व्यवस्थित चिंतन विचारों की शक्ति का आधार है
इस क्रम के प्रशिक्षण में 25-26 कड़ियाँ हो चुकी हैं॥ उस प्राचीन धारा पर हम हैं कि आत्म उत्कर्ष किन पाँच स्तरों से होता है॥ 1) आत्मअवलोकन 2) आत्म दर्शन (अथवा निरीक्षण) 3) आत्म परिष्कार 4) आत्म विकास 5) आत्म निर्माण
आत्म विकास पर यात्रा आगे चल रही है॥ कल उल्लेख आया कि जन्म से आई क्षमताओं को विकसित करने का दायित्व मनुष्य का है॥ पुष्प पूरी तरह पल्लवित हो, यह दायित्व भी पुष्प का है, हमारा है॥ हम अपनी क्षमताओं के विषय में जान पाएँ, यूँ तो यह कार्य हमारी बाल्यावस्था में हमारे अभिभावकों और हमारे आसपास के मनस्वियों के द्वारा भी सहज किया जा सकता है, समझ में आए तो, पर नहीं भी आया तो आयु कुछ भी हो, इसके प्रयास किसी भी आयु में करने चाहिए॥ मनुष्य की आयु कभी नहीं होती॥ यदि आप आध्यात्मिक हैं और आप इस सत्य पर गहरा विश्वास करते हैं कि पुनर्जन्म और कर्मफल अकाट्य हैं॥ प्राचीन भारतीय मनीषा का आधार ही यही है कि कर्म का फल है और इस जन्म तक सारी यात्रा सीमित नहीं है इसके उपरान्त भी यात्रा है पुनर्जन्म॥ यदि इस तथ्य को आप मानते हैं तो आयु जीव की नहीं आयु शरीर की है॥
यह मानने से सुविधा क्या होगी? पहली बात तो यह कि अकाट्य सिद्धान्त है, आप भले ही उसे गहरे संज्ञान में चरितार्थ नहीं कर पाएँ फिर भी मान लेने से आप एक आधारभूत सत्य को स्वीकार करेंगे॥ दूसरा जो सबसे बड़ा लाभ है, पहला लाभ आप मानें यह न मानें पर दूसरा लाभ बहुत बड़ा है॥ आपने जो अपने आप को कई बातों में काट-बाँट और बाँध रखा है कि 'अब कहाँ उम्र रही?', 'अब समय निकल गया', 'अब कौन करे, अब कैसे होगा अब नहीं' आदि, यह विचार समाप्त हो जाएगा॥ यह ठीक है कुछ बातों के लिए ऐसा कहना अच्छी बात है॥ बच्चों में और बड़ी आयु के लोगों में कुछ बातों का अन्तर माना जा सकता है कि वह आयु अनुरूप अच्छा लगता है॥ पर विशेष रूप से अपने भीतर की क्षमताओं को पहचानने व विकसित करने के लिए कोई आयु है ही नहीं॥ इसी सत्संग में ही और अनेक वीडियो में भी मैंने सैंकड़ों बार इसका उल्लेख किया॥ मैने अपनी ओर से बहुत आग्रह करके अपने पिताजी को 83 वर्ष की आयु में कहा कि आप विधिवत ज्योतिष विद्या सीखना आरम्भ कर दो॥ वह उनके हृदय में था, कर नहीं पाए थे॥ वे 88 वर्ष की आयु में गए पर उससे पूर्व 3 वर्ष तक उन्होंने अध्ययन किया॥ क्षमताओं को पहचानने एवं उनके के लिए कोई आयु है क्या?
