह मुझे कहता था 'सबसे खतरनाक चीज खाने पीने में जिसे सँभालना है वह दूध है anything made out of milk. आप सब कुछ manage कर लोगे, प्याज, टमाटर, आटा Processed Food इसे आप Processed Food बनाकर आप सुरक्षित करके रख सकते हो, भेज सकते हो पर जिसमें milk product आ गया, दूध मक्खन ईत्यादि वह कभी भी misfire कर सकता है very dangerous to handle. जबकि हम सेवन के लिए दूध जैसे उत्तम बहुत कम पदार्थों के विषय जानते हैं, शहद ईत्यादि॥ दूध कितना आवश्यक है और कितना पोषक है उसी प्रकार उसके पोषक तत्त्व की सामर्थ्य जानते हुए हमें तमो को भी जानना होगा और सतो को भी॥ इन दोनों तत्त्वों के अपने-अपने पोषक भाग हैं भाव हैं; भाग और भाव दोनो part & experience. पर इनके दोष वाले पक्ष भी हैं जिन्हें अवश्य जानना चाहिए अन्यथा आप केवल दुहाई देते रहोगे सतो सतो सतो, हम तो सतोगुणी है॥ सतोगुणी तो केवल अनीति को कहेगा आ जाओ, आ जाओ, सब कुछ आप ही हो बस, अराजकता को कहेगा, 'बस आप हो, हम तो अपने में भले'; कल को अपना ही अस्तित्व समाप्त हो जाएगा॥

इसलिए सतो का यह लुंज-पुंज होना misfire करता है॥ तमो के छद्म स्वरूप को यदि पहचाना नहीं, तप के द्वारा निरन्तर परास्त नहीं किया, तमो स्वरूप बदल कर के सतो को आभास करा देगा 'हम तो ठीक हैं न! हम तो ठीक हैं'॥ आवश्यक नहीं कि तमो हमारे भीतर हमारे माध्यम से व्यक्त हो, तमो हमारी आभा से भी व्यक्त हो सकता है॥ तमो क्या चेहरे से दिखेगा? नहीं, आभा अर्थात हमारा जो impact है हमारा जो प्रभाव बाहर जाता है, 'अरे यह तो कभी बोल ही नहीं सकता, इसकी हिम्मत ही नहीं बोल जाए'; जब तमो के मन में सतो के प्रति यह भाव आना आरम्भ हो जाए, तो समझ लो कि सतो ने अराजकता को मार्ग दे दिया॥ भीतर का तमो अथवा बाहर भीतर कहीं का भी, समझना बहुत आवश्यक है, उसे परास्त करने के लिए तप की आवश्यकता अनिवार्य है॥ अग्नि चाहिए, तप की अग्नि आवश्यक है और तप की अग्नि के बिना आप इस प्रकार के तत्त्वों को निर्मूल नहीं कर पाएँगे॥

'निराशी', 'निर्मम', 'विगतज्वरा':
- वे आक्रमण जिनके कारण जीव 'निराशी' न हो पाए, उन्हें तप की अग्नि ही भस्म करेगी
- वे आक्रमण जिनके कारण जीव 'निर्मम' न हो पाए, उन्हें तप की अग्नि ही भस्म करेगी
- वे आक्रमण जिनके कारण जीव 'विगतज्वरा' न हो पाए, उन्हें तप की अग्नि ही भस्म करेगी
'निराशी', 'निर्मम', 'विगतज्वरा' इनके शब्दार्थ मत लेना, जिस कारण से इन्हें कहा गया, उनका उल्लेख है पूर्व में बताया गया॥ जब मैं इन तीनों शब्दों को लूँ तो जो इनकी सम्भावनाएँ जो खतरनाक हैं, the vulnerable aspect, आप उन्हें समझना॥

