Part - 10. हे संजय आज मेरे और कौरवों के योद्धाओं बीच क्या हुआ ?

Part - 10. हे संजय आज मेरे और कौरवों के योद्धाओं बीच क्या हुआ ?

हमारी श्रृंखला चल रही है - व्यवस्थित चिंतन विचारों की शक्ति का आधार है

विचारों की शक्ति से तात्पर्य प्रचण्ड प्राण ऊर्जा से है॥ प्राण ऊर्जा के द्वारा ही मनुष्य आध्यात्मिक अथवा लौकिक उत्कर्ष प्राप्त कर पाता है॥ प्राण ऊर्जा के अभाव में मनुष्य सूक्ष्म अस्तित्व बटोरे हुए भी लुंज पुंज रह जाता है॥ वह सार्थक नहीं रह पाता॥ न संकल्प में बल न साहस, न विचारों में एकाग्रता न भीतर कोई व्यवस्था न आत्म संयम कुछ नहीं॥ और इन सबके बिना आध्यात्मिक अथवा लौकिक प्रगति असम्भव है॥ भाग्य के आधार पर आधारित होकर केवल चलने वाले, उनके लिए यह मार्ग नहीं है॥ यह मार्ग मरजीवड़ों का है तपस्वियों का है जो आत्म संयम के द्वारा आत्मनियन्त्रण के द्वारा अपने भीतर प्रचण्ड ऊर्जा को जागृत कर बड़ी से बड़ी उपलब्धि प्राप्त कर सकें॥ अत: व्यवस्थित चिंतन विचारों की शक्ति का आधार यह विषय उतना छोटा नहीं इसकी गहराई अब धीरे-धीरे आपको आभास हो रहा है॥ और इसी के अन्तर्गत आती है मनोमय कोष की साधना चूँकि उपासना और साधना के द्वारा ही मनुष्य बहुत कुछ अपने भीतर उत्कर्ष प्राप्त करता है प्रगति Ascention| उपासना जप और ध्यान को कहते हैं॥ साधना आत्म परिष्कार हेतु , for your own individuality development. किए गए संघर्ष किए गए तप को कहते हैं॥ और आत्म परिष्कार में मनोमय कोष के अन्तर्गत प्राणमय कोष जुड़ा हुआ है, एक युक्ति लेकर के हम साधना आगे बढ़ाते हैं॥ और वह है श्रीमद भगवद गीता का प्रथम श्लोक॥

जिसका पर्याप्त प्रकाश यथा क्षमता आपको दिया गया॥ अब उस श्लोक को अपने जीवन में व्यावहारिक रूप से उतारना है॥ यूँ तो भगवद गीता के सौन्दर्य स्वरूप वह पहला श्लोक धृतराष्ट्र को दिया गया॥ पर हमें धृतराष्ट्र से उसे लेकर, छीनकर अपने हाथ में लेकर अपने आप से पूछना है; और श्लोक के शब्द थोड़े से बदल जाएँगे॥ प्राचीन भारतीय मनीषा की सनातन पद्धति में जन्म लेने का यही बहुत बड़ा एक ऐसा अवसर है जो सम्भवत: अन्यत्र कहीं उपलब्ध शायद नहीं है॥ वह यह कि हम अपने आत्म उत्कर्ष हेतु जिस रूप में भी चाहें श्रुति को समझ सकते हैं, उद्देश्य उत्कर्ष ही होना चाहिए॥ अत: इस श्लोक के शब्द इस प्रकार बदले भी जा सकते हैं॥ अपने लिए, केवल अपने लिए, मैं भगवद गीता का श्लोक नहीं बदल रहा, केवल उस श्लोक को एक युक्ति स्वरूप Technique स्वरूप अपने उत्कर्ष के लिए परिवर्तित करके अपने आत्म अवलोकन Self Introspection के लिए थोड़ा बदल रहा हूँ॥ श्लोक तो कहता है:

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवा: In the realms & regions of the duties जो होने योग्य है and in the realms & regions of actually dispensation जो कर्म का क्षेत्र है जो हो पाता है॥ धर्मक्षेत्रे - To do list, vital list, कुरुक्षेत्रे जो वास्तविकता में हो पाता है॥ जो हम सोचते हैं सब कहाँ हो पाता है॥ अगली पंक्ति है:

