(ट्रांसक्रिप्शन सुजाता केलकर, शुद्धि अध्यापक के द्वारा)
एक ढिलपूल मन और संकल्पित मन मे मूल अंतर् है गंभीरता का पूर्णतः अभाव। गंभीरता का भाव ही ढिलपूल मन है और जिसका मन गंभीर है वही संकल्पित है। सामन्यतः देखा गया है की अनेकों लोग संकल्पित मन के अभाव में केवल रोते ही रहते हैं, हालाँकि उनका रोते रहना और यह कहते चले जाना कि "हमसे नहीं होगा", यह बातें केवल सतही ही हैं। ऐसे रोते चले जाने से कोई लाभ कभी भी निकलने वाला नहीं है।
सत्य तो यह है की अपने जीवन और उसके महत्वपूर्ण उद्देश्य के प्रति गंभीरता का अभाव होने के कारण बहुत से लोग ऐसी अवस्था में भी एक विचित्र प्रकार का रस लेना आरम्भ कर देते हैं और सहानुभूति बटोरने का कार्य करने लगते हैं। वास्तविकता तो यही है की संकल्प के अभाव में जीवन का छोटे से छोटा उद्देश्य पूरा करने में ऐसे जीव की जान निकल जाती है। सदा अपने ही उपर एक संदेह बना रहता है। ऐसा जीव स्वयं ही अपने जीवन के हित के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा बन जाता है।
जब तक व्यक्ति स्वयं को कड़ाई से नहीं लेगा तब तक जान लेना चाहिए की वह कभी भी जीवन के महत्वपूर्ण उद्देश्यों के प्रति संकल्पित नहीं होगा और एक कदम भी उन पर कभी नहीं उठा पाएगा। संकल्प शक्ति का विषय केवल मन्त्र अनुष्ठान तक ही मात्र सीमित नहीं जानना चाहिए अपितु जीवन के प्रत्येक विषय में उपलब्धि हेतु संकल्प शक्ति का विद्द्यमान होना अनिवार्य है। कोई भी संकल्प उठाने से पूर्व केवल इसी भाव में विचरते चले जाना की मेरा संकल्प पूर्ण नहीं हुआ तो क्या होगा ? मान लो की तुम कोई संकल्प उठाओ और उसे पूरा नहीं कर पाओ, जैसे की नवरात्री में अनुष्ठान का ही संकल्प हो; तो क्या होगा ? भले ही अधूरे संकल्प का कारण कुछ भी रहा हो। कुछ नहीं होगा, केवल तुम्हारा निर्धारित उद्देश्य ही तो पूरा नहीं होगा। पर उस हार से भी एक चुनौती उठ कर सामने आएगी जो तुम्हे अगली बार पूरी शक्ति के साथ पुनः प्रयास करने हेतु बल प्रदान करेगी। इसमें किसी प्रकार का कोई पाप नहीं लगेगा, आश्वस्त रहो।
मनुष्य जब तक पूरी गंभीरता से अपने आप के साथ संवाद नहीं करता तब तक उसके संकल्प की प्रचंड शक्ति जागृत नहीं हो सकती है, और इस संकल्प शक्ति के अभाव में कोई भी सफलता भौतिक अथवा आध्यत्मिक क्षेत्र, दोनों मे नहीं मिलती। इसलिए हे साधक, संकल्पित भाव से अपने आप को गंभीरता से लेते हुए अपने आप से बात करते हुए अपने को तैयार करो। कमर कस लो ; कमर कस लो, इसका अर्थ है की अपने मणिपुर से (जो नाभिकमल का चक्र है) शक्ति को अर्जित करना। भीतर के अग्नितत्व को जागृत करना और बड़े उद्देश्य हेतु संकल्प लेना। जो साधक मंत्र का अनुष्ठान लेकर उसे पूरा करता है उसे प्राप्त होने वाले लाभ केवल अध्यात्मिक स्तर तक ही सीमित नहीं हैं अपितु उसके लौकिक जीवन में भी एक सुनिश्चितता का अवतरण होता है। उसके निर्णय लेने की क्षमता में एक स्पष्ट परिवर्तन दिखाई देने लगता है। ढिलपूल मन जो अन्यथा अनिर्णय की अवस्था में झूलते हुए कहीं नहीं पहुँचता था वह अब संकल्प शक्ति के अवतरण से अपने अस्तित्व पर अधिकार अनुभव करने लगता है।