केवल तप ही है जो सुनिश्चित करता है कि दुर्योधन को परास्त करते समय इसके 99 अन्य भाई, वे पीछे से आक्रमण नहीं करें, 360॰ की सुरक्षा चाहिए॥ आप सामने किसी से युद्ध कर रहे हो, कि मेरे अन्दर यह बुराई है, वह मेरा मुख्य दुर्योधन है, मुझे उसको परास्त करना है, बाकी 99 आसपास घेरकर खड़े हो गए तो ? उनसे सुरक्षा जिस अग्नि रेखा से होगी वह तप है॥ मेरा मानना है कि जो अग्नि रेखा, मैं भाव दे रहा हूँ, ग्रन्थ से छेड़छाड़ की मेरी क्षमता नहीं॥ जो अग्नि रेखा लक्ष्मण ने माँ सीता के आसपास खींची थी वह अशोक वाटिका तक भी वहीं थी, अन्यथा अतिक्रमण कभी भी हो जाता॥ माँ ने अतिक्रमण किया रावण उठा पाया, पर सम्भवत: वह भाव रूप पुन: उसी लक्ष्मण रेखा में चली गई॥ मैने एक भाव दिया मन में आया, स्वतन्त्र भाव आया॥ तप वह अग्नि रेखा है जिसमें फिर अतिक्रमण सम्भव नहीं होता intrsuion is not possible then, इसलिए तप आवश्यक है तप मनुष्य को सजग बनाता है vigil vigil vigil. सजग प्रतिपल सजग, मैं तप कर रहा हूँ कर रही हूँ, मैं संयम कर रहा हूँ कर रही हूँ, you are vigil आप सोते नहीं हो, आप तन्द्रा में नहीं जाते हो, you don't get into inertia. तप की सामर्थ्य है वह सजग बनाए रखता है तप एक चुनौती है जो भीतर उठने वाले समस्त छद्म स्वरूप तमोगुण के आक्रमणों को परास्त करती चली जाती है॥ क्योंकि तमोगुण एकदम से मानने वाला नहीं है जन्मों से आया है, वह रूप बदल-बदल कर, बदल-बदल कर, बदल-बदल कर सामने आना, जानता है; और आप स्वयं ही तो हैं जो उसे मार्ग देते रहे॥ उसे पता है कि वह सब कुछ जो आज तक चलता रहा है मैं उसे चलाऊँगा परन्तु आपके तप की अग्नि रेखा आपके आसपास एक जाजवल्यमान प्रचण्ड दर्प को प्रगट करती है उसके बाद तमोगुण के आक्रमण की सम्भावनाएँ क्षीण होनी आरम्भ हो जाती हैं॥

क्योंकि सतो में अस्तित्व नहीं है, सतो में अस्तित्व आना बाकी है॥ किसका ? ईश्वरीय प्रकाश का जो अभी आया नहीं, अभी तो केवल ईश्वरीय प्रकाश केवल झलकने मात्र से ही हम सतो हुए॥ इसलिए वह तो परास्त नहीं किया जा सकता, वह तो अजेय है संजय है उसे आप परास्त नहीं कर पाओगे॥ पर जब तक वह अवस्था नहीं आ जाती तब तक तमोगुण के बदलते छद्म स्वरूपों के प्रति you are vulnerable. तमोगुण सबसे पहले किसमें प्रवेश करता है शरीर में॥ मन नहीं उठने का, आज नहीं, और फिर जब शरीर से उसे आप पार पा लेते हो तो उसके बाद आपके स्वभाव में आता है; आज नहीं, बस आज नहीं, मेरा मन नहीं है॥ और जब आप सब कुछ पार कर जाते हो, शरीर को भी स्वभाव को भी अर्थात मन को भी, फिर वह घुसता है एक वायरस बनकर आपके विवेक में आपकी wisdom में भी चला जाता है और फिर ऐसे-ऐसे तर्क प्रस्तुत करता है जिन्हें आप सहजता से काट भी न सको, तप वहाँ सुरक्षा करता है॥ उसके उस वायरस पक्ष से भी सुरक्षा करता है॥ इसलिए तप आवश्यक है और तुम्हें अपने तप निर्धारित करने चाहिए॥ जीवन में जैसे-जैसे तप की अभिवृद्धि होगी वैसे-वैसे आत्म उत्कर्ष में सबलता आएगी॥ जैसे-जैसे तप जीवन में से जाता जाएगा निर्बलता आती जाएगी, अराजकता अपनी चादर ओढ़ा देगी और तुम्हें तथाकथित भला व्यक्ति, तथाकथित जो अपने में ही मस्त है, जो अपने ऊपर होने वाले अत्याचार को भी प्रताड़ना को भी यह मान लेता है 'मुझे वहन करना है'॥

तप की प्रचण्ड अग्नि के केवल दर्शन मात्र से ही तमोगुण भाग जाता है; इस भाव का स्मरण करो॥

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