आपसी संवाद के दो स्तर सबसे महत्वपूर्ण हैं।

आपसी संवाद के दो स्तर सबसे महत्वपूर्ण हैं।

आपसी संवाद के दो स्तर सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। एक को तो हम भली प्रकार से पहचानते हैं अर्थात जो कानों को सुनाई देते हुए शब्द हैं पर दूसरे संवाद के स्तर के विषय में हम में से अधिकांश अनजान हैं। और यही संवाद का वह अनजाना और सूक्ष्म स्तर है जो की अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। शब्दों की बातचीत तो थोड़ी ही देर में हो कर समाप्त हो लेती है परन्तु सूक्ष्म स्तर पर हम सभी अपने विचारों में उस बातचीत का बोझ न केवल ढोते चले जाते हैं बल्कि उसे सोच सोच कर और अधिक बोझिल कर डालते हैं।

दिल का मैल यही संवाद का सूक्ष्म स्तर ही पैदा करता है। बार बार उसी व्यक्ति के विषय में सोचते चले जाना और अपनी कल्पनाओं के जगत में भिन्न भिन्न प्रकार से उस बीते घटनाक्रम को फिर से Enact करना अर्थात मंचन करना यह संवाद के सूक्ष्म जगत में होने वाला एक खतरनाक खेल है। जिसके दुष्परिणाम हमें अनेक रूपों में भुगतने पड़ते हैं। हमारे भीतर की negativity (नकारात्मकता) को खाद पानी का प्रबंध यही सूक्ष्म संवाद का खतरनाक मंचन करता है।

इस अभ्यास से समझदार लोगो को बड़ी सावधानी से बचना चाहिए अन्यथा अनजाने अनजाने में बहुत बड़ी हानि हम स्वयं को पहुंचाते चले जायेंगे। देखो विचार हमारे मस्तिष्क कर समाप्त नहीं होते - हमारे ही द्धारा सोचे गए विचार अपने जैसे अनेकों विचारों को आकाश से घेर कर हमारे ही मस्तिष्क में वापस लौट आते हैं। इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता है। और फिर जब हमारे ही द्धारा छोड़े गए विचार अपने साथ अपनी भरी भरकम बिरादरी ले कर वापस लौटते हैं तब हम जान ही नहीं पाते की हम एक प्रकार विचारों में उलझ कर आखिर क्यों रह जाते हैं। चाह कर भी हमारे दिमाग से बीती हुई बात जाती क्यों नहीं है।

देखो दोस्त इस विषय पर मनन करोगे तो अगली बार से तुम्हारी छोटी मोटी कहा सुनी होगी तो तुम उसे आगे ढोने का प्रयास नहीं करोगे। हाँ इसकी कुछ विशेष विधियां भी होती जिनके द्धारा तुम अपने विचारों पर न केवल कुछ अंकुश लगा सको बल्कि छोड़े गए नेगेटिव विचारों के दुष्प्रभाव से भी मुक्त हो सको। पर ईमेल डाल कर तुम हमारे के विषय जानकारी प्राप्त करो।

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