Part -29. अन्तर्जगत की परिपूर्णता से पूछो मेरी क्षतमताएं क्या हैं। व्यवस्थित चिंतन विचारों की शक्ति का आधार

Part -29. अन्तर्जगत की परिपूर्णता से पूछो मेरी क्षतमताएं क्या हैं। व्यवस्थित चिंतन विचारों की शक्ति का आधार

व्यवस्थित चिंतन विचारों की शक्ति का आधार है

श्रृंखला में 'आत्म विकास' हेतु जीव अपनी क्षमताओं को कैसे पहचाने? क्या चरितार्थ करने हेतु वह आया है? मनुष्य को अपनी क्षमताओं का पता लग जाए तो उसके द्वारा इस जीवन में बहुत सार्थक योगदान होते हैं, meaningful contribution and accomplishment. आवश्यक नहीं कि यह बात व्यवसाय की हो रही है what you should be in profession. वह अलग बात है अगर भीतर की क्षमता व्यवसाय में भी आ जाए तो बहुत अच्छी बात है अन्यथा सेवा के अनेकों प्रकल्प हैं there are many avenues for that. मनुष्य किसी भी माध्यम से सेवा देते हुए अपनी क्षमताओं के द्वारा इस जगत में सार्थक योगदान कर सकता है॥ अत: केवल यह सोचना कि by profession ही होता तो बात बनती है॥ आवश्यक नहीं जो बनना था, बन गए एक आयु आगे बढ़ गई॥ ठीक है जिनकी आयु छोटी है वे इन बातों में विचार कर सकते हैं पर जिनकी आयु आगे चली गई वे as a professional एकाएक, जिसे हम surgical intervention कहते हैं, जीवन में कहने सुनने में अच्छी पर करने में बहुत कठिन होती है॥ शल्य चिकित्सा के रूप में जीवन में किसी प्रकार का हस्तक्षेप करने में बहुत जटिल होता है॥ कहने सुनने में अच्छा लगता है, किसी का उदाहरण सुन लो अच्छा लगता है॥ इसलिए व्यवहारिक होकर ही बात करनी होगी॥ अत: क्षमताओं की पहचान अपने जीवन को अधिक सार्थक 'आत्मानो मोक्षार्थ जगत हिताय च' का पक्ष है; 'जगत हिताय च' के बिना 'आत्मानो मोक्षार्थ' सम्भव नहीं है; अन्यथा पुन: आना पड़ेगा॥ ईश्वर की रची हुई लीला में योगदान कहाँ किया? करना पड़ेगा, अत: 'जगत हिताय च' के लिए क्षमताओं की पहचान करना आवश्यक है जिससे हम सेवा कर सकें॥ आवश्यक नहीं मात्र आजीविका के लिए करें॥

