ट्रांसक्रिप्शन अशोक सत्यमेव जयते
विचारों की सामर्थ्य पर एक यात्रा आरम्भ होकर आगे बढ़ रही है॥ विचारों की सामर्थ्य पर पाश्चात्य राष्ट्र भी बहुत कार्य कर रहे हैं॥ धीरे-धीरे उन्होंने जाना है कि एक महाशक्ति है जो स्थूल की भाँति अपने आप में विद्युत लिए हुए है॥ इसके अतिरिक्त और भी बहुत कुछ पाश्चात्य राष्ट्रों के शोध में उन्हें पता लगना आरम्भ हो गया है॥ हम इसे मनोमय कोष की दृष्टि से पढ़ रहे हैं जो बहुत ही विकसित विज्ञान है॥ अत्यंत विकसित विज्ञान जो मनोमय कोष की दृष्टि से विचारों का अध्ययन और विचारों की सामर्थ्य शक्ति को प्राप्त करना चाहता है॥ हमारी दृष्टि प्राचीन भारतीय मनीषा के संदर्भ से है॥
विचारों में शक्ति, विचारों में सामर्थ्य तब जन्म लेती है जब विचार व्यवस्थित हो जाएँ॥ हमारा चिंतन व्यवस्थित हो जाए Organized हो जाए॥ अन्यथा हमारे विचार न केवल गहरी अभिरुचि के कारण अपितु विचित्र प्रकार की अभिरुचियों के कारण भी भटकते रहते हैं॥ यह भी एक विचित्र अभिरुचि है मैं हजारों हजारों प्रकार में से केवल एक का उदाहरण दे रहा हूूँ॥ कोई चुटकुला सुनने के उपरान्त हम दूसरों को हँसता हुआ देखना चाहते हैं॥ सब हँस रहे हैं पर हम यह पुष्टि करना चाहते हैं कि अन्य लोग हँस रहे हैं॥ इसी की पुष्टि अधिकांशत: जब कभी कोई हास्य की घटना टीवी पर भी दिखाते हैं तो हँसने वालों को उसके साथ अवश्य दिखाते हैं या उसमें कृत्रिम हँसी भी भरते हैं॥ यह एक विचित्र सी अभिरुचि है जिसे हमने अपने भीतर बहुधा अनुभव नहीं किया होगा॥
ऐसी एक नहीं ऐसी हजार अभिरुचियाँ हैं जो विचित्र हैं॥ गहरी अभिरुचियाँ Deep Interests एक तरफ, पर विचित्र अभिरुचियाँ जो निराधार अभिरुचियाँ हैं, उनकी बहुत बड़ी संख्या है॥ इन गहरी अभिरुचियों के कारण और विचित्र अभिरुचियों के कारण मनुष्य के चिंतन में प्राय: अस्थिरता रहती है॥ विचारों की शक्ति जन्म कैसे ले? जब इतनी विचित्र अभिरुचियाँ भटकाने के लिए तत्पर हों, प्रतिपल तत्पर हों, तो मनुष्य के भीतर की सामर्थ्य जन्म ले ही नहीं सकती, असंभव है॥
एक उदाहरण बहुत प्राचीन हो गया कि Magnifying Glass आतशी शीशा, उसमें से सूर्य की किरणों को निकाल के कागज पर डालिए कागज जल जाएगा, यह उदाहरण बहुत पुराना हो चुका॥ पर इस उदाहरण को जितना जीवंत करके हम विचारों के संदर्भ में अनुभव करेंगे, यह उतना ही सटीक, उतना ही प्रबल उदाहरण है॥ सूर्य की बिखरी रश्मियों की तरह ही हमारे भीतर का सूर्य भी बिखरा हुआ है॥ जैसे वह सूर्य प्रकाशित करता है और उसके प्रकाश से कहीं कुछ जल नहीं रहा॥ वह तो फिर भी पृथ्वी का अपने सौरमंडल का पोषण करता है, पालन करता है पर हमारे बिखरे विचार न पोषण न पालन, केवल भटकाव मात्र भटकाव, इसके अतिरिक्त कुछ नहीं॥ तो वह सामर्थ्य जन्म कहां से ले? उस मैग्नीफाइंग ग्लास में से होकर के जब वही सूर्य की बिखरी रश्मियाँ इस पूरे ग्रहमंडलों में फैली सूर्य की रश्मियाँ, थोड़े से हिस्से पर केवल और केवल उस शीशे के मुश्किल से 1 स्क्वायर इंच से भी कम क्षेत्र की ऊर्जा को प्रकाश को घनीभूत करके Focus करके कागज पर डालते हैं, कागज जल जाता है॥ इतनी बड़ी क्षमता है किसी चीज को व्यवस्थित करके एकत्रित करके घनीभूत करना॥ यह उदाहरण और लेज़र का उदाहरण मैंने अनेकों बार दिया,और आपने भी सैंकड़ों बार सुना होगा॥
