नाभि कमल में पशु आकृति अर्थात नर भेड़ का मर्म

नाभि कमल में पशु आकृति अर्थात नर भेड़ का मर्म

सात लोकों का उल्लेख ऊर्ध्वगामी स्तर पर है, अधोगामी भी हैं, पर ऊर्ध्वगामी की बात हो रही है॥ हमारे यहाँ उस मन्त्र के द्वारा आता है जिस पर एक विशेष कार्यक्रम मैंने कुछ वर्ष पूर्व किया था, 'ॐ भू:, ॐ भुव:, ॐ स्व:, ॐ मह: ॐ जन: ॐ तप:, ॐ सत्यम्' - ये ऋषियों द्वारा उर्ध्वागामी सात लोकों को दिए गए नाम हैं, आप इसे अवस्था मान लें, स्तर मान लें॥ हर लोक की अपनी विशिष्टता है॥ जैसे पृथ्वी को हम भू लोक मानते हैं॥ भू से ऊपर के ये सभी लोक हैं॥ इसमें इन लोकों का सम्बन्ध न केवल उन सूक्ष्म अवस्थाओं से है जिन्हें जीवात्मा बाद में जाकर प्राप्त हो जाती है॥ भुव: में तो जाकर वापिस आती हैं पर स्व:, मह:, जन:, तप: ईत्यादि से नहीं॥ साथ-साथ ही इन लोकों का उल्लेख हमारे शरीर में, बहुत सूक्ष्म संरचना में, हमारे भीतर के जो मूल केन्द्र हैं उनके साथ भी है॥

मूलाधार से आरम्भ करके आप ऊपर आते जाओ॥ यदि उस श्रेणी से देखा जाए तो, ज्ञानियों के, बल्कि अनुभवियों के मतानुसार, मैं ज्ञानियों शब्द से अधिक यहाँ मुझे शब्द सोचकर लाना है, अनुभवियों के मतानुसार, नाभिकमल का जो क्षेत्र है वह स्व: लोक है॥ स्व: लोक में एक सामर्थ्य प्राप्त होनी आरम्भ हो जाती है॥ नीचे बहुत झगड़ा है मूलाधार और स्वाधिष्ठान जिसे कहा जाता है उसमें बहुत झगड़ा है॥ इसलिए कहा जाता है वास्तविक कुरुक्षेत्र जो है वह नाभिकमल से नीचे तक है॥ मूलाधार से नाभिकमल और नाभिकमल से मूलाधार, इसके बीच तो जीव बहुत डोलता है॥ पर नाभिकमल और उससे ऊपर अवस्थाएँ भिन्न हो जाती हैं॥ इसलिए हम नाभिकमल से ही आरम्भ करते हैं, यह स्व: लोक का प्रतीक रूप इसे नाम दिया गया है॥ स्व: लोक का तात्पर्य यहाँ है कि जीव में वह क्षमता आ जाती है कि वह अपने ऊपर अधिकार प्राप्त करे॥ अपने ऊपर अधिकार प्राप्त करने का सीधा सा तात्पर्य है 'संकल्प शक्ति'॥ जीव अडिग हो जाता है अडिग, पीछे नहीं हटेगा, पीछे नहीं हटेगा॥ उसमें विवेक तो अभी और आएगा, विवेक का पक्ष तो अभी और आएगा, विवेक wisdom तो और ऊपर तक आता चला जाता है॥ बात यहाँ हो रही है जीवट की, दो बातें अलग हैं एक जीवट Indomitable Spirit, और एक wisdom प्रज्ञा, दो अलग-अलग क्षमताएँ हैं और दोनों की जीवन में आवश्यकता है॥ बिना विवेक आप अनर्थ करोगे और बिना संकल्प कुछ कर ही नहीं पाओगे, दोनों चाहिए॥