अत: क्षमताओं के विकास हेतु, क्षमताओं की पहचान पर पिछले दो श्रृंखलाओं से बात आगे बढ़ रही है॥ कई बार संयोग बैठता है, कोई आसपास का व्यक्ति बहुत दबाव देकर यह बात कहता है कि तुझमें यह बात है॥ मैं सुन रहा था रजनीकान्त तमिल सुपरस्टार के विषय में, भारत के माननीय उपराष्ट्रपति द्वारा दादा साहब फालके पुरस्कार उन्हें अभी दिया गया॥ उसके उपरान्त दो शब्द कहने के लिए उन्हें कहा गया॥ मूलत: रजनीकान्त का नाम गायकवाड़ है सम्भवत: वह महाराष्ट्र से हैं पर वे तमिलनाडु में सुपरस्टार बने॥ रोडवेज की बस की नौकरी 1970 मे उन्हें मिली थी॥ जब वे बाद में अपना धन्यवाद प्रस्ताव, vote of thanks अर्थात अपने दो शब्द कह रहे थे तो उन्होंने जिनके प्रति आभार व्यक्त किया, कुछ लोग थे जिनके प्रति किया ब्रह्म ऋषि के प्रति भी किया॥ पर सबसे बड़ी बात है उन्होंने कहा मेरा उस ड्राइवर के प्रति मेरा उद्गार है, मैं कृतज्ञ हूँ I exprss my deep gratitude क्योंकि रोडवेज की बस में कंडक्टर बने थे॥ जिस ड्राइवर ने मेरे भीतर यह क्षमता पहचानी और मुझे बार-बार बोध कराया कि मेरी क्षमता कला की है, मैं अभिनय कर सकता हूँ॥ 1970 में दोनों एक साथ ही रोडवेज में भर्ती हुए॥ पर वह कहता था कि मुझे इसमें एक अलग चमक दिखती थी और उसे उसकी चमक ने ऐसा प्रभावित किया और वह ड्राइवर स्वयं प्रभावित होकर, बार-बार प्रभावित प्रेरित करता था कि तू अभिनय के योग्य है॥ बाकी आगे के संयोग हैं॥ बात क्षमताओं के पहचान की है॥ कई बार अपने निकट का व्यक्ति सुझाव दे देता है॥ आवश्यक नहीं कि हर बार ड्राइवर की भाँति बल देकर ही कहे॥ संयोग था ड्राइवर ने बल देकर कहा कंडक्टर को कि तू यहाँ के लिए नहीं बना; तुझे कुछ और बनना चाहिए॥

इसीलिए कई बार अपने आसपास के लोगों को भी थोड़ा बहुत अवश्य सुनना चाहिए॥ कई बार रंगी हुई दृष्टि से बोलते हैं पर कई बार नैसर्गिक पवित्र दृष्टि से भी बोलते हैं॥ गायत्री के हंस की भाँति विवेचना हमें करनी है॥ गायत्री का वाहन क्या है? what is the vehicle to gayatri क्या हंस पर कोई यात्रा कर सकता है? नहीं॥ फिर वाहन क्यों दिया? क्योंकि वाहन का अर्थ होता है कि जिस मनस्थिति में सवार होकर आप आगे बढ़ रहे हैं with what kind of mind you are going to steer. माँ दुर्गा को शेर दिया गया उसी प्रकार इष्ट शक्तियों को वाहन दिए गए॥ हंस नीर क्षीर विवेकी for discernment, discrimination and to distinguish, वह हंस है॥ गायत्री के हंस बनकर आप उसमें से चुनो क्या सार्थक क्या निरर्थक है॥ क्या यूँ ही मुझे खुश करने के लिए कह दिया या मुझ में ऐसा कुछ वास्तव में है? यह तो दर्पण बताएगा॥ हाँ इन बातों के लिए मनुष्य को एक दर्शन और करने चाहिए॥ मनुष्य के भीतर पूर्णता है, यदि हम विशुद्ध वेदान्त पर जाएँ, विशुद्ध वेदान्त जो कि है ही अकाट्य॥ इस पूरी पृथ्वी पर, पृथ्वी ही नहीं पूरे ब्रह्माण्ड में केवल चेतना consciousness सजगता awareness के अतिरिक्त कुछ नहीं है॥ वेदान्त के अनुसार there is nothing that exists in the entire cosmos, except consciousness. It is the will of the consciousness जो चाहती है कि मैं अलग-अलग स्वरूपों में मैं यह दुनिया देखूँ॥

यह बात हजम होती है? नहीं, आरम्भ में हो ही नहीं सकती, होनी भी नहीं चाहिए॥ यह वह सत्य है जो किसी ने पर्वत पर चढ़कर बोला 'अहं ब्रह्मास्मि' या जो मैंने कहा॥ पर अभी तो हम पर्वत पर नहीं चढ़े, जमीन पर खड़े हैं, सामने की चीज दूर तक दिखाई नहीं देती, उन्हें तो ऊपर से सब दिखाई दे रहा है॥ सत्य सुनते हुए भी जल्दी से माना नहीं जा सकता पर सत्य को नकारा नहीं जा सकता॥ और सत्य को नकारना नहीं इसके लिए एक बात गम्भीरता से जानो - हमें हमारे बारे में हमसे अधिक कौन बताएगा? कोई नहीं बताएगा॥ हमें हमारे बारे में हमसे अधिक कोई नहीं बताएगा॥

