Part - 13. तप निर्विकल्प मार्ग है जो जिसकी प्रचण्ड अग्नि विकारों को भस्मीभूत कर डालती - व्यवस्थित चिन्तन विचारों की शक्ति का आधार

Part - 13. तप निर्विकल्प मार्ग है जो जिसकी प्रचण्ड अग्नि विकारों को भस्मीभूत कर डालती - व्यवस्थित चिन्तन विचारों की शक्ति का आधार

व्यवस्थित चिंतन विचारों की शक्ति का आधार है

आज लगभग इस विषय पर प्रशिक्षण के 12 संस्करण हो चुके हैं, पूरा सब कुछ दोहराने की आवश्यकता नहीं है, नए जुड़े साधक पीछे जाकर के पढ़ सकते हैं॥ अब विषय आता है तप का॥ तप के विषय में इस जीवन में अध्यात्म पथ के साधक को जितनी भी घुट्टी पिलाई जाए उसे सदैव कम मानना, सदैव कम मानना॥ माया के आच्छादन और संस्कारों के प्रभाव के कारण, दोनों के कारण मनुष्य प्रकृतिवश अपनी पुरानी वृत्तियों में सहजता से फिसल जाता है॥ उत्कर्ष की ओर उबार के लाने के लिए तप ही एकमात्र विकल्प है॥ बिना तप भक्ति भी उदय नहीं हो सकती॥ तप उत्कर्ष का एकमात्र, एकमात्र निर्विकल्प साधन है॥ उसके उपरान्त साधक अनेकों धाराएँ अपना लेते हैं, चुन लेते हैं जिनमें भक्ति भी एक है॥ किन्तु तप के बिना वो पात्रता ही अर्जित नहीं होगी कि मनुष्य की मनोवृत्ति असफलताओं के होते हुए भी अध्यात्म के उत्कर्ष पर कदम बढ़ाते चले जाएँ॥ नहीं होगी, कितनी भी चेष्टा कर लो॥ वह पुन: बार-बार अपनी अतीत की वृत्तियों को प्राप्त हो जाएगा॥ इसीलिए यदि मनुष्य चाहता है कि मेरा आत्म उत्कर्ष निरन्तर बढ़ता चले तो तप आवश्यक है॥ और अब इस श्रृंखला में हम तप पर ही आ गए हैं॥

क्योंकि योजना और शक्ति दोनों चाहिए जिससे हम अपनी उस एक कमी को परास्त कर सकें जिसने जन्मों से जड़ जमाकर के अपने कुटुम्ब को साथ बसा लिया है॥ दुर्योधन एक आया साथ में 99 और कुटुम्ब के ले के आया॥ उसके समस्त कुटुम्ब को उखाड़ना है तो एक दुर्योधन की पहचान करनी होगी॥ बाहर का दुर्योधन आकार स्वरूप लेकर दिखता है॥ भीतर के असुर दिखते नहीं अरूप हैं अदृश्य हैं, भाव रूप हैं, विचार रूप हैं, वृत्ति रूप हैं॥ पर जैसे ही पहचान हो जाए उसे तप की शक्ति के साथ, योजना पक्ष हम बाद में लेंगे, पहले तप की शक्ति, तप की शक्ति से भस्म होना आरम्भ हो जाता है॥ आपका अपने ऊपर अधिकार आता है॥

तप क्यों करना चाहिए? तप मूलत: दो कारणों से करना चाहिए॥ क्या केवल दो कारणों से? बहुत हो सकते हैं, तप के लिए तो सौ कारण भी गिनाए जा सकते हैं, पर 2 कारण अभी के लिए, अभी इस विषय के लिए जानो॥ पहला - अपने ऊपर सबलता प्राप्त करना, अधिकार प्राप्त करना, Self Control स्थापित करना, यह तप के बिना नहीं हो सकता॥ दूसरा प्रयोजन क्या है? दूसरा प्रयोजन है पानी के बाँध की तरह अपनी ऊर्जा शक्ति को अनायास खर्च होने से बचाना जिससे उसके वेग से उसके Thrust से टरबाइन चलाकर के बिजली पैदा करेंगे॥ अर्थात जो हम करना चाहते हैं उस विषय पर हम कर पाएँ॥