तो उसमें जो संकल्प की क्षमता है उसे ऋषियों ने प्रतीक लिया॥ आपने देखा होगा जिन लोगों की अध्ययन में रुचि है, मणिपुर क्षेत्र में पशुओं के प्रतीक भी हैं॥ पशु का लेना-देना वहाँ क्या है? वहाँ कोई पशु बैठा है? नहीं, तो फिर पशु का प्रतीक क्यों देते है? मैंने कमल का तो प्रतीक आपको बताया था पिछले सत्संग में, क्या होता है, कमल की पंखुड़ियाँ ही इस रूप में क्यों दिखाई जाती हैं॥ पर पशु भी दिखाते हैं जैसे मणिपुर के क्षेत्र में दिखाते हैं कि एक मादा भेड़ और वह एक बैल के साथ टक्कर लेने को तैयार है॥ बैल कितना बड़ा होता है? और वह भेड़ बस उससे टक्कर लेने को तैयार है अपना माथा टकरा कर मारने को तैयार, आपने वीडियो देखी होगी अब तो सब कुछ सुलभ है॥ जबकि बैल की टक्कर से वह कहाँ जाएगा उसका उसे पता ही नहीं है॥ अब आप कहोगे उसमें विवेक तो नहीं है॥ मैंने कहा न विवेक अलग है, विवेक अलग है॥

जैसे दुर्योधन कितना बुरा है, माना जाता है न? पर जब कहीं कोई आशीर्वाद देने की बात कहीं आए तो फिर यह भी कहते हैं कि दुर्योधन सा संकल्प भी चाहिए, एक बार ठान लिया न तो सब कुछ दाँव पर लगाने को भी तैयार है॥ आप कहोगे इसमें तो समझदारी नहीं है॥ मैंने आरम्भ में ही कह दिया - दो बातें अलग-अलग हैं wisdom विवेक अलग, जीवट अलग, दोनों के बिना बात नहीं बनती॥ केवल एक से तो दुर्योधन बनता है॥ दोनों का युग्म हो जाए, विवाह हो जाए, किसका? संकल्प का विवेक से, तो फिर क्या होगा? आनन्द आ जाएगा, देवता का जन्म हो जाएगा॥ तो जो मादा भेड़ है उसे प्रतीक माना कि वह अपनी क्षमता उस समय नहीं जाँच रही, वह बस अडिग है, माथा टकरा कर मारने को तैयार है पीछे नहीं हटेगी, यह जीवट है॥ स्व: लोक में धीरे-धीरे वह जीवट आता है, टिकना आता है॥ बिना टिके कुछ प्राप्त होता है? नहीं, बिना टिके तो मनुष्य अपने आप को रोज उखाड़ कर फेंक देगा, 'आज मूड ही नहीं है, आज नहीं होगा, मेरे से नहीं होगा'॥ कोई काम शुरु ही नहीं करेगा, पहला पग, first step first initiative ही नहीं होगा॥ अत: विवेकी बनकर सोचना है, वह मादा भेड़ विवेक का प्रतीक नहीं है पर जीवट का प्रतीक है, अड़ गई तो अड़ गई॥

अजीत दोवल, जो हमारे NSA हैं उनका मैंने एक इन्टरव्यू देखा, उन्होंने कहा - बचपन में स्कूल में शरीर की दृष्टि से मैं उतना सबल नहीं था बॉक्सिंग का उन्हें शौक था॥ पर मेरे स्कूल में कोई टीचर कभी कोई टूर्नामेन्ट आदि कुछ होते तो मुझे बहुत preference देते थे, अधिमान देते थे हालांकि strength में तो मैं कुछ था ही नहीं॥ मुझमें शरीर मे तो शक्ति तो इतनी नहीं थी, मुझसे अधिक तगड़े लम्बे अन्य लड़के थे, पर मेरे टीचर मुझे एक ही बात के लिए चुनते थे मैदान नहीं छोड़ेगा, पिटेगा मैदान नहीं छोड़ेगा, हटेगा नहीं॥ यह क्षमता हम देखते हैं मादा भेड़ में होती है, माथा टकरा कर आ जाती है पीछे नहीं हटेगी॥ आप विवेक को अलग रखिए, वह पीछे नहीं हटेगी, टकरा गई तो टकरा गई॥