तो हमने अपने विषय में अपने आप से पूछा कभी?
कैसे पूछें?
खिचड़ी तो मस्तिष्क में पकती रहती है कल्पनाओं की, विचारों की, कामनाओं की न जाने how many turbulations there are so many इतनी जिसका हिसाब नहीं॥ मस्तिष्क क्या करता है? कुछ नहीं करता, मनुष्य का मस्तिष्क केवल एक chemical factory है हर घड़ी रसायन बनाता है, किसके आदेश पर? हमारे ही आदेश पर और उस केमिकल का आनन्द लेकर हम कहते हैं जीवन लीला चल रही है॥ हम ही आदेश देते हैं, हमारे ही आदेश पर वह रसायन बनाता है और सब कुछ उसी के आधार पर रचा जाता है॥ पर हम अपने विषय में अपने आप से जानने की चेष्टा नहीं करते॥ क्यों? हमें बताया ही नहीं गया॥ सच तो यही है, हमें कहाँ बताया गया कहाँ सिखाया गया कि हम अपने विषय में अपने आप से पूछें? मनुष्य को जो चीज कभी नहीं सिखाई गई, वह जो सबसे मुख्यत: सीखनी चाहिए उनमें दो बातें मुख्य हैं क्या? एकाग्रता concentration और दूसरा अपने आप से बात करना॥ हम इतना बहिमुर्खी हो गए कि सारी एकाग्रता बिखर गई और दुनिया को हम समझाना जानते हैं, अपने आपसे बात करना हमें नहीं आता॥ इतनी खिचड़ियाँ पकती हैं सोचकर, जो हाँकी जाती हैं बहुत चीजों से रंगी जाती हैं पर भीतर के संजय से बात करना नहीं हो पाता, किससे ? संजय से॥ कौन सा संजय? अरे जिससे धृतराष्ट्र तक, जो धूर्त्तता पर उतर आया है, वह भी पूछता है:
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवा:
मामका पाण्डवाश्चैव किम् कुर्वत संजय:॥
और आप इसे बदलोगे - मामका कौरवाश्चैव किम् कुर्वत संजय:॥