यह बहुत शाश्वत है लेज़र भी तो एकत्रित, व्यवस्थित प्रकाश की किरणें हैं जो लोहा भी काट दें॥ अन्यथा प्रकाश बिखरा है बस केवल प्रकाशित करेगा इसके अतिरक्त कुछ नहीं॥ उसमें सामर्थ्य तब आती है जब व्यवस्थित हो जाए॥ लेज़र क्या है? प्रकाश की व्यवस्थित किरणें ही लेज़र हैं॥ उसी प्रकार मनुष्य के चिंतन में जब व्यवस्था आ जाती है तो वह लेज़र के प्रभाव से युक्त हो जाता है॥ व्यवस्थित विचार तंत्र यह सिस्टम, व्यवस्थित मस्तिष्क का चिंतन, मनुष्य का चिंतन जब व्यवस्थित हो जाए उसमें अद्भुत शक्ति जन्म ले लेती है॥ यह बात हमें अपने आप को गहरे से समझानी है, जाननी नहीं है॥ हम बचपन से यह सब सुनते हुए, यह सब कुछ जानते हुए आ रहे हैं॥ क्या केवल जानते और सुनते ही रह जाएँगे? क्या इसी में जीवन लीला समाप्त हो जाएगी? नत्थूलाल, अब तो तुम्हें जागना होगा॥
नत्थूलालजी, अब समझ से ऊपर उठकर के इस विश्वास की प्राण प्रतिष्ठा करनी होगी॥ चिंतन को व्यवस्थित करना है, यह आपका उद्देश्य होना चाहिए॥ आपके इस उद्देश्य की पूर्त्ति हेतु ही यह सारा प्रशिक्षण आधारित है॥ यह अब सत्संग के रूप में प्रशिक्षण चल रहा है, कहने को सत्संग पर है यह पूरा प्रशिक्षण, सत्संग के स्वरूप में प्रशिक्षण है यह॥ जितनी भी उपासना, साधना है यह चिंतन को व्यवस्थित करने के लिए है॥ उपासना में ध्यान आ गया, उपासना में जप आ गया॥ ये दोनों के दोनों मिलकर के उपासना के अंग हैं, और इनका क्या कार्य है? व्यवस्था देना॥ और साधना क्या है? हाँ हम इन्हें भी साधना के नाम से ही संबोधित करते हैं मोटे रूप से, पर अगर विशेष रूप से इसे गहराई से समझना हो तो उपासना में ध्यान, और जप आ गया॥ पर साधना में आएगा आपका मनन, और जिस मनन के लिए मैं सत्संग मे आप को प्रेरित कर रहा हूँ, आप को जागृत कर रहा हूँ कि आप इस पर मनन कीजिए॥
आप जानते हो इन बातों को बचपन से जानते आए, कुछ बना? नहीं बना॥ तो छूट क्या रहा है? छूट रहा है उनका अपने जीवन में प्राण प्रतिष्ठा करना उन्हें अपनाना, यह छूट रहा है॥ इसलिए जाने हुए सत्य से कुछ नहीं होने वाला॥ आप कोई भी चीज चबाकर के फेंक दीजिए, उसका पोषण आपको प्राप्त होने वाला नहीं है॥ पोषण तभी प्राप्त होगा जब भोजन खा कर के गले से नीचे पेट में जाएगा॥ इसी प्रकार किसी सत्य को बचपन से जानते आए, बस चबाया और फेंक दिया, भीतर नहीं गया॥ अब भीतर ले जाने का समय है॥
चिंतन को व्यवस्थित करना हमारा इस प्रशिक्षण का उद्देश्य है, और चिंतन को व्यवस्थित करने के लिए हमें साधना करनी है॥ साधना मनन की, ऐसा मनन जो हमारे भीतर परिष्कार परिशोधन कर दे, विकारों को दूर कर दे, भस्म कर दे समाप्त कर दे, ऐसे परिशोधन हेतु॥
कैसे होगा यह परिशोधन? यह साधना कैसे होगी? इसके भी अपने व्यायाम हैं॥ जैसे हर एक एक्सरसाइज एक विशेष प्रकार के कार्य को करती है॥ जिम जाने वाले लोग जानते हैं कि अगर सैंकड़ों मांसपेशियां हैं 100s of muscles, तो एक-एक मांसपेशी के लिए भी भिन्न प्रकार की कसरत है एक्सरसाइज है॥ Physiotherapy इसका एक जीवन्त उदाहरण है॥ उसी प्रकार मनन को, चिन्तन को व्यवस्थित करने के लिए, चिंतन में शक्ति लाने के लिए जहाँ उपासना में जप और ध्यान का बहुत बड़ा महत्व है वहीं उतना ही बड़ा महत्त्व साधना के व्यायाम का है॥ जप और ध्यान हो गया, अब साधना का व्यायाम नहीं होगा तो भीतर परिष्कार नहीं होगा, अन्यथा जो जप और ध्यान में एकाग्रता प्राप्त हुई, चिंतन व्यवस्थित किया, बाहर का जीवन जीना आरम्भ करेंगे तो बिखर जाएगा॥
एक उदाहरण मैं बहुत अच्छा देता हूँ अपने गुजराती भाई का॥ वह कहते थे, "दिनेश भाई सुबह 11 माला किया॥ 11 माला करके उठा, पहला फोन आया 11 माला खत्म