गहरी शांति चेतना के प्रवाह में सघन सक्रियता है

गहरी शांति चेतना के प्रवाह में सघन सक्रियता है

गहरी शान्ति पूर्ण रचनात्मक सक्रियता है, 'आकर्षक सक्रियता'॥ साधक का समस्त अस्तित्व अपने ही भीतर मन्त्रमुग्ध होकर के बँध जाता है॥ बाहर आने का मन न होना, अपने स्वरूप से ही मन्त्रमुग्ध हो जाना, आत्मरति जिसे आदिगुरू मुनि वेदव्यास भगवद गीता में आतमरति के नाम से भी सम्बोधित करते हैं, स्वरूप सुख के नाम से भी ज्ञानियों ने कहा है॥ यह कहने में निष्क्रियता है परन्तु अत्यन्त उच्च स्तरीय सक्रियता है॥ सजगता, चेतना के प्रवाह में अनेकों अनजाने सत्यों पर बोध प्राप्त करती है॥ सतही बुद्धि the surface mind वह भले ही एकाएक कुछ समझ नहीं पाए कि इस गहरी शान्ति में कौन सी सक्रियता थी॥ कौन सा नया सत्य मुझे ज्ञात हुआ, वह नहीं पकड़ पाएगी॥ पर यह सत्य है कि ध्यान की गहरी शान्ति में प्राप्त चेतना की सक्रियता के द्वारा जीवन के अनेकों विषयो पर, जो वर्तमान में हैं और जो अनजाने विषय हैं, उन पर बहुत कुछ धीरे-धीरे समझ रूप ज्ञात होने लगता है a deep understanding. साधक कहने लगता है I know, उससे पूछा जाए how do you know वह नहीं बता पाएगा॥

ये विषय सामने इसलिए नहीं आते क्योंकि इसका कोई विश्लेषण कोई audit नहीं होता॥ आप साधना करते जाते हो शान्ति को आनन्द स्वरूप आप अनुभव करते हो॥ एक कदम पीछे आकर कहूँ तो भोगते हो, शान्ति को आनन्द स्वरूप अनुभव करके आप साधना करते रहते हो॥ परन्तु कभी इस बात का कोई विश्लेषण, कोई ऑडिट नहीं हो पाता कि कौन से नए सत्य मुझे अब समझ आने आरम्भ हो गए हैं और वे कैसे हुए हैं इसका ऑडिट नहीं होता, हो भी नहीं सकता॥ यदा-कदा ठिठक कर साधक को अवश्य लगता है कि यह मुझे शायद अभी पता लगा है॥ वह स्रोत नहीं ढूँढ पाता कहीं सुना होगा, कहीं पढ़ लिया होगा, किन्तु ऐसा नहीं है॥ जब मनुष्य का आत्म विश्लेषण आगे बढ़ता है तो उसे पता लगना आरम्भ हो जाता है कि मेरी सजगता में अगर कोई नया विकास कोई नई उपलब्धि आई है तो कहाँ से आई है॥ तब पता लगता है कि चेतना के प्रवाह की सक्रियता द्वारा उस यात्रा द्वारा मुझे नए सत्य भी प्राप्त हुए हैं जो ध्यान में ही हुए थे॥

अत: ध्यान निष्क्रियता नहीं है जिसे शान्ति कहकर भीतर मन्त्रमुग्ध हो, आकर्षित हो हम ठहर गया सा अनुभव करते हैं वह ठहर गया सा नहीं है॥ वह ठहर कर के हमने किसी विराट क्षेत्र में अपनी सक्रियता को बढ़ा दिया है॥

लैपटॉप के सामने बैठा व्यक्ति स्क्रीन पर टकटकी लगाकर काम करता, मैंने प्राय: सुना है work from home करते हैं॥ जिन बच्चों को युवा बच्चों को पीछे मिला था, work from home करते हैं॥ जिनका अभी विवाह नहीं हुआ, उनकी माताएँ अभी उन पर पूरा अधिकार रखती है॥ उनका अधिकार तो सदा रहता है पर उस समय अधिक होता है॥ उन माताओं ने बच्चों को कहना आरम्भ कर दिया 'तुम काम भी करोगे या सारा दिन इसी के सामने बैठे रहोगे?'; तो वे समझाने की चेष्टा करते हैं इसके सामने बैठना ही हमारा काम है॥

ध्यान के अन्तर्गत प्राप्त गहरी शान्ति जिसमें कोई धारणा का प्रवाह नहीं होता, केवल एक स्थिरता होती है, वह चेतना के प्रवाह की बहुत बड़ी सक्रियता है॥ उस चेतना के प्रवाह की सक्रियता द्वारा ही अपने अन्तर्मन में नए-नए परिमार्जन change होते हैं और नए-नए सत्य भी प्राप्त होते हैं॥ क्योंकि ब्रह्म मुहुर्त्त के ध्यान के उपरान्त, हमारा यह सत्संग प्रतिदिन होता है, premier तो बाद में होते हैं; सबसे महत्त्वपूर्ण पल यही है यह जानने का कि मेरे भीतर अभी भी जो आकर्षण सा बना हुआ है, वह एक प्रकार से अभी एक कदम मेरा अन्तर्गजगत की यात्रा में है॥ उस चेतना के प्रवाह से मैं अभी बाहर नहीं आया / नहीं आई हूँ॥ कुछ साधकों ने कहा 1 घण्टा कम है, कम से कम 2-3 घण्टे की साधना तो होनी चाहिए, भाव अच्छा है पर व्यावहारिक नहीं है उसे व्यावहारिक भी रखना आवश्यक है॥

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