अब यह क्षमता मनुष्य में स्व: लोक में, स्व: लोक अर्थात मैंने पहले कहा लोक के तात्पर्य कई हो सकते हैं॥ उत्कर्ष प्राप्त जीवात्माएँ अथवा शरीर के अन्तर्गत सूक्ष्म शरीर के अन्तर्गत, उत्कर्ष को नाम दिए गए॥ अत: confuse मत होना, जैसे अंग्रेजी का state शब्द कई स्थानों पर विभिन्न अर्थों में प्रयोग होता है, दस जगह प्रयोग होता है एक जगह थोड़ी प्रयोग होता है॥ कहीं वह राज्य है, कहीं पूरा गणराज्य है, कहीं वह किसी का हाल-चाल किसी की अवस्था है, कहीं कुछ कहना हो तो॥ उसी प्रकार 'लोक' शब्द भी अनेक स्थानों पर प्रयोग होता है॥ स्व: लोक, सूक्ष्म शरीर में, मणिपुर क्षेत्र में संकल्प जागृत होते हैं, मनुष्य पीछे नहीं हटता॥ वह जो बार-बार पीछे हट जाता है, फिर वह नहीं होता॥

हाँ पाचन क्षमता का प्रभाव आना वह स्थूल शरीर पर एक प्रभाव है॥ पर उसका प्रभाव हमारे मनोमय कोष पर , मन पर क्या है? वह है जीवट॥ इसीलिए अनुभवियों ने इस क्षमता को अनुभव करते हुए, आप देखते होंगे जब कभी यन्त्र देखते हैं चक्र देखते हैं उसमें बहुत सी geometry होती है॥ उसमें कमल के फूल भी हो गए, बीजमन्त्र भी कई सारे भर दिए, उनका उल्लेख भी मैंने पिछले सत्संग में किया था॥ केवल परिभाषा, एक-एक बीज पर मैं नहीं जाता, वह मेरा विषय भी नहीं है॥ आपने वहाँ पशु देखा मादा भेड़, देवियाँ देखी, हमने geometry देखी॥ क्या शरीर में इस प्रकार की geometries आकृतियाँ बनी हुई है इस प्रकार की? इस विषय पर तो मैं मौन रहना अधिक उचित समझूँगा॥ पर मैं यह कहूँगा कि ये वो भाव है जिन्हें लकीरों के द्वारा इस प्रकार प्रदर्शित किया गया जिससे जीव उनसे कुछ शिक्षण ले सके॥ हाँ कुछ लोग यथावत पूरी geometry को भी ध्यान में लाते हैं, उस geometry का ही ध्यान करना आरम्भ करते हैं, वह भी ठीक है, पर मूल मर्म उसके पीछे क्या है? everything wants to convey to say something, जैसे वह भेड़ मैंने बताया मणिपुर के क्षेत्र का प्रतीक भेड़ है॥ तब आप कहोगे वहाँ इतना सामान भरा हुआ है क्या? क्षमताएँ भरी हुई हैं उन क्षमताओं को एक पहचान देने के लिए, उन क्षमताओं का विवरण देने के लिए, जो खुली आँखों से दुनिया दिखती है वहाँ से प्रतीक उठाए गए हैं और जो नहीं दिखते हैं उनके लिए लकीरों से खींच दिए गए हैं ताकि अदृश्य जगत में होने वाले घटनाक्रम को दृश्यमान जगत में इसी माध्यम से समझाया जा सके॥ अत: जीवट का, न केवल पाचन क्षमता अपितु संकल्प शक्ति का भी जागरण इस साधना से होता है॥

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