नाभि कमल रीढ़ में, बीज अक्षर एवं पंखुड़िआ कुछ कहती जो जानना होगा

नाभि कमल रीढ़ में, बीज अक्षर एवं पंखुड़िआ कुछ कहती जो जानना होगा

ऊर्जा के एक प्रकार के सन्तुलन का ध्यान बीच-बीच में बहुत आवश्यक होता है॥ अनेकों स्तरों पर उत्पन्न हुई ऊर्जा इस गहरे शान्ति के ध्यान से एक सन्तुलन प्रदान करती है॥ नाभिकमल का ध्यान व उसके साथ जुड़ी जो क्रियाएँ हैं, गर्भवती महिलाएँ न करे जिन्होंने गर्भ अभी धारण किया है अथवा जो कुछ आगे चली गई वे न करें॥ क्योंकि इसमें गर्मी का उपार्जन आदि भी रहता है॥

मैं नाभिकमल के ध्यान पर पुन: आना चाहूँगा हालांकि आज शान्ति और सन्तुलन का ध्यान था॥ नाभिकमल का वास्तविक स्थान नाभि की सीध में रीढ़ में है, पूर्व में इसका उल्लेख कई बार किया गया॥ समस्त प्राण के भँवर जिन्हें हम चक्र ईत्यादि के रूप में जानते हैं रीढ़ में है, आज्ञा चक्र के अतिरिक्त॥ मैं कोई कुण्डलिनी का ज्ञाता अपने आप को नहीं मानता, जो छोटा-मोटा ज्ञान, छोटी-मोटी समझ विकसित हुई है उसी के आधार पर कह रहा हूँ॥ ज्ञानियों ने और अनुभवियों ने शिक्षण की दृष्टि से इन महत्त्वपूर्ण प्राण के भँवर को चक्र को (वास्तविकता में प्राण के भँवर हैं ये), प्राण के भँवर को कमल के फूल की भाँति पंखुड़ियाँ दी हैं॥ अलग-अलग भँवर को अलग-अलग संख्या की कमल की पंखुड़ियाँ दी हैं॥ यहीं से समझ में आ जाना चाहिए कि मर्म कुछ और है॥ कहीं पंखुड़ियाँ केवल दो हैं और कहीं 12 हैं और नाभि कमल में 10 कही गई, तो शिक्षण की दृष्टि से कुछ है इसमें॥ मैं क्या कुण्डलिनी पढ़ा रहा हूँ? न, एक भाव दे रहा हूँ जिससे जो वर्तमान समझ है वह और पुष्ट हो, परिपक्व हो॥ आखिर मेरे भीतर इस ध्यान से और क्या कुछ होगा? चक्र जागरण, नहीं अभी नहीं, पर क्या कुछ होगा॥

10 पंखुड़ियाँ नाभिकमल के भँवर की चक्र की बताई गई॥ एक-एक पंखुड़ी एक-एक क्षमता का परिचायक है॥ It symbolizes one prominent ability. एक-एक पंखुड़ी जहाँ वह क्षमता का परिचायक है, निश्चित रूप से क्षमता और अक्षमता Capability incapability एक ही सिक्के के दो पक्ष हैं॥ जो capable है जिस विषय का, उसकी उस विषय पर incapability चली गई॥ अर्थात जो जिस विषय का योग्य है उसका उस विषय पर अयोग्य स्वरूप चला गया॥ जो धनवान है वह निर्धन नहीं है सीधी बात है, जो बुद्धिमान है वह मूर्ख नहीं है सीधी बात है॥ अत: एक-एक पंखुड़ी एक-एक क्षमता का परिचायक है॥ ऐसी क्षमता जो अक्षमताओं को दूर करती है॥ एक-एक क्षमता और एक-एक अक्षमता, दसों की अक्षमताएँ और उनकी क्षमताएँ, इनका वर्णन ज्ञान में आता है॥ जैसे उदाहरण है मोटे रूप से घृणा, ईर्ष्या आदि जैसी अक्षमताएँ हैं, ऐसे एक-एक पंखुड़ी, एक-एक अक्षमता और उस पर क्षमता जागेगी, आप उससे उबर जाओगे॥ क्योंकि अग्नि तत्त्व का यह भँवर है, इस भँवर से महाभूतों का अग्नि तत्त्व जुड़ा है॥ अग्नि परिचायक है किसकी ? ऊपर उठने की, ऊपर उठना नचिकेता, न+चिकेता जो हिलने वाला नहीं है॥ नचिकेता किसका परिचायक है किसका प्रतीक है? न केवल जिज्ञासा का अपितु साथ ही साथ एक शिव संकल्प का, ऐसा संकल्प जो डिग नहीं सकता, आप उसे हिला नहीं सकते॥ अग्नि संकल्प का भी प्रतीक है ऊपर उठने का, ऊर्ध्वागामी होने का, अग्नि ऊपर जाएगी॥ अग्नि परिशोधन का प्रतीक है परिष्कार का purification का प्रतीक है॥ ये जितनी कमियाँ है इनको भस्म करती है, incinerate करती है॥ अत: यह अग्नि तत्त्व का क्षेत्र है जिसके द्वारा 10 प्रकार की अक्षमताएँ, क्षमताओं में परिशोधित होकर जागृत होती हैं॥