संजय से पूछो, संजय जिसकी सदा जय है, संजय जिसकी पराजय नहीं हो सकती वह संजय है॥ हे संजय! बताओ, मुझे मेरे बारे में बताओ मैं रंगी दृष्टि से नहीं पूछूँगा, तुम निष्पक्ष होकर जो तुम्हारा अस्तित्व है उसी पर आधारित होकर बताओ मेरे बारे में॥ यह कैसे सम्भव है? क्या केवल शीशे के सामने खड़े होने से हो जाएगा? नहीं होगा, क्यों? क्योंकि हस्तक्षेप करने वाला the intervening mind self has many layering's, मनुष्य की सजगता के बहुत से आयाम हैं इसलिए मनुष्य की सजगता के बहुत सारे अंश हस्तक्षेप करेंगे॥ तो फिर क्या करना है? इसीलिए मैं प्राय: कहता हूँ आकाश से कहो जब मैं कहता हूँ आकाश से कहो तो मेरा तात्पर्य होता है अपने भीतर के गहरे मौन में अपने अन्तर्जगत से कहो॥ कब कहो? विशेष रूप से प्रतिदिन ब्रह्म मुहुर्त्त के ध्यान के बाद का जो 8 मिनट का मौन होता है, लगभग we are in deep silence for around 8-9 minutes. 8-9 मिनट का यह जो मौन है यह वह समय है जब तुम अपने अस्तित्व के गहरे तत्त्व के समीप होते हो॥ उसके पहले से सोची समझी रणनीति के अनुसार वह भाव छोड़ दो कि मुझे मेरी क्षमताओं का बोध हो जाए॥ उस मौन में जाते हुए इस भाव को लेकर चले जाओ और छोड़ दो॥ उत्तर कब आएगा वह तुम्हारे वश में नहीं है अभी॥ वह अपने स्वरूप में अपने आप आएगा॥ तुम्हें क्या करना है? तुम्हें केवल एक काम करना है ॥ जब कभी मौन से बाहर आओ, अधिकांशत: ऐसा होता है कुछ समय उपरान्त तक उसका प्रभाव रहता है॥ जो मन में भाव आए उसे नोट कर लो॥ just write it down, somewhere, whereever, mobile, paper whatever, जहाँ से मिल भी जाए कल को, ऐसा भी होता है कि अक्सर सँभाल कर रखी चीजें ही नहीं मिलती॥ इसलिए अपने आपसे कहो, उस मौन के क्षणों मे जाते हुए इस भाव को लेकर प्रवेश कर जाओ॥ Before you submerge into the deep silence, leave a streak of this thought. मुझे मेरी क्षमता का, अपने भीतर की पूर्णता का बोध हो क्योंकि चेतना परिपूर्ण है, उसमें से न कुछ निकाला जा सकता है न कुछ जोड़ा जा सकता है न घटाया न बढ़ाया जा सकता है॥
ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात्, पूर्ण मुदच्यते, पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्णमेव विशिष्यते

you can never extract out of it nor add anything into it. its all a connivance of its own interplay. अपने आप में खेल रही है चेतना॥ खैर इस भाव को तुम सुनकर भी अनसुना करो पर वहीं रहो जहाँ मैं ले जाना चाहता हूँ॥ अपने भीतर गहरे मौन में जाने से पहले साधक, यह भाव सरकाते हुए slide through with this intent कि मुझे अपनी क्षमताओं का बोध हो॥ It may take several weeks even, क्या अन्तर पड़ता है? इतने जीवन जी लिया हर वर्ष कितने सप्ताह जीते हैं हम लोग? 52. दस वर्ष का हिसाब लगाओ तो 520 सप्ताह बीत गए तो यदि इस सत्य को जानने में कुछ सप्ताह और बीत जाएँ तो?

होगा क्या कि जिस दिन वह क्षमता पहचान में आ गई, ओह this is me. I was oblivion to it, मुझे पता ही नहीं था, तो क्या होगा? फिर आप उसे गम्भीरता से लेना शुरु करोगे॥ जब आप अपने भीतर आई हुई अपनी चेतना के अन्तर्जगत की एक क्षमता को पहचान करके उसे गम्भीरता से लेना आरम्भ करोगे तो वह चेतना अपनी अभिव्यक्ति का मार्ग स्वयं बनाएगी, to express itself, to manifest itself॥ वह फिर अपने आप रास्ता बनाएगी, संयोग जुड़ेंगे from nowhere; जिसे हम कहते हैं from nowhere वह हमें नहीं पता it is very well organized इसलिए तुम इतना काम करो बाबू, वेदान्त के इस सत्य पर आधारित होकर कि चेतना परिपूर्ण है, परिपूर्ण है॥ इस परिपूर्णता से अपने भीतर के वर्तमान अधूरेपन के उत्तर को प्राप्त करो॥ अपने भीतर के सामाधान को अपने भीतर की पूर्णता से प्राप्त करो॥ उस पूर्णता के सबसे अधिक निकटता, ध्यान के उपरान्त के मौन में होती है॥ होती तो सुषुप्ति में भी है जब आप गहरी तन्द्रा में होते हो पर उस समय बहुत कुछ प्राप्त नहीं किया जा सकता; हालांकि उसका भी निदान है॥ सुषुप्ति पर मैंने छोटी सी पुस्तक भी लिखी थी, सुषुप्ति योग पर पुस्तक भी उपलब्ध है कि सुषुप्ति के द्वारा आत्म निर्माण कैसे॥ पर यह उनके लिए अधिक काम करती है जो ध्यान नहीं लगाते॥ पर जो ध्यान का साधक है वह तो with awareness and all willingness इस काम को कर सकता है॥ अत: मेरा सुझाव मानकर के, और ध्यान रखना, क्षमता की पहचान केवल व्यवसाय के लिए नहीं है॥ I may be able to change a profession, no not necessary. तुम्हारे माध्यम से उस क्षेत्र की सेवा हो जाए कोई छोटी बात है? छोटी बात नहीं है॥ तुम्हारे माध्यम से उस क्षेत्र की सेवा हो जाएगी, तुम धन्य हो जाओगे॥ त्यौहार लक्ष्मी का आ रहा है, समृद्धि का आ रहा है, धन का आ रहा है॥ मैंने कल मंगल कामनाएँ भी दी थी॥ दैवीय सम्पदा, सम्पदा किसे कहते हैं?