अत: क्षमताओं की पहचान करना आवश्यक है और किसी भी आयु में होनी चाहिए॥ उसके लिए आयु की सीमा का कोई बन्धन नहीं है॥ बात क्षमताओं की हो रही है॥ कुछ बातें हैं जो हर आयु में अच्छी नहीं लगती पर यह बात क्षमताओं की हो रही है॥ क्षमताओं की दृष्टि से अपनी क्षमता पहचानने के लिए यदि कोई 90 वर्ष के वयोवृद्ध भी किसी ज्योतिषी के सामने जाकर पूछते हैं कि यह बताओ कि मेरे कौन से ग्रह कौन सी क्षमताओं को लेकर बैठे हैं, मैं जन्म से क्या क्षमताएँ लेकर बैठा हूँ॥ इस पर कोई हँस देगा तो वह आप पर नहीं हँस रहा वह अपनी छोटी समझ पर हँसेगा॥ क्योंकि उसे इस बात का विश्वास ही नहीं है कि सनातन पद्धति में आने के उपरान्त भी ज्योतिष जैसी विद्या का अध्ययन विज्ञान रूप में करने के उपरान्त भी उसे यदि यह विश्वास नहीं हो पाया कि कर्मफल और पुनर्जन्म होता है, ऐसा व्यक्ति ही हँसेगा न? तो जो इस प्रकार की बौनी समझ रखता है जिसे इतना बोध तक नहीं हुआ उसकी हँसी को हँसी मानेंगे हम? नहीं मानेंगे॥ अत: इस बात को छोड़कर कि किसी भी आयु में अपनी क्षमताओं को जानने की चेष्टा करो॥ कुछ काम ऐसे हैं जिनके द्वारा अपने स्तर पर भी अपनी छिपी हुई क्षमताओं को जाना जा सकता है॥ हाँ, ज्योतिष अधिक वैज्ञानिक है और जो दूसरा कोई तरीका है वह उतना वैज्ञानिक न होकर के अपितु कहीं एक छोटा सा संघर्ष है यह जानने का कि मेरी छिपी हुई क्षमता क्या है॥ ज्योतिष पूर्णत: वैज्ञानिक है, यदि आपकी कुण्डली ठीक है॥
बहुत सी बातों से आप जीवन भर में बचते रहे॥ कर्मयोग के प्रशिक्षण में इस विशेष कार्य को एक exercise बनाकर मैं देता हूँ कि 'क्या कुछ करने से आप जीवन भर बचते रहे हो?'॥ तुम्हे अपने विषय में बोध नहीं होगा, कि तुम जिन बातों से जीवन भर बचते रहे, पसन्द ही नहीं किया वह तुम्हारे भीतर की क्षमता से भी जुड़ी हुई हो सकती है॥ आप तो बड़ी विपरीत बात कर रहे हो, बहुत अटपटी बात कि जो मेरी रुचि में नहीं वह मेरी क्षमता में कैसे होगा? रुचियाँ तो तुम्हारी प्रभावित हैं, रंगी हुई हैं तुम्हारी रुचियाँ॥ समस्त विश्व में ये जितने बड़े-बड़े राष्ट्र हैं वे जितना धन अस्त्र शस्त्र पर खर्च कर रहे हैं, आने वाले समय में देखना किस पर खर्च करेंगे॥ आने वाले समय में शस्त्रों पर होने वाले खर्चे कम होने वाले हैं॥ वह इसलिए नहीं कि आदमी सुधर जाएगा न, अभी सुधरने में थोड़ा समय है, वह सुधरेगा नहीं॥ उसे पता है कि इस पर और कुछ किया तो एक सीमा के बाद यह सामने वाले के लिए तो खतरा है ही, मेरे लिए भी खतरा है और मैं भी नहीं बचूँगा॥ इसलिए कुछ समय उपरान्त मनुष्य अपने ही भय से शस्त्र आदि पर खर्चा करेगा, अभी रुकेगा नहीं पर कम करेगा॥ किस पर बढ़ेगा खर्चा? क्या मनुष्य की वृत्ति बदल जाएगी? नहीं मनुष्य की वृत्ति तो जल्दी नहीं बदलने वाली॥ मनुष्य अभी विवाद से तो पीछे नहीं हटेगा विवाद तो रहेगा॥ तो फिर कैसा? उसका स्वरूप बदलेगा॥ क्या बदलेगा? अब जितना धन शस्त्रों पर है उससे कम खर्च, जिसे हम धारणा कहते हैं अब उसका अंग्रेजीकरण मैं एक और शब्द दे रहा हूँ जो धारणा के बड़े विस्तार का एक अंश है Perception, Perception Management पर बहुत अधिक खर्च होने वाला है॥ मैं विषय से हटा नहीं हूँ बिलकुल भी हटा नहीं हूँ बेटा॥
