व्यवस्थित चिंतन विचारों की शक्ति का आधार है
दिखने में यह विषय बहुत सामान्य पर जरा सी गहराई में जाओ तो यह मार्ग पंचकोषी साधना में प्रथम चार कोषों को प्रभावित करता है॥ कहने को यह पंचकोषी साधना नहीं है पर इसका प्रभाव बहुत गहरा की अन्नमय कोष, प्राणमय कोष, मनोमय कोष, विज्ञानमय कोष इन चारों को, मनुष्य के अस्तित्व की काया कलेवर को, the 4 vital sheaths of human existence, स्थूल और सूक्ष्म, (पंचकोष तो सूक्ष्म है पर उसका स्थूल पक्ष भी है), सभी को प्रभावित करता है॥ उपासना और साधना के माध्यम से हम इस विषय पर आरूढ़ हुए, we embarked upon the subject.
उपासना में जप और ध्यान और साधना में आत्म परिष्कार, ज्ञान के द्वारा आत्म परिष्कार, मनन के द्वारा आत्म परिष्कार, तप के द्वारा आत्म परिष्कार॥ ज्ञान पर आधारित स्वयं का मूल्यांकन ही मनन है, आत्म दर्शन, आत्म अवलोकन ही मनन है॥ और फिर उस मनन में जो प्राप्त हो जो समझ में आए अपने विषय में जैसे कि दुर्योधन को पहचानना, और फिर उसे परास्त करने के लिए तप॥ उपासना और साधना के द्वारा हम यह पूरी साधना को पूरे उद्देश्य को पूरा करेंगे॥ दिखने में अति सामान्य है विषय पर अति गुह्य Esoteric. तप की श्रृंखला में हम आगे बढ़ते हैं, अब तप को सींचना होगा॥ मनुष्य कौतुक के स्वरूप तप आरम्भ तो करता है, चाहे वह कई बार अपने जीवन में लगातार होने वाली असफलता के परिणाम स्वरूप प्रायश्चित को भी तप मानकर अपनाता है, वह भी एक विधान है, पर आरम्भ तो बड़े कौतुक से होता है कोई भी तप, निभता नहीं है, निभता नहीं है॥ उसका कारण है क्योंकि जड़ जमाए हुए संस्कार एक चक्र बनकर के like a vicious cycle, they entrap, जकड़ लेते हैं छोड़ते नहीं॥ इसलिए आवश्यकता है कि यदि तप को सफल करना है तो अपने आप को सबल करना पड़ेगा॥ तप की सफलता तुम्हारी सबलता पर आधारित है॥
तो तुम अपने आप को सबल कैसे करो? अब इसमें ज्ञान और मनन का पक्ष बीच में आ गया॥ हम बिलकुल अपने विषय के राजमार्ग पर चल रहे हैं We are absolutely intact on the highway of our own subject, no deflect, no deviation. कोई भटकाव नहीं॥
मनन - मनन के लिए श्रीमद भगवद गीता अकाट्य The yogic psychology ये सब्द तो आधुनिक हैं पर केवल मनन हेतु ही जानों, इससे अधिक कुछ नहीं है॥ श्रीमद भगवद गीता के अध्याय 3 का श्लोक 30, इसे अन्य स्वरूपों में भी मैंने पढ़ाया है अनेक स्वरूपों में पर आज जिस स्वरूप में हम इसे ले रहे हैं वह हमारे विषय की सेवा हेतु है॥ हमारे चारों कोषों की साधना हेतु, हमारे व्यवस्थित चिंतन विचारों की शक्त का आधार हेतु, हमारे तप को सबलता देने हेतु, हमें सबल बनाने के लिए; श्लोक कहने को तो शब्दों में बहुत सरल रूप से कहता है:
मयि सर्वाणि कर्माणि - अर्थात मुझे अपने सारे कर्म समर्पित कर दे, सारे कर्म समर्पित कर दे, जितने भी तेरे कर्म है, जो भी तेरा कुछ है, चिंतन मनन तक मुझे समर्पित कर दे॥ मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्यअध्यात्म चेतसा।
संन्यस्य शब्द आया समर्पण के लिए, केवल और केवल अपने भीतर अवस्थित हो जा॥ अध्यात्म चेतसा: अपने ऊपर अपने अस्तित्व के ऊपर अपनी सजगता के ऊपर वहीं केन्द्रित Focus just upon yourself सारे कर्म मुझे समर्पित कर दे और मुझ पर focused हो जा॥
क्यों? क्यों आपको सारे कर्म समर्पित करूँ? यहाँ आप कौन हैं? कौन है केशव यहाँ? उद्देश्य Purpose, Objective. मुख्य उद्देश्य तो आत्मानो मोक्षार्थ जगत हिताय च है॥ पर यहाँ उद्देश्य तप भी है॥ एक बड़े उद्देश्य के मार्ग में कई पड़ाव आते हैं वह पड़ाव भी उद्देश्य से कम नहीं होते॥ उदाहरण हेतु मुझे चॉकलेट नहीं खानी है, यह परम उद्देश्य मान लिया पर उस परम उद्देश्य की पूर्त्ति में भी तो छोटे-छोटे उद्देश्य आएँगे कि जहाँ रेफरिजरेटर में अथवा कपबोर्ड भी घर में रखी होती है मुझे वहाँ से हटना है॥ या वहाँ नहीं जाना है॥ तो छोटे-छोटे उद्देश्यों की पूर्त्ति से बड़ा उद्देश्य पूरण होता है॥ तो यहाँ केशव उद्देश्य बन गया॥ अपने उद्देश्य को सर्वस्व समर्पित कर दो॥ मेरा उद्देश्य मेरा तप है क्योंकि उसी तप के परिष्कार से मैंने दुर्योधन को परास्त करने योग्य ऊर्जा को प्राप्त करना है॥