हर क्षमता को, हर क्षमता को उसके बीज मन्त्र से सम्बोधित किया जाता है जैसे , क्योंकि हर क्षमता तरंग रूप में है vibratory existence of every capability, हर क्षमता का एक स्वरूप तरंग में भी है॥ क्रोध है तो उसकी एक तरंग है न? करुणा है तो उसकी एक तरंग है न? उठती है॥ प्रेम है तो उसकी एक तरंग है न?॥ घृणा है तो उसकी एक तरंग है न? जहाँ तरंग है वहाँ उसका एक बीज अक्षर भी है जैसे हम प्राण स्वरूप 'भूर् भुव: स्व:' कहते हैं न? प्राण स्वरूप, दु:ख नाशक, सुख स्वरूप, कहते हैं न? उसके बाद 'तत् सवितुर् वरेण्यम्' है ॥ एक-एक अक्षर एक-एक बीज है गायत्री का और एक-एक बीज की एक विशेष तरंग है॥ और उस तरंग का एक अर्थ है जैसे ह्रीं क्लीं श्रृीं; ह्रीं किसकी क्षमता है? सद्बुद्धि की, क्लीं शक्ति की, उसी तरह श्रृीं समृद्धि की॥ एक-एक बीज अक्षर बीज मन्त्र, एक तरंग और एक क्षमता; बात एक ही है रामलाल, रामलाल का चेहरा और रामलाल के गुण॥

एक बीज अक्षर, उसकी तरंग और उसकी क्षमता, इस प्रकार ये 10 प्रकार की क्षमताएँ इस अग्नि के द्वारा जागृत होती हैं प्रकट होती हैं॥ जो क्षमताएँ हैं उनके बीज अक्षर भी हैं जैसे ह्रीं क्लीं श्रृीं आदि, इनके अलग हैं मैं उन पर नहीं जाऊँगा, केवल समझा रहा हूँ; और वे क्षमताएँ उन बीज अक्षर से जागृत होती हैं॥ जिन्हें इस ज्ञान में आगे जाना होता है वे बहुत कुछ और जोड़ते हैं साथ में और फिर अपनी एक-एक क्षमता को भी जगाते हैं॥ क्यों करते हैं यह सब इतना? इसलिए करते हैं क्योंकि संस्कारों से आए हुए अनेक प्रकार के दोष-विकार हमारे सूक्ष्म अस्तित्व में हमारे कोषों में व्याप्त हैं जो आगे नहीं जाने देते, उन्हें भस्म करना है॥ तो एक-एक बीजाक्षर के द्वारा, उसके ध्यान के द्वारा उस अग्नि तत्त्व पर बैठकर ध्यान के द्वारा, उस एक-एक नाड़ी को साफ करते हैं अर्थात एक-एक अक्षमता को भस्म करते हैं॥ अक्षमता भस्म तो क्षमता जागृत, मोटी बात है॥ समझ में आई होगी? अत: इसकी साधना वे अलग रूप से करते हैं, हम वह नहीं कर रहे॥ हम क्या कर रहे हैं? हम इसका एक दूसरा मार्ग अपना रहे हैं॥ काम वही करेंगे? हाँ, वही होगा॥ आप दूध में से जब घी निकालते हैं तो अनेक तरीके हैं एक ही विधि तो है नहीं क्रीम से भी निकालते हैं और दही से मक्खन निकाल कर उससे भी घी निकालते हैं॥ विधियाँ और भी हैं, उसी प्रकार विद्युत उत्पन्न करने की भी बहुत सी विधियाँ हैं॥ अब तो बहुत सी विधियाँ सामने आ गई॥

