ट्रांसक्रिप्शन अशोक सत्यमेव
महाचेतना का एक बड़ा विलक्षण सौंदर्य है॥ रूप अपने भाव के अनुसार आप निश्चित करते हो, वह तदनुरूप ढल करके आपको सम्पर्क करती है॥ महाचेतना में हम जिस किसी भी धारा अर्थात किसी ईष्ट अथवा किसी ब्रह्म ऋषि, जब इनकी चेतना के सम्पर्क में आना चाहते हैं, आँख बंद करके हम उनका स्मरण करते हैं॥ प्रथम सम्पर्क महा चेतना से ही है क्योंकि सब कुछ महाचेतना में ही है॥ और महाचेतना के उस प्राथमिक सम्पर्क से हमारी इच्छा अनुसार फिर चेतना में सम्पर्क आगे बढ़ते हैं॥ जितने सघन हम अपने भीतर होते हैं उतनी ही गति से हम उस विशेष चेतना के सम्पर्क में आ जाते हैं॥ वह चाहे इष्ट हो, ब्रह्म ऋषि हो॥ जो कुछ कार्य होना हमारे भीतर, क्योंकि यकायक आँख बंद करके, इच्छा तो होती है कि आज मैं व्यास की चेतना के सम्पर्क में आ जाऊँ॥ उदाहरण दे रहा हूँ केवल समझाने के लिए॥ हम आँख बंद करके व्यास का भाव तो मन में लाते हैं, पर हमारी एक लौ नहीं लग पाती॥ एक तार, Focus, Concentration, एक तार नहीं हो पाती॥ आँख बंद करने के उपरान्त भी जिस आसन पर भी हम हैं हम चाहते हैं, इस समय आदि गुरु मुनि वेद व्यास की महाचेतना के सम्पर्क में आएँ, यह चाहत है॥ पर अपने भीतर की सजगता में यह चाहत अभी लुंज-पुंज है, अर्थात् weak very weak, कमजोर है, अभी इसमें सबलता नहीं है॥
छोटा बच्चा उठाते समय सबसे पहले क्या ध्यान रखते हैं? अपने हाथ का सामान्यत: बाएं हाथ का, ध्यान रखते हैं एक साथ उसके सिर और कंधे से नीचे आए जिससे सिर उसका ढलक नहीं जाए॥ क्योंकि उसका सिर अभी सँभला नहीं है॥ यही कुछ हमारी भीतर की सजगता का भी हाल होता है॥ जब हम बैठकर के किसी विशेष चेतना के सम्पर्क में आना चाहते हैं चाहे इष्ट अथवा ब्रह्मऋषि॥ लुंज-पुंज सजगता चाहती तो है, पर एक तार नहीं हो पाती, लौ नहीं लग पाती टिक नहीं पाती, सबल नहीं हो पाती॥ जिसके कारण अगर आप 10 मिनट भी बैठे तो 10 मिनट में सोचते होगे, जैसे नींद की झपकियाँ आती है वैसे ही आपको अनुभव होगा जैसे आपकी लौ लगने की झपकियाँ लग रही हैं॥ झपकी समझते हो? touch & come back, छू के वापस आना॥ आपकी भीतर की लौ, उस चेतना को एक तार छू के वापिस आएगी, पर आप स्थिर होकर उस चेतना के साथ सम्पर्क नहीं साध पाओगे॥ तो क्या छोड़ देना चाहिए? फिर इसके अतिरिक्त और क्या करना चाहिए? बाकी तो आप पूरे जीवन में कर ही रहे हो, आत्म परिष्कार तो हो रहा है इसमें कोई संदेह नहीं है॥
मैं अनुभव से कह सकता हूँ, जिस दिन मैं भी बाहर से कोई समाचार बहुत बटोर लेता हूँ॥ समाचारों में एक रुचि बनी हुई है शुरू से, न्यूज़ से ongoing news से, लेना-देना कुछ नहीं होता न हस्तक्षेप करने की क्षमता, पर एक रुचि बनी होती है॥ जिस दिन बहुत सघनता से देख लेता हूँ उस दिन अगर मैं चेष्टा करता हूं तो जो थोड़ी बहुत लौ कभी लग जाती है, उस दिन नहीं लगती॥ उस दिन वह न्यूज़ हावी होती है॥ हावी नहीं भी हो तो उस दिन आँख बंद करके अपना इष्ट स्थिर नहीं हो पाता, जैसे झपकियाँ लगती है, नींद की नहीं सम्पर्क की॥ अभी लगा? नहीं॥ अभी लगा? नहीं॥
