तुमने अभी-अभी इस ध्यान में अनुभव किया होगा॥ यूँ तो ध्यान के चरम में एक बड़ी गहरी शान्ति का आच्छादन पूरे मस्तिष्क बल्कि पूरे शरीर पर आ जाता है, शान्ति का आच्छादन॥ मैं विशेष रूप से जो कह रहा हूँ उसे स्थूल रूप से अनुभव की बात कह रहा हूँ॥ हाँ विचारों में शून्य हो जाना निर्विचार हो जाना यह मन के धरातल पर, मस्तिष्क के धरातल पर अनुभव होता है पर शान्ति का आच्छादन स्थूल tangible वह शरीर के स्तर पर अनुभव होता है॥ शान्ति की वह अवस्था न केवल मन-मस्तिष्क अनुभव करते हैं शरीर भी अनुभव करता है॥ क्या स्थिरता के रूप में? हाँ स्थिरता तो है पर स्थिरता से भी कहीं अधिक शरीर को भी कुछ प्राप्त होता है॥ एक पूरी चादर सी ओढ़ जाती है पूरे अस्तित्व पर, उसी को मैंने शान्ति का आच्छादन सम्बोधित किया॥ मन, मस्तिष्क, काया तीनों उसके प्रभाव में आते हैं॥
यह ठीक है मन मस्तिष्क में निर्विचार ही अनुभव होता है, कुछ नहीं, कोई भाव नहीं, कोई कल्पना नहीं, विचार नहीं, स्मृति नहीं, कुछ भी नहीं बस शून्य॥ पर शरीर तो बेचारा इन बातों को नहीं जानता पर वह भी अपने स्वरूप में इस शान्ति का रसास्वादन करता है॥ एक विचित्र सी निष्क्रियता कह सकते हैं पर वह निष्क्रियता होती नहीं, शरीर भी उसमें एक उत्सव मनाता है॥ शब्दों में बहुत कुछ नहीं पर अनुभव में बहुत कुछ आता है॥ क्योंकि अभी-अभी आप ध्यान से बाहर आए हो इसलिए तात्कालिक स्तर पर उसे समझना और उसे अनुमोदन देने में सहजता होगी॥ बहुत कुछ एक साथ हो रहा होता है, शरीर और मन निश्चित रूप से अपने-अपने स्वरूप में शान्ति के आच्छादान को अनुभव करते हैं॥
गहरा मन जिसका सम्बन्ध सुषुप्ति से है, वह गहरा मन जिसे गहरी निद्रा में, स्वप्न विहीन, सुषुप्ति जैसी अवस्था में अनुभव करते हैं, इस शान्ति के अन्तराल में उसमें भी जागृत स्वरूप में एक access, एक मार्ग, एक अधिकार प्राप्त हो जाता है और अपनी सुषुप्ति के उस स्वरूप में अपने गहरे मन में उस शान्ति के द्वारा हम उतर जाते हैं॥ आरम्भ में सजग बोध कुछ नहीं होता कि सजगता से हम कह सकें अब हम चेतन में हैं, अब हम सुषुप्ति में हैं, अब जागृत में है॥ सजग रूप से तो कहना कठिन है क्योंकि सजगता की तो ये अवस्थाएँ हैं न? तो कई बार भेद नहीं कर पाते चूँकि हम लाँघ चुके होते हैं, नींद में लाँघने के बाद अनुभव नहीं होता पर उस समय हम सुषुप्ति में होते हैं जो अति निकट है उस महाचेतन के, निकट कह रहा हूँ मैं॥
ऐसे में जिस भाव को ध्यान में हमने छोड़ा होता है जिस भाव को, उस भाव की अनुरूपता में, उस अवस्था में कुछ घटता चला जाता है॥ जैसे हमने ब्रह्माण्डीय मन से ब्रह्म ऋषियों से जीवन का पथ प्रदर्शन मार्गदर्शन माँगा और हम गहरे ध्यान में उतरते चले गए॥ अब तो वह विषय ध्यान में नहीं है न कि हमने मार्गदर्शन माँगा? माँगा और आगे बढ़ गए; गहरी शान्ति के आच्छादन के अधीन हो गए और होते-होते लाँघ गए सीधा सुषुप्ति जैसी अवस्था में, गहरे मन में॥ अब बोध नहीं है पर सजगता का यह सौन्दर्य है कि वह छोड़े गए भाव के तदनुरूप accordingly सक्रिय होकर के बटोरती है॥ एकाएक तो अनुभव में नहीं आता पर कुछ समय उपरान्त, कुछ दिनों के उपरान्त बहुत कुछ हम स्वयं जानना आरम्भ कर देते हैं; मैंने इसका बहुत बार उल्लेख किया॥ यह सब कुछ वहीं से बटोरा गया होता है उस संवाद से॥ हमारे ही भीतर होता है और हम ही उससे अवगत नहीं है॥ क्योंकि उतनी सूक्ष्म हमारी अनभव क्षमता नहीं हुई कि हम उस अवस्था में भी तार-तार देख सकें, दृश्य करके जान सकें॥ जैसे इतनी गति हमारे पास नहीं कि हम गूगल पर छापे गए शब्द की खोज की पूरी प्रक्रिया को देख सकें; केवल परिणाम दिखता है बस outcome. मनुष्य के साथ भी ऐसा ही है ध्यान के प्रकाश में॥ बड़ा अद्भुत सौन्दर्य है विशेष रूप से ब्रह्म मुहूर्त्त ध्यान के उपरान्त जब तुम पहले से सजग हो जाओगे तो सम्भव है, सम्भव है आवश्यक नहीं, कि कुछ दिनों के उपरान्त प्रत्येक ध्यान से कुछ विलक्षणता भी बोध रुप से लेकर बाहर आओ॥ पर यह आवश्यक नहीं है चूँकि मन की अवस्थाएँ परिस्थितियों के अनुरूप बदलती हैं जिसके प्रभाव स्वरूप कई बार कुछ भी समझ में नहीं आता कुछ भी बोध में नहीं आता॥ जीवन केवल यह ब्रह्म मुहूर्त्त ध्यान के 55 मिनट ही तो नहीं है बाकी 23 घण्टे भी तो हैं उनका प्रभाव भी कई बार बहुत सशक्त आता है जो बहुत कुछ सामने नहीं आने देता॥ बहुत सार्थक यात्रा है