मुझे दुर्योधन को परास्त करने के लिए जिस ऊर्जा शक्ति की आवश्यकता है उसके लिए तप चाहिए और तप ही मेरा उद्देश्य है इसीलिए तप को ही मैं केशव मानता हूँ और तप ही को सब समर्पित करूँगा॥ इसीलिए मयै सर्वाणि अर्थात यह तप ही मेरा केशव है क्योंकि इसी से मैंने दुर्योधन को परास्त करना है, इसी के द्वारा मुझे अपनी उत्तरोत्तर प्रगति की ओर बढ़ना है॥ और अपने ऊपर अपने चल रहे प्रयास के ऊपर पूरी तरह केन्द्रित होना है॥ यह मेरा तप है॥ आज से मैंने वाणी का संयम किया, या आहार का संयम किया, या मैंने व्यवहार का संयम किया, या अर्थ का संयम किया या समय का संयम किया, अथवा किसी अन्य प्रकार का संयम किया, जो भी संयम लिया, जो भी तप लिया मैं बस उसी पर केन्द्रित हूँ॥ यहाँ सन्यस्य अध्यात्म चेतसा: - अपने ही भीतर अवस्थित हो जाने को , अपने तप के विषय पर केन्द्रित हो जाने को, मानो, जानो॥ गीता सबलता देती है, हर जीव के एक परम उद्देश्य के प्रति उसे सबल बनाती है॥ उद्देश्य कोई भी हो सकता है, कोई अन्य उद्देश्य भी हो सकता है॥ महान उद्देश्य तो मनुष्य के जीवन में और भी हो सकते हैं, परम उद्देश्य तो एक ही है, पर बीच-बीच में बहुत से महान उद्देश्य आते हैं जीवन में॥
पहली पंक्ति ने यह स्थापित कर दिया कि अब तुम उद्देश्य को ही सब कुछ मानोगे, वही तेरा इष्ट वही तेरा लक्ष्य और वही तू है॥ तू कौन है अब? तू उद्देश्य है अब॥ और तेरा उद्देश्य एक ही है कि दुर्योधन को परास्त करना है और मुझे तप से शक्ति प्राप्त करनी है यह तेरा उद्देश्य है और यही तू हो जा॥ यह पहली पंक्ति कहती है यही तू हो जा, इससे कम में नहीं बात बनेगी॥ जब तक यही तू नहीं हो जाएगा, तब तक तुझे तेरे उद्देश्य के प्रति वह सबलता प्राप्त नहीं होने वाली॥
इसीलिए अपने आप को उस परिपक्वता तक लाना है॥ यहाँ तू ही अब अपने उद्देश्य को इष्ट मान और तू ही अपने आप में अपने उद्देश्य के प्रति समर्पित हो जा॥ अब तू जी तो उद्देश्य को, इससे कम में भगत सिंह नहीं बनते॥ इसमें कम में विवेकानन्द नहीं बनते॥ इससे कम में औसत रूप में जीवन तो जिया जा सकता है पर तपस्वी नहीं बना जा सकता॥ इसके लिए अब तू ही उद्देश्य है, मोटे रूप से कहें तेरा उद्देश्य इष्ट है और तू अपने उद्देश्य को समर्पित हो जा, इसे मोटे रूप से कहें सारांश रूप में कहें तो अब तू ही उद्देश्य है बस॥ क्योंकि तुझे दुर्योधन को परास्त करना है॥ अपने सबसे बड़े पहचाने हुए विकार को परास्त करना है और सबसे बड़ा विकार यदि परास्त कर दिया तो बाकी तो उसके आसपास हैं॥
एक महान योगी ब्रह्म ऋषि कहूँ मैं, योगी शब्द मैं गलत प्रयोग कर गया॥ ब्रह्म ऋषि ने कहा था - दो मर जाते हैं तो मोक्ष मिल जाता है॥ बहुत गहरी बात है, दो कौन? दुर्योधन और भीष्म पितामह, इन दो के जाते ही मोक्ष है॥ भीष्म हमारे पहचान का प्रतीक है मैं हूँ तो सब है न? मैं ही नहीं तो सब कहाँ॥ सबसे प्राचीन, सबसे बड़ा, सबसे पीछे खड़ा और जिसे दोनों प्रिय हैं॥ इस दुनिया की माया भी प्रिय है और उस लोक का आनन्द भी प्रिय है वह है भीष्म॥
दुर्योधन के जैसे उद्देश्य को परास्त करने के लिए जिस तप पर तुम आरूढ़ हुए हो अब उसी को तुम मान लो वही तुम हो अब, इससे कम में नहीं॥ अब यह श्लोक बहुत कुछ कहेगा तुम्हें, बहुत सबल बनाएगा तुम्हें, बड़ी शक्ति से पूरित करेगा तुम्हें यह श्लोक॥ ऐसा मैं केवल कह नहीं रहा हूँ, अनुभव भी किया है॥
कल मुनि वेदव्यास का लिंक भेजा था मैंने, जो नहीं देख पाए, दोबारा देखना, मेरा निर्देशन मान कर देखना॥ ध्यान से जुड़ना है बाबू॥ इस मन्वन्तर का वही अधिष्ठाता है॥