मामका पाण्डवाश्चैव किम कुर्वत संजय: मामका - मेरे, mine, पाण्डवाश्चैव - पाण्डवों के बीच में, किम कुर्वत संजय: - संजय जिसकी पराजय नहीं हो सकती, Beyond any defiance always victorious. और वह हम सबके भीतर बैठा है और बताता भी है गलत क्या ठीक क्या॥ हम उसे रौंद कर चले जाएँ, We tramp him under the feet वह अलग बात है॥ पर वह बोलता है संजय॥ संजय से पूछते हैं॥

श्लोक में हम परिवर्तन क्या करेंगे? पहली पंक्ति को हम छेड़ेंगे नहीं॥ दूसरी पंक्ति में हम बदलेंगे और बदल कर क्या करेंगे? क्योंकि अब यह पंक्ति हम बोल रहे हैं धृतराष्ट्र नहीं, इसलिए मामका - मेरे भीतर के योद्धा, जिसका उल्लेख पूर्व में मैं कर चुका हूँ॥

मामका कौरवाश्चैव किम कुर्वत संजय: मेरे योद्धाओं और कौरवों के बीच में क्या चल रहा है संजय? कौरव; जिसके विषय में मैने पर्याप्त रूप से बता दिया - दुर्योधन, जिसके लक्ष्य हीन हैं छोटे हैं॥ जिसके लक्ष्य हीन होते हैं, छोटे होते हैं उसके आसपास दु:शासन bad governance. सुशासन नहीं हो सकता॥ फिर उसके दुष्प्रभाव magnify होते हैं॥ एक जगह से उठते हैं एक narrow mindedness से from some promisquity एक संकीर्णता से उठता है दोष और फिर दोष आकार ले लेता है आकाश का॥ इसलिए कौरव सौ हैं॥ और पाण्डव तो केवल केशव के साथ हैं, सेना उतनी बड़ी नहीं है उनकी, वे पाण्डव केवल केशव के साथ हैं॥ और केशव के साथ पाण्डव कौन वे जो संकल्प रूप में हैं, वे जो भीतर की ऊर्जा शक्ति संकल्प रूप में हैं वे पाण्डव हैं जो न्याय के साथ हैं जो उत्कर्ष के साथ हैं वे पाण्डव हैं॥ केशव महाचेतना है और जिस तरफ केशव है विजय वहीं होगी॥

यह श्लोक अब हमें अपने आप में दोहराना है॥ यह श्लोक हम अपने आप में जब भी आत्म अवलोकन के लिए बैठें॥ बहुत से लोग रात्रि सोने से पूर्व करते हैं आत्म अवलोकन, आज का दिन कैसा रहा? आज कुरुक्षेत्र में क्या रहा? बाजी किसके हाथ लगी? मेरे पाण्डवों के? अर्थात जो मेरे करने योग्य है जीवन में, वह मैं आज कर पाया? एक जीवन दिन जी रहा हूँ॥ एक-एक बूँद से सागर बनता है, एक-एक दिन से जीवन बनता है तो एक दिनको अगर मैं जीवनदिन कह दूँ तो गलत नहीं है॥ मेरे द्वारा व्यतीत किया गया एक दिन एक जीवनदिन है॥ तो आज के मेरे जीवनदिन में संजय, ईमानदारी से बताओ, मामका कौरवाश्चैव ... फिर संजय बताएगा॥

साहब आज तो बाजी सारी कौरव मार गए॥ कौरवों का बहुत बड़ा योद्धा आया था कौन सा? काम टालने वाला - procrastination उस योद्धा ने आकर सारे पाण्डवों को सुला दिया और आज कुछ महत्त्वपूर्ण होने ही नहीं दिया, कल करेंगे॥ अच्छा? ऐसा हो गया? साहब आज तो आपके lethargy आ गई आलस्य आ गया, आलस्य ने सोचने ही नहीं दिया आपको और आज आपका ध्यान भटकाने के लिए कोई और छोटा विषय आ गया मनोरंजन स्वरूप आप उसी में उलझ कर रह गए॥ आज तो बाजी कौरव ही मारकर ले गए॥