उसी प्रकार इसी कार्य को करने की और विधि भी हैं जो सबसे सुरक्षित और समर्थ भी है जिसे हम अपने अभ्यास में गायत्री के द्वारा कहते हैं॥ उन्हीं समस्त नाड़ियों की सफाई गायत्री की अग्नि प्रचण्ड अग्नि, प्रचण्ड ऊर्जा के द्वारा सम्भव होती थी॥ एक काल था गायत्री कान में कहते थे सबको नहीं कहते थे, सबको अधिकार नहीं दिया जाता था॥ उसके पीछे कुछ कारण भी थे, कारण यह भी थे कि कुछ लोग उस पर अधिकार चाहते थे॥ क्योंकि Power है तो यह सदैव ही ऐसा रहा है कि किसी भी प्रकार की power हो उस पर कुछ लोग आधिपत्य करना चाहते हैं, ऐसा भी होता है॥ साथ-साथ एक सबसे बड़ी बात और भी है॥ ऐसा नहीं कि जिन्होंने आधिपत्य किया वे योग्य हो गए॥ बात एक और भी थी, कयोंकि कोई भी शक्ति आप उपार्जित करते हो, उसे पचाने योग्य आपमें बुद्धि नहीं है, क्षमता नहीं है तो शक्ति आपको भस्म कर देगी॥ धन कमा लिया, बहुत धन आ गया, व्यय करने की बुद्धि नहीं है, आप अपने ऊपर ही उसे गलत तरीके से खर्च करके अपने आपको भस्म करोगे॥ अपने कर्म बन्धन बाँधते चले जाओगे॥ क्या होगा? वह शक्ति आपके लिए भस्मासुर बन गई॥ चाहे वह कोई भी शक्ति हो, बुद्धि भी यदि कुतर्की और हानिकारक हो जाए तो क्या होता है? वह शक्ति अभिशाप हो जाती है curse हो जाती है॥ इसीलिए यह गायत्री महाशक्ति से जीवन का असन्तुलन भी बना रहे अनाप शनाप कर्म भी करो, और इसको भी करो तो उग्रता बढ़ने की सम्भावनाएँ थी॥ इसीलिए कहा गया सात्त्विक व्यक्ति, पवित्र मानस का व्यक्ति इसका अधिकारी होना चाहिए॥ बन्धन के पीछे मर्म था, आधिपत्य नहीं था just to transgress and capture नहीं॥ उसी प्रकार ये समस्त ज्ञान हैं, ये सारे ज्ञान यदि किसी तरह से रहस्य भी रहे तो कारण यह था कि कहीं शस्त्र, रक्षा और क्षमता के स्थान पर घातक ही न हो जाएँ॥ किस तरह से blade सँभाल कर रखते हैं , बच्चों से दूर रखते हैं, 'अरे चाकू से हटाओ, दूर हटाओ, कहीं लग न जाए', क्यों कहते हैं इसीलिए, क्योंकि बच्चे नहीं सँभाल सकते॥ इसीलिए इस प्रकार के ज्ञान को ऐसे रखा गया॥ गायत्री के यही सब कार्य साधक में उत्तरोत्तर आत्म विकास के साथ साथ आगे बढ़ते जाते हैं॥ बस इतना बताना ही पर्याप्त है॥

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