अच्छा ऐसा क्यों होता है? एक उदाहरण देता हूँ, कल्पना करो तुम्हारे पास एक टॉर्च है, उस टॉर्च पर तुम एक काले रंग का मोटा कागज लगा दो, टॉर्च जलाते हो कुछ दिखाई नहीं देता॥ उसमें एक सुई से छोटे-छोटे छेद कर दो, फिर एक थोड़ा मोटी टिप वाला पेन लो और एक छेद बड़ा कर दो॥ अब टॉर्च जलाओ तो सबसे अधिक प्रकाश कहाँ से निकलेगा? जहाँ पेन की टिप से छेद किया क्योंकि वह बड़ा छेद है॥ मोटे छेद से प्रकाश अधिक निकलेगा और छोटे-छोटे छिद्रों से कम प्रकाश निकलेगा॥ यह मोटा छेद दुर्योधन है जो तुम्हारे भीतर के आत्मतत्त्व के प्रकाश को, आत्मबल को निरन्तर बाहर फेंक रहा है, उसे बन्द करना है, और उसे बन्द करने के लिए तप की व्यवस्था चाहिए॥ पानी को रोकने के लिए बाँध चाहिए जिससे उसमें वेग पैदा करें, Thrust पैदा करें, यह तप है॥ तप न केवल तुम्हें अधिकार देगा अपितु वह जो तुम्हारा भीतर का सबसे मुख्य शत्रु है उसे निर्बल करने में भस्म करने में बड़ी सहायता करेगा॥ तुम उसके फन पर पैर रख पाओगे॥ इतनी सामर्थ्य तुममें आ जाएगी पर यह बिना तप के सम्भव नहीं॥

क्या तप आसान है? सहज हो जाएगा? जिसे तप करना है वह पहले संकल्प कर ले इसका कि मुझे कितनी असफलताओं का सामना करना पड़ेगा, इसकी गिनती मैं कभी नहीं करूँगा, कभी नहीं करूँगा॥ मैं सफल होऊँ कि नहीं, हार नहीं माननी है, मैंने थकना नहीं है॥ जिस साधक ने यह कमर कस ली और यह जान लिया बस वह निरन्तर आगे बढ़ेगा॥ कितनी भी असफलताएँ आएँ आने दो॥ जन्मों से जड़ जमाए संस्कार से संग्राम करने में कुछ वर्ष लग गए तो लग गए, दशक भी लग गए तो लग गए॥ जितने भी वर्ष लग गए लग गए, पर एक बार तप की ठान ली और अपने ऊपर अधिकार के लिए Self Control करने के लिए निकल पड़े तो पीछे मुड़कर देखने की आवश्यकता नहीं॥ रोज असफलताएँ होंगी सैंकड़ों, और रोज उठकर के सामने आएगा, रुकेगा नहीं, मानेगा नहीं, यह उस तपस्वी का सौन्दर्य होना चाहिए॥ तप कौन सा करना है यह तुम चुन लेना इसमें व्यवस्थाएँ बहुत हैं, पर तुम तप करोगे इस विषय पर कमर कस लो॥ इस विषय को मैंने पूर्व में अनेकों बार लिया, आगे भी जब तक ईश्वर अवसर देगा, पता नहीं कितनी बार और लूँगा॥ क्योंकि यह निर्विकल्प है, तप के बिना उत्तरोत्तर प्रगति नहीं है॥ तप में असफलताओं के कारण कई बार साधक जन्मों तक संकल्प नहीं उठाते॥ यदि मनुष्य का कोई उत्कर्ष जन्मों तक नहीं हो पाता तो उसका कारण यह है कि वह असलता को शिरोधार्य नहीं करता॥ शिरोधार्य समझते हो न? सिर पर धारण करना Accept it at the depth, मनुष्य शिरोधार्य नहीं करता॥ एक बार असफल हुआ, हाय मेरे से नहीं होगा, छोड़ दो॥ नहीं, असफलता को स्वीकार करो और पुन: प्रयास करो॥ असफलता को स्वीकार करो और पुन: प्रयास करो॥ यह कार्य एक तपस्वी होने के नाते, एक साधक होने के नाते तुम्हें अपने गहरे स्तर पर उतारना है, जमा लेना है, यह निर्विकल्प है॥ यदि अभी तक कोई दुर्बलता है तो अपने आप को आड़े हाथों लेकर तप के लिए तत्पर करो॥

तप को लेकर मैं पूर्व में भी उल्लेख कर चुका कि क्या कैसे किस विषय पर, यह तुम सोचोगे, फिर भी मैं सहायता दूँगा॥ परन्तु उस निर्विकल्प मार्ग पर तुम्हें आना ही होगा, जिसकी शक्ति और ऊर्जा से तुम अपने भीतर के उस मुख्य दुर्योधन को परास्त करना आरम्भ कर दो॥ जिससे तुम्हारे 'व्यवस्थित चिंतन का आधार' बने, जिससे तुम्हारे विचारों में शक्ति का अवतरण होगा॥

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