"साधक का उत्कर्ष है ध्यान में गहरी शांति का अनुभव "

"साधक का उत्कर्ष है ध्यान में गहरी शांति का अनुभव "

ॐ की साधना अनजाने स्वरूप में ही साधक को ब्रह्माण्ड के मूल से जोड़ देती है, सिद्धों ने ऐसा कहा है॥ सजगता को ऐसा कुछ अनुभव तो नहीं होता, कि कुछ ऐसा विचित्र अनुभव हो; सजगता केवल स्थिरता और शान्ति को अनुभव करती है॥ पर मूलत: सजगता की अनजानी परतें, वे कहीं न कहीं ब्रह्माण्डीय सत्ता के सान्निध्य में आती हैं॥ आत्म उत्कर्ष उतना न हो पाने के कारण प्रत्यक्ष अनुभव में कुछ विशेष उतना नहीं आ पाता, केवल शान्ति और स्थिरता अनुभव में आती है॥ हम कभी गम्भीरता से यह जान नहीं पाते जिस शान्ति की चाह में जीव भटकता फिरता है, अंग्रेजी में कहते हैं at the end of the day सब पाकर भी शान्ति चाहता है॥ वह इस साधना के उपरान्त, वह एक अनुभूति होती है भले ही चिरस्थाई नहीं होती, does not stay for long, पर वह एक अनुभूति होती है॥

मनुष्य को चुप्पी और स्थिरता, 'चुप्पी अर्थात केवल न बोलना', 'स्थिरता अर्थात एक विषय पर टिक जाना'; यह तो कई प्रकार से भी अनुभव में आ जाता है॥ पर जिसे गहरी शान्ति जिसकी शब्दों में व्याख्याएँ ही नहीं हैं, वह उसे इस प्रकार की साधना के उपरान्त मिलती है॥ मनुष्य का विवेक, wisdom प्रज्ञा, जागृत करने में इस शान्ति का बहुत बड़ा योगदान है॥ शान्त मस्तिष्क उन विषयों को, अथवा किसी भी विषय के उन पक्षों को भी जानने लगता है जो अन्यथा पूर्वाग्रह obstinacy predetermination में सोचना ही नहीं चाहता॥ इसीलिए कहते हैं किसी को अगर शान्त कर पाएँ तो धीरे-धीरे उसकी बुद्धि भी विवेकी होनी आरम्भ हो जाएगी॥ अत: ॐकार की साधना के उपरान्त आई शान्ति अनमोल है॥ 'अनमोल' कोई मूल्य ही नहीं है आँका ही नहीं जा सकता, कोई भाव नहीं लगा सकता, rate कितना है अनुमान नहीं लगाया जा सकता, इसलिए अनमोल कहते हैं॥ अमूल्य मत कहना - अमूल्य शब्द उल्टा है धेले का नहीं॥ 'अनमोल', अनमोल है जिसका कोई मूल्य नहीं लगाया जा सकता॥

अत: यह प्राप्त शान्ति सम्पदा है ब्रह्माण्डीय सम्पदा है॥ इस ब्रह्माण्डीय सम्पदा को अध्यात्म पथ के साधक इसका रसास्वादन करते हैं और इसी के द्वारा आत्म उत्कर्ष को निरन्तर प्राप्त भी होते रहते हैं॥

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