यहाँ रोज कौरव बाजी मारकर ले जा रहे हैं, पाण्डव मेरे कहाँ हैं? यह प्रश्न साधक के अपने भीतर उपस्थित होगा॥ यह प्रश्न साधक के भीतर स्वत: उपस्थित होता है॥ कि मेरे भीतर सदैव बाजी मारने वाले ये कौरव ही मात्र क्यों हैं? पाण्डव कहाँ हैं? मेरे पाण्डव कहाँ हैं? मेरे भीतर की क्षमताएँ कहाँ हैं॥ जब केशव मेरे तरफ और बाजी कौरव मार जाएँ? केशव मेरी ओर हो, बाजी रोज कौरव मार जाएँ तो इसका अर्थ यह है कि पाण्डव कहीं कमजोर हैं॥ पाण्डवों में अभी उस प्रचण्ड संकल्प की कमी है॥ अर्थात पाण्डवों में अर्जुन ने गाण्डीव नहीं उठाया॥ वे चाहते तो हैं द्रौपदी के चीर हरण को बचाना॥ क्योंकि वहाँ तो चीर हरण एक बार सभा में हुआ, पर जीवन में तो चीर हरण Creative Resource, creative energy का प्रतिपल प्रतिदिन हो रहा है॥ अत: ऐसी अवस्था में हमें तो अपनी द्रौपदी की रक्षा करनी है॥ इसलिए क्या पाण्डव गाण्डीव छोड़कर बैठ सकते हैं? क्या पाण्डव किसी मोह में आसक्त हो सकते हैं? नहीं हो सकते, you can't afford to do that. इसीलिए कठोर प्रश्न है जो अपने आप से प्रतिदिन पूछना है॥ और इसमें पात्र तय हैं॥ तुम्हारे ही भीतर मंचन हो रहा है, धर्मक्षेत्र और कुरुक्षेत्र अन्यत्र नहीं तुम्हारे भीतर है॥ कौरव पाण्डव तुम्हारे भीतर हैं॥ केशव हृदय गुह्याम - तुम्हारे ही भीतर है॥ यदि ये सब मेरे ही भीतर हैं तो प्रश्न किसे उपस्थित करना और किसके प्रति करना है? मुझे अपने प्रति करना है॥ और जानने की चेष्टा करना क्यों ये कौरव जीत रहे हैं मेरे भीतर॥ मेरे पाण्डव क्यों हार रहे हैं?॥ यह प्रश्न मुझे झकझोरेगा और मुझे व्यवस्थित चिंतन के लिए प्रेरित करेगा॥ मैं विचारों की शक्ति की बात इसलिए नहीं करता क्योंकि वह तो एक outcome है परिणाम है, स्वत: होगा॥ चिंतन व्यवस्थित होगा तो विचारों में शक्ति आती जाएगी॥ मुझे मेरे हिस्से का कार्य करना है और इस प्रश्न से उसका मार्ग प्रशस्त होता है, कान खड़े होते हैं॥ जो सोया हुआ पड़ा है अहिल्या पड़ा है वह सजीव हो जाएगा॥ प्रतिदिन अगर यह प्रश्न भीतर खड़ा होता रहे कि हुआ क्या संजय? फिर कौरव बाजी मार गए? फिर कौरव बाजी मार गए? यह द्रौपदी का चीर हरण क्या सतत ही चलता रहेगा?

यह प्रश्न एक प्रचण्ड वेग को अग्नि को पैदा करेगा॥ अग्नि का प्रतीक कौन है पाण्डवों में? अर्जुन॥ कौन? अर्जुन॥ इसलिए उसी के गाण्डीव की चिंता है॥ अग्नि जागृत होगी तो सारे विकारों को भस्म करेगी॥ यह बात अभी समाप्त नहीं हुई॥

व्यवस्थित चिंतन विचारों की शक्ति का आधार है अगली कक्षा में इससे आगे

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