सृष्टि के क्रम में अगर आप सोचने लगो की ब्रह्म यह सभी कुछ क्यों कर रहा है। इसका उत्तर ना आज तक किसी के पास है, और ना ही कभी प्राप्त होगा। इस बात का समाधान तो मिलता है कि सभी कुछ कैसे हो रहा है, क्यों? का उत्तर किसी के पास नहीं है, यह तो खेल है। जैसे-जैसे हम आर्ष ग्रंथो का अध्ययन करते हैं। बुद्धि परिष्कृत होती है।तभी बात समझ में आती है कि यह एक खेल है।
उसमें कष्ट भी एक पात्र है, सुख भी एक पात्र है,मोह भी एक पात्र है। यह जितने भाव है सब पात्र हैं। यह सब उस परमपिता परमात्मा के अधीन खेलते है। जब उसका संकल्प बदलता है तब सब कुछ बदल जाता है। जब काल अंधेरा होता है तो जितनी भी सत् प्रवृतियाँ है ,सभी सत् प्रवृत्तियों को दबना पड़ता है। सभी सकारात्मक शक्तियों को दबना पड़ता है। जब काल का प्रवाह पलट जाता है तो सभी सत् प्रवृत्तियों को हवा मिलती है, जागरण मिलता है, सभी सकारात्मक शक्तियां जाग उठती है। उनका वर्चस्व बढ़ता है।
यह कभी नकारात्मक तो कभी सकारात्मक, कभी देव तो कभी असुर यह सारा खेल उसी के संकल्प के अंतर्गत चल रहा है। यह उसका खेल है, हम अपने व्यक्तिगत स्तर पर जो भी कहें सुख, दुख ,पीड़ा कष्ट जो भी कहें वह है, पर जैसे-जैसे ऊपर उठकर अनुभव करो तो उसका खेल समझ में आता है। यह भाव सामान्य जीव के धरातल पर मन नहीं मानता है। जिसको भी पीड़ा लगी हो, जिसको वेदना हो वह कहेगा की भाड़ में गया किसी का खेल मुझे तो वेदना है। वह ठीक ही कह रहा है और उसे यह कहना भी यही चाहिए। पर जैसे ही आत्मोत्कर्ष प्राप्त होगा और वही जीव तब अनुभव करेगा तो पाएगा कि यह सभी कुछ खेल है, यह केवल खेल ही है।
अब जो काल की करवट है उसमें सब सकारात्मक शक्तियां ब्रह्म का संकल्प है। अभी वह बल प्राप्त करेगी, कर रही है पर अभी समय है, यह जब काल नहीं था तो भी सत् प्रवृत्तियों के बीज सुरक्षित पड़े थे पर प्रस्फुटित और अंकुरित नहीं हो रहे थे। बीज तो थे, बीज सदा ही रहेंगे। दोनों प्रकार के बीज सदा रहेंगे, सकारात्मक भी और नकारात्मक भी । और जैसे-जैसे काल करवट लेगा तब सकारात्मक शक्तियों को बल प्राप्त होगा। आध्यात्मिक वर्चस्व का बल वर्धन होगा। मनुष्य के कल्याण के प्रवाह उठेंगे, भले ही इसमें अभी थोड़ा समय और लगेगा। उस समय को तुम परिवर्तन की दृष्टि से देखना। केवल अपने आयु के अनुरूप मत देखना और केवल अपने व्यक्तिगत स्तर पर मत देखना, बड़े स्तर पर देखना और तुम्हें लगेगा की वर्तमान काल में सकारात्मक शक्तियों को बल प्राप्त हो चुका है। देवासुर संग्राम में नकारात्मकता को पीछे हटना पड़ रहा है। धीरे-धीरे सकारात्मकता आगे आ रही है।यह सकारात्मक परिवर्तन प्रत्येक क्षेत्र में हो रहा है। सामान्य मनुष्य की सोच से ले कर बड़े निर्णयों तक प्रत्येक स्थान पर प्रभाव आ रहा है। आप विचार करना यह भाव यूं ही नहीं व्यक्त किया गया है।