एक साधक ने पूछा साधना ही ईश्वर का परम प्रसाद कैसे है।
आत्मोत्कर्ष हेतु साधना के प्रति जल्दी से अभिरुचि जागृत नहीं होती है। लाभ ही लाभ पर आधारित सांसारिक मानस केवल तात्कालिक लाभ ही खोजता है। सामान्य मानस को संघर्ष और पराजय स्वीकार नहीं है। पर जब ईश्वर किसी को अपनी अनुकम्पा का प्रसाद देता है तो उस जीव के भीतर एक बहुत बड़ा परिवर्तन हो जाता है। ऐसे जीव की सर्वोपरि प्राथमिकता आत्मोत्कर्ष हो जाता है। ऐसे जीव को साधना में संघर्ष पीड़ा नहीं देता है। ऐसा जीव साधना में जय पराजय से ऊपर उठ कर निरंतर जुटा रहता है। यह साधना ही ईश्वर का परम प्रसाद है।