मैं अभी इस बात पर हूँ कि क्षमता की पहचान का औचित्य क्या है? किसलिए what is the purpose? सम्पदा, धन किसे कहते हैं? केवल मुद्रा को नहीं, not only currency. जिसे आप केवल धन मानते हो उसका विशेष रूप से नाम तो currency है मुद्रा है अब वह भी डिजिटल हो रहा है॥ पर धन, क्या आत्मबल धन नहीं है, मनोबल धन नहीं है (दोनों अलग-अलग हैं), पशु धन नहीं है? सम्पर्कों का धन नहीं है? प्रतिभा धन नहीं है? कोई भी सम्पदा धन है आत्म सन्तोष भी बहुत बड़ा धन है॥ लक्ष्मी सम्पदा की स्वामिनी है क्योंकि वह नारायण की सेवा में, उसकी सेवा में है जहाँ से unmanifest, manifestation प्राप्त करता है, उसकी सेवा में है॥ समस्त सम्पदाएँ उसी के अधिकार में हैं इसीलिए लक्ष्मी है क्योंकि वह unmanifest की सेवा में है॥ Unmanifest ही हैं वे जो क्षीर सागर में बैठे हैं unmanifest का ही तो एक प्रतीक है जिसे आप nowhere कहते हो, अव्यक्त कहते हो, क्षीर सागर उसी का तो प्रतीक है नारायण, उनकी सेवा में जो होगा उसके पास सम्पदाएँ होंगी॥ अपने हिस्से की सम्पदा की पहचान के लिए अपने भीतर के अन्तर्जगत में जाना है, मेरी ओर से इस दीपावली की यही शुभकामनाएँ मान लेना॥ हालांकि दीपावली कल है और कल 5-10 मिनट के लिए मैं आऊँगा, पूरा पूजन नहीं, कुछ पूजन कराके मैं निकल जाऊँगा॥ लगभग 7 बजे लाइव जुड़ूँगा॥ यूँ तो दीपावली महारात्रि है पूरी रात्रि गायत्री अनुष्ठान कर सकते हो, मैंने भी किए हुए हैं॥ पूरी रात भी कर सकते हो, (केवल महारात्री के अवसर पर)॥

बात पर आते हैं विषय पर, इस सम्पदा के लिए अपने आप से इन क्षणों में पूछकर आगे बढ़ो और फिर नोट करना इस भाव को, सम्भव है कुछ समय उपरान्त आ जाए, ध्यान के 2 घण्टे बाद भी आ सकता है॥ कल भी हम करेंगे बात सत्संग की, क्योंकि सम्पदा का है न अपनी क्षमताओं की पहचान होने से बड़ा पिटारा,बड़ा खजाना कोई नहीं है बाबू, कोई नहीं है बेटा॥

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