गहरी शान्ति साधक को उसके मूल अस्तित्व की ओर ले जाती है जो उसका वास्तविक आत्म स्वरूप है॥ गहरी शान्ति, पूर्ण व्यवस्थित शान्ति उस वास्तविक आत्म स्वरूप की ओर ले जाती है॥ आनन्द स्वत: ही उपजता है॥ जो है जो वही हो वैसा ही हो, तो स्वत: ही मनुष्य ही एक अद्भुत अवस्था को अनुभव करता है॥ खिन्नता, विघटन तब तक रहता है जब तक, जो वह नहीं है वह होने की चेष्टा करता है॥ ध्यान एक बहुत अद्भुत अवसर है जो हमें हमारे ही मूल से परिचित कराता है॥ भले ही थोड़ी देर के लिए, जब तक हम ध्यान की उस अवस्था में हैं; पर बटोरे गए वे थोड़े से क्षण बाकी के समस्त जीवन को प्रभावित करते हैं॥ दिन भर के जीवन पर इसका प्रभाव आता है, अवश्य आता है, स्वभाव में परिवर्तन आता है॥
स्वभाव का परिवर्तन बहुत बड़ी सिद्धि है, बहुत बड़ी सिद्धि है॥ हमने बहुत सिद्धियाँ सुनी हैं पर मेरा विचार यही है, मैंने इसको व्यक्तिगत विचार कहा है॥ वे सारी की सारी सिद्धियाँ आवश्यक नहीं कि उत्कर्ष कराएँ, वे गिरा भी सकती हैं॥ किन्तु स्वभाव में आया परिष्कार उत्कर्ष है, आत्म उत्कर्ष है जो गिरने नहीं देता॥ अत: ध्यान के उपरान्त स्थिरता और शान्ति की अनुभूति को सबसे बड़ी अनुभूति मानो॥ उसका प्रभाव स्वभाव में सबसे बड़ी सिद्धि के रूप में जानो॥ जो इतना करता है उसे समय रहते धीरे-धीरे अपने ही आत्म परिष्कार से और भी बहुत कुछ प्राप्त होता जाता है॥ जिसे हम कुछ नहीं मानते वह वास्तविक सिद्धि है हवा को हम कुछ मानते थे कया? नहीं मानते थे न? आज हवा का प्रदूषण विश्व भर में कितनी बड़ी चर्चा का विषय बन गया है? जिन दिनों जहाँ-जहाँ प्रदूषण अधिक हो वहाँ की जीवन की गतिविधियाँ पूरी तरह प्रभावित होती हैं, स्कूल बन्द, यह बन्द, वह बन्द, क्यों? हवा नहीं है उस रूप की कि बाहर जाया जाए॥ तब महत्त्व पता लगता है पानी का भी, नींद का भी॥
उसी प्रकार बटोरी गई शान्ति का प्रभाव भी स्वभाव के परिवर्तन के रूप में पता लगता है जिसे हम पहले कभी महत्त्व नहीं देते थे॥ कौतुक के वशीभूत बुद्धि, कौतुक sensationalism, कौतुक के वशीभूत बुद्धि कुछ भी जो सामान्य है, स्थिर है, उसे महत्त्व नहीं देती है॥ यही उसकी माया है उछालने की और ध्यान उसे मूल की ओर ले जाता है, कौतुक से पीछे करता है॥ इसे छोटी उपलब्धि मत जानना॥