ओम के गुंजन में ‘ म ’ अक्षर का गुंजन सामान्य साधना में करने के लिए वर्जित किया जाता है। इसका मुख्य कारण है कि ‘ म ’ अक्षर से ज्ञानियों के मतानुसार और थोड़े बहुत अनुभव से भी मैं कह सकता हूं वैराग्य की वृद्धि, अनासक्ति की वृत्ति बहुत गति से विकसित होना आरंभ हो जाती है। ‘ म ’ अक्षर का गुंजन इसलिए वर्जित है चूँकि बहुत सारे निर्धारित दायित्व जीवन में हम सब को निभाने है। अगर विरक्ति हो जाएगी और हम दायित्व से विमुख हो जाए हमारे आवश्यक कर्म बंधन जिनका क्षय होना आवश्यक है, बंधन के द्वारा वह उसके स्थान पर और अधिक प्रगाढ़ हो जाएंगे अर्थात बंधन और बंध जाएंगे। इसलिए आवश्यक है कि हम वैराग्य विरक्ति और आसक्ति का ऐसा व्यवहारिक स्वरूप अपने अंदर विकसित करें जिससे हमारे जीवन का कोई दायित्व छूटे नहीं। ऐसा अनेक बार अनुभव में आया की बहुत सारी श्रेष्ठ आत्माएं जो मोक्ष के द्वार पर खड़े होकर भी जन्म लेकर के उन्हें वापस आना पड़ता है। ऐसा क्यों ? ऐसा इसलिए की ईश्वर की प्रकृति के नियम है उनको बदला नहीं जा सकता, जिसके जिस - जिस के प्रति जो दायित्व है उसे निभाने बड़े बड़ों को आना पड़ता है। अतः आवश्यक है कि जितने निर्धारित दायित्व है चाहे वह आजीविका उपार्जन, व्यापार, नौकरी, परिवार पालन, इत्यादि इन सभी उपरोक्त के माध्यम से मनुष्य को अपने दायित्व का निर्वाह करना कोई लौकिक अर्थात सांसारिक विषय नहीं है। यह विशुद्ध अध्यात्मिक विषय है। अध्यात्मिक विषय इसलिए चूँकि इसके निर्वहन के बिना जीव की आध्यात्मिक उन्नति नहीं है बाबू।
दायित्वों से मुख मोड़ कर पीछे हट जाने वाले मुक्त नहीं होते इसीलिए ‘ म ’ अक्षर की साधना पर बल नहीं दिया जाता है। हां यह ठीक है की उसे नियंत्रित स्वरूप में अवश्य कर सकते हैं, जिससे की इसके उच्चारण- गुंजन के प्रभाव से हमारे मस्तिष्क के स्नायु मंडल में इसका प्रभाव बहुत गहरी स्थिरता और शांति की स्थापना कर जाए। देखो साधक नाद योग एक बहुत बड़ा क्षेत्र है ,बाबू यह साधना कोई छोटा क्षेत्र नहीं है।
ध्यान और नाद में अनेकों अन्य प्रकार के प्रयोग होते हैं पर उन सब प्रयोगों के विषय में चर्चा हम तीसरे और चौथे स्तर की साधना में ही करेंगे। जो लोग 1 वर्ष से जुड़े थे उनमें से अनेको साधक जिन्होनें 150 दिन पूर्ण कर लिए वह अपनी इच्छा से समुन्नत स्तर की साधना में आ गए। अब वह पूरा साल इस समुन्नत स्तर की साधना को करने के बाद आगे स्थापक स्तर में जाएंगे। स्थापक स्तर के उपरांत वह अपनी रूचि अनुसार ऐसी साधनाओं का चयन करेंगें जो विशिष्ट स्तर की हैं। ऐसी विशेष साधनाएं जो मैं स्वयं जानता हूं पर उनमें मेरी किसी प्रकार की कोई सिद्ध नहीं। मैं स्वयं तो गायत्री और विज्ञानमय कोष की युक्ति युक्त साधना में आगे चला गया। पर मान लो की कोई साधक नाद योग में आगे जाना चाहे, कोई प्राण के क्षेत्र में आगे जाना चाहे, तो कोई प्रकाश में आगे जाना चाहे, और कोई चाहे की मैं विज्ञानमय कोष की युक्ति युक्त साधना में आगे बड़ जाऊ।
ऐसे में तीसरे स्तर के उपरान्त फिर उन्हें उनकी इच्छा अनुरूप उस विशेष धारा में आगे बढ़ा दिया जाएगा और उसका उन्हें मार्गदर्शन भी मिलता रहेगा। इसीलिए अभी एक सामान्य परिचय ही दिया जा रहा है।