मैंने देखा है, इसका प्रभाव पड़ता है॥ बाहर जीवन से बटोरे गए अनुभव का अंतर्जगत में प्रवेश करते ही प्रभाव आता है॥ जिन दिनों हम सामान्य रहते हैं, बहुत ज्यादा न्यूज़ जैसे अभी पीछे अफगानिस्तान की न्यूज़ बहुत चल रही थी, सुनने का मन होता था, देश पर प्रभाव, दुष्प्रभाव इत्यादि जानने का मन होता था॥ उन दिनों प्रभाव आता है, जैसे ही बैठो शरीर तो आसन लगा लेता है, पद्मासन लग जाएगा॥ तो शरीर ने लगाना है लगा लिया उसने और बाकी अंतर्जगत? वह अभी नहीं आया॥ अंतर्जगत अभी न्यूज़ में है, न्यूज़ याद आ रही है॥ उतना तो रोकने की क्षमता आ जाती है, रोक दो तो रुक जाएगी, नहीं आएगी, पर फिर लौ नहीं लगती॥ जो आप की विशिष्ट चेतना जिसके साथ सम्पर्क में जाना है उसके साथ वह एक तार नहीं हो पाती लौ नहीं लगती॥ Flicker करती है॥ आप अपने आपको बटोरते हो, गहरी श्वास लेकर छोड़ते हो, एक होने की चेष्टा करते हो, पर वह चेष्टा ही रह जाती है वह लौ नहीं लग पाती॥ आप भाव लाते हो बार-बार, स्मरण करते हो बार-बार, लौ नहीं लगती॥
इसकी तुलना में जिस दिन आपका बाहरी जीवन उतना उलझा नहीं है सब गतिविधियाँ सामान्य हैं, उस दिन बड़ी ही सहजता से आसन लगा, लगने के बाद आप अंतर्जगत में गए, तो थोड़ा बहुत हो गया॥ आप जिस विशेष चेतना के सम्पर्क में आना चाहो॥ यह अद्भुत सौन्दर्य है इसे कोई काट नहीं सकता बेटा, आप आओगे आप निश्चित रूप से आओगे॥ चाहे वह महाचेतना बुद्ध की है, महावीर की है, भगवान परशुराम की है, पाराशर की है, याज्ञवल्क्य की है व्यास की है जो वर्तमान में भी है इस मन्वंतर के अधिष्ठाता वही हैं कई लाख वर्षों से चल रहे हैं॥
आप आओगे, क्यों आओगे? क्योंकि यह महाचेतना का विधान है This is the constitution आप अपने भीतर जितना अपने आपको घनीभूत एकत्रित करते जाओगे और उस विशेष इच्छित चेतना के सम्पर्क में आने का प्रयास करते रहोगे, आप निश्चित उनकी चेतना के सम्पर्क में आओगे॥ तैयारी आपके पास होनी है॥ वह कहाँ है? वह ब्रह्मांड में कहीं भी है॥
मैं कहीं पढ़ रहा था, एक ब्रह्म ऋषि ने लिखा है, नाम भी दिए हुए थे, अभी उल्लेख नहीं करूँगा बात कहीं और चली जाएगी॥ जिनका उल्लेख था, आदि काल के बहुत पुराने नाम नहीं है, गत 500-700 वर्ष के भीतर के नाम हैं॥ वे सभी ब्रह्म ऋषि जो समस्त ब्रह्माण्डों में विचर रहे है, कहाँ किस कक्षा में हैं॥ ब्रह्मांड एक नहीं है, एक ही अंडा है ऐसा नहीं है, एक ही एलिप्टिकल फॉरमेशन नहीं है॥ कौन जानता है? अब वे ब्रह्म ऋषि कहाँ हैं? Life on other planets के विषय में आधुनिक विज्ञान तो अभी टोह नहीं ले पाया॥ Aliens हैं कि नहीं इस पर भी बड़े संदेह भ्रम खड़े करते हैं॥ प्राचीन भारतीय मनीषा तो लाखों वर्षों से जानती है कि पृथ्वी के अतिरिक्त अनन्त Infinite स्थानों पर जीवन है॥ कितने? Infinite. कहाँ-कहाँ है कुछ कह नहीं सकते, हरि अनन्त हरि कथा अनंता॥