Perception Management पर खर्चा हो भी रहा है॥ अभी भी वर्तमान में बहुत से राष्ट्र जो समर्थ हैं वे अपनी Perception Management पर छुपे रूप से बहुत कुछ करते हैं, प्रत्यक्ष नहीं, प्रत्यक्ष नहीं आ सकते, विज्ञापन बन जाएगा न॥ पर विचारों को प्रभावित करने के लिए, अपने प्रति दृष्टि को बदलने के लिए Perception Management पर बड़ा खर्चा कर रहे हैं॥ यह खर्चा आने वाले समय में और बढेगा, इसके स्वरूप, इसके प्रकार भी बढ़ने वाले हैं, आप देखते जाना॥ लड़ाईयाँ Perception के आधार पर होंगी, शस्त्रों की लड़ाईयाँ उनकी सम्भावनाएँ आने वाले समय में कम होंगी॥ क्योंकि शस्त्र का दूसरा synonym पर्याय मैं कहूँ तो वह 'भस्मासुर' है; अर्थात मैं स्वयं भी भस्म हो जाऊँगा ऐसे-ऐसे शस्त्र लगभग बन गए हैं, नहीं बने तो और 5-7 वर्ष में बन जाएँगे॥ अर्थात भस्मासुर वाले, किसी को भस्म करने के साथ स्वयं भी होना पड़ेगा॥ अत: शस्त्रों पर नहीं Perception पर युद्ध होंगे, किसी की Perception समाप्त करनी है, अपनी बढ़ानी है, किसी की नकारात्मक करनी है, किसी को गौण करना है, इस पर खर्च होंगे॥ आपने यह विषय क्यों बीच में ले लिया? बात तो क्षमताओं के विकास की थी, अपनी क्षमताओं की पहचान की थी॥ हाँ, इसलिए लिया क्योंकि अभी तक जिन्हें तुम अपनी रुचियाँ अभिरुचियाँ मानते आए हो, तुम्हें मालूम है वे रंगी हुई भी सकती हैं और वे केवल बाहर से उधार ली गई हैं? किसलिए? केवल दो बातों के लिए॥ तुम्हारी जितनी भी क्षमताओं की पहचान; (सामान्यत: सबके साथ मैं नहीं कह रहा हूँ I am not talking for everyone. सबके लिए नहीं, कुछ लोग होंगे जिन्हें जन्म से अपनी क्षमताएँ पता लग गई या बाद में लगी, पर पता लग गई) मैं अधिकांश की बात कर रहा हूँ॥
अधिकांश की क्षमताएँ बस दो ही बातों से प्रभावित हैं॥ किससे? केवल और केवल 'आधिपत्य' पर और साथ-साथ 'सुविधा' पर॥ यह आपने क्या कह दिया 'आधिपत्य और सुविधा' बहुत टेक्निकल शब्द है न? इन दोनों का बहुत बड़ा साम्राज्य है 'आधिपत्य और सुविधा'॥ आधिपत्य अर्थात इसमें ईगो भी आ गई अहंकार, मैं, मेरा, मै सबसे अलग दिखूँ, यह ईगो है बाबू॥ फैशन इन्डस्ट्री किस पर आधारित है? 'मैं अपनी आँखों में सुन्दर दिखूँ' इस पर तो बहुत कम ध्यान है; 'मैं सबकी आँखों में सुन्दर दिखूँ' इस पर ही तो सारा खेल है॥ जितना खेल है वह किस पर है? इसी पर है, वह चाहे फैशन का हो या कहीं घूमने जाने का हो, कुछ भी हो, और फिर धीरे-धीरे इसी आधिपत्य का विस्तार फिर अन्य लोगों पर भी होता है॥ मेरी सुनेगा, मेरी मानेगा, मेरी चलेगी, मुझे देखा कैसे, मैं... 'आधिपत्य'॥ वह चाहे खरीदारी में हो, भीतर के दृष्टिकोण में हो, नीतियों में हो, तोड़-फोड़ की नीति में हो, कैसा भी हो, आधिपत्य चाहिए॥ और सुविधा? सुविधा का तात्पर्य है 'कुछ भी संचय कर लेना', कुछ भी, मुझे और चाहिए, और चाहिए और चाहिए so that I can afford everything, संचय, सुविधा अर्थात संचय॥ 'आधिपत्य और सुविधा' इन दोनों में सारा साम्राज्य आ गया; जिसे आप मोटा-मोटा पैसा और ताकत के नाम से कह सकते हो॥ मोटे तौर पर यह 'पैसा और ताकत' ही है, पर इसे यदि और गम्भीर व्यापक बनाना है तो 'आधिपत्य और सुविधा' इससे दृष्टियाँ रंगी हुई हैं॥ मनुष्य इसी में अपनी क्षमताओं को ढूँढता है॥
अधिकांश बच्चे अपने कैरियर के विषय में आरम्भ में इसी पर आधारित होकर सोचते हैं॥ बाढ़ निकलती है बाढ़॥ बेचारा स्कूल में पढ़ाना वाला टीचर कितना कमाता है 20-25 हजार , 40-50-60 लाख, डेढ़ लाख तक जाएगा वह अध्यापक, और कहाँ तक जाएगा? वहीं उस बाढ़ के कारण जो preparation कराते हैं institutes डॉक्टर इंजीनियर ईत्यादि के लिए, उनके अध्यापक, मुझे पता लगा था बात 7-8 वर्ष पुरानी है॥ साहब यह टीचर इस फलाने institute में है जो बच्चों को 10वीं के बाद बच्चों को तैयारी कराती हैं preparation exams के लिए॥ कितनी तनख्वाह है? एक करोड़, डेढ करोड़॥ मैंने कहा गप्प है यह ॥ अध्यापक को इतने पैसे कौन देगा? पर जिसे मैंने गप्प कहा, वह व्यक्ति भी मेरा सम्मान करता था उसने भी पूरे तकनीकी तरीके से पूरे साक्ष्यों सहित सिद्ध कर दिया कि भारत में अब इन टीचर की कमी नहीं है॥ इन institutes की अब बहुत बड़ी industry है इतनी बडी इन्डस्ट्री है कि आपकी कल्पनाओं में नहीं आएगा॥ बाहर दिखती नहीं है आपको यह, पर इनकी इतनी टर्नओवर है it runs into hudreds of crores. कुछ टीचर इनके हैं जिन्हें इनको 12-12 करोड़ के पैकेज देने पड़ते हैं॥ फिर बाद में मैं बात मान भी गया, पहले तो नही मानी थी॥
पीछे क्या है? वह बाढ़ है जो हर व्यक्ति बिना पहचाने, 'मुझे इंजीनियर बनना है', 'मुझे फलाना बनना है'; कल मैंने IAS का चर्चा भी किया॥ पीछे का रहस्य क्या है? आधिपत्य और संचय, आधिपत्य और संचय के पीछे सबसे बड़ा कारण क्या है असुरक्षा, असुरक्षा॥ अच्छा? इसके पीछे आलस्य ईत्यादि नहीं है? वह बाद में है, पहले असुरक्षा insecurity. Insecurity जन्म से ही साथ चलती है वह क्षमताओं को पहचानने भी नहीं देती॥ मैंने इस पर किसी मनस्वी का एक कार्यक्रम देखा था॥ जिसका उल्लेख आज मैं यहाँ करना चाहूँगा॥ मैंने इसे किसी मनस्वी के वीडियो में देखा है, ऐसा-वैसा वीडियो नहीं कि कहानियाँ बनाकर whatsapp आदि पर circulate किया गया हो, with evidence अन्यथा ऐसे मैं कहने अथवा सुनाने वाला नहीं॥