वे कहीं भी हैं उनकी चेतना से आप सम्पर्क में आ जाओगे॥ एक बड़ा महासौंदर्य है महाचेतना का॥ महाचेतना का ब्रह्मांड अनन्त है, इंफिनिटी में भी कनेक्टिविटी है Infinity में भी Connectivity. आप उनके सम्पर्क में आओगे और उनके सम्पर्क में आने के बाद धीरे-धीरे ऐसा बहुत कुछ आपको पुष्ट हो जाएगा कि यह उन्हीं का प्रसाद है, अन्यथा नहीं आ सकता॥ मनुष्य की बुद्धि के बस का नहीं है॥ क्यों? मनुष्य की बुद्धि कुशाग्र है, बहुत High IQ है, पर एक सीमित धारा में खिचड़ियाँ पका सकती है, उससे आगे बुद्धि का क्षेत्र नहीं है॥ उससे आगे उस महाचेतना का क्षेत्र है॥ अभी हमारी बुद्धि उस सौन्दर्य की गहराई कहाँ नाप पाई जिसके द्वारा श्लोकों की रचनाएं हुई हैं॥ आप भगवद गीता को ले लीजिए, भगवद गीता का सौन्दर्य देखिए आप, उनके श्लोकों के punctuation जिस स्वरूप में हुई पड़ी है आप दांतों तले उंगलियां दबा लें॥ अगर आपको धीरे-धीरे समझ में आना शुरू हो जाए कि यह क्या लिखा किस रूप में लिख गए हैं आप आश्चर्यचकित रह जाओगे॥ अभी हम कितना जानते हैं बुद्धि को? उतना ही जितना वह बस कुछ चक्र रच लेती है॥ जब ऋषियों की मेधा को अनुभव करने जाओ, ठिठक जाता है व्यक्ति॥ The kind of depth they had.
प्राचीन भारतीय मनीषा को विश्व में मान्यता अभी उतनी नहीं मिली, ठीक है उनके अपने कारण होंगे न देने के॥ प्राचीन भारतीय मनीषा का सौन्दर्य - जब मैं प्राचीन भारतीय मनीषा कहता हूँ तो प्राचीन भारतीय मनीषा में इस धरती से उत्पन्न समस्त विश्वास की धाराएँ हैं जो सनातन में ही आई हुई क्रांतियाँ हैं जैन, बुद्ध, हमारा सिख धर्म इत्यादि सब हमारे ही भीतर की क्रांतियाँ हैं॥ Revolution of different times to revive certain things. सनातन प्रवाह है उसमें कई क्रांतियाँ हैं॥
अत: जिस विशिष्ट चेतना के सम्पर्क में आना चाहो, उसकी लौ लगा कर के आप आ सकते हो॥ मैंने 'सकते' शब्द कहा है आ 'जाओगे' नहीं कहा, मैंने 'आ सकते' कहा॥ लॉटरी के लिए टिकट छपती हैं हर टिकट पर पहला इनाम निकल सकता है तभी वह बिकती है॥ हर टिकट पर पहला इनाम आता नहीं है॥ इसलिए आप चेतना के द्वारा किसी के भी महाचेतना के, गोरक्षनाथ के अथवा जिन के भी सम्पर्क में आना चाहो, आ सकते हो॥ आ जाओगे और आ सकते हो के बीच की एक यात्रा है, जिसमें संघर्ष है साधना है, इसमें कोई सन्देह नहीं है॥
एकाएक सम्पर्क हो जाएगा, चुटकी बजाते ही? नहीं, चुटकी बजाने वालों को आध्यात्म छोड़कर कुछ और करना चाहिए॥ यह भ्रम है, तुरन्त सम्पर्क नहीं हो सकता॥ किसी ने कहा 'हो गया', कहा होगा॥ इस अल्पबुद्धि के पास तो इतना ज्ञान नहीं आया न उतनी क्षमता आई, उनके पास आई होगी॥ आप चेतना के सम्पर्क में आ सकते हो और आपको करना भी चाहिए॥ एक इष्ट, एक ब्रह्म ऋषि अपने लिए सुनिश्चित करके उसके सम्पर्क में आने के लिए चेष्टाएँ रहनी चाहिए॥ बुद्धि से परे की यात्रा के लिए अगर मन है तो