एक लड़की अत्यन्त मेधावी, स्पोर्ट्स में डिबेट में हर चीज में best, मन में शौक आ गया मॉडलिंग का॥ बात कहाँ की है? अमेरिका की॥ बात किस पर हो रही है? कि लोग अपने भीतर की क्षमताओं को पहचानने से चूक जाते हैं॥ जिन्हें वे क्षमताएँ मानते हैं अधिकांशत: रंगी होती हैं॥ आपको इसलिए सुना रहा हूँ क्योंकि यह आपके लिए भी है आपके माध्यम से संतति के लिए भी है॥ मॉडलिंग का शौक आया और लड़की प्रभावित हो गई मॉडलिंग फैशन रैम्प वॉक करने के लिए॥ मॉडलिंग में गई, सुन्दर थी, एकाएक सफलता प्राप्त हुई॥ जो फैशन इन्डस्ट्री के लोग थे वहाँ कॉन्ट्रेक्ट साइन किया॥ कॉन्ट्रेक्ट में इतनी शर्तें होती हैं कि उनके बस में हो तो आपके आने वाले कई जन्म भी लिखवा लें॥ उसमें उन्होंने कहा कि आप जिस तरह स्माइल करती हो, तो उसमें एक ऐसा डिम्पल सा पड़ता है जो ठीक नहीं लगता विशेषत: जब आप साइड से स्माइल करती हो॥ तो इसके लिए क्या करना होगा॥ उन्होंने कहा इसका जबड़ा तोड़ करके, जबड़ा तोड़ करके दोबारा एडजस्ट करेंगे॥ यह सत्य घटना है॥ खैर कॉन्ट्रैक्ट में साइन था जबड़ा तोड़ा गया, दोबारा एडजस्ट किया गया॥ क्यों? क्योंकि स्माइल का डिम्पल, जरा सा जो सामान्यत: पता भी न चले कि क्या अन्तर है, उसके लिए ऐसा किया गया॥ उसके बाद फिर आप समझ सकते हो, लड़की थी तो और भी कई स्थानों पर सर्जरी की गई॥ जहाँ भी सर्जरी की गई उसका परिणाम यह हुआ कि उसकी ribs पसलियाँ, नीचे की रिब्स बाहर को आ गई॥ अब उन्होंने कहा, दो अतिरिक्त रिब्स पेट में हों, इसकी कोई आवश्यकता नहीं है, इन रिब्स को निकाल दो॥ उसकी नीचे की दोनों ओर की रिब्स भी सर्जरी से हटा दी गई॥ उसके उपरान्त वह लड़की बीमार रहना आरम्भ हो गई॥ अन्त तो उसका दु:खद हो गया, यह सत्य है॥ पर पीछे क्या था? was she not good in debates? was she not beautiful? was she not good in athletics? स्कूल की दौड़ में भी टॉपर थी वह और उसकी माँ कहती है कि वह अनेकों कलाओं में, बहुत सी चीजों में she was too good. और उसने उधार ले लिया एक भाव॥ वह क्या भाव उधार ले लिया? यह कि इसमें आधिपत्य, जानी जाऊँगी जल्दी से, और इसमें संचय भी बहुत, सुविधा भी बहुत है इसमें॥ अपनी नैसर्गिक क्षमताओं को पहचान पाने के अभाव में, मैं यह नहीं कहूँगा कि उसने गलत किया॥ उसने वह किया जो उसे उस समय समझ आया, ठीक है अपनी समझ के अनुसार॥
हम आसपास से बहुत कुछ बटोर कर के अपने साथ बहुत बड़ा अन्याय कर जाते हैं॥ ऐसे में आवश्यकता है हम अपनी क्षमताओं को पहचानें जिन्हें हम अपनी क्षमताएँ मान रहे हैं वह तो आधिपत्य और सुविधा (संचय) से रंगा भी हो सकता है॥ यह प्राचीन भारतीय मनीषा की दृष्टि से बोल रहा हूँ॥ पाश्चात्य राष्ट्रों में इस तरह की बातें इस रूप में नहीं पढ़ाई जाती न बताई जाती, उनके scale ही अलग हैं| पर मूलत: मनुष्य के भीतर संचालक वही है जिसे हम राग और द्वेष के रूप में जानते हैं॥ 'आधिपत्य और सुविधा' ये दो हैं जिन्होंने रंग दिया हमारी दृष्टि को उसी से हम अपने आप को भी देखते हैं, उसी से हम अपनी धारणा perception बनाते हैं॥ यह perception अत्यन्त घातक है जब हम अपनी perception ओढ़े हुए विचारों के द्वारा बनाना आरम्भ करते हैं तो जीवन रूपी जहाज भटक जाता है॥
'जाना था रंगून चले गए पता नहीं कहाँ'॥
अभी इस पर आगे चर्चा करेंगे, आज के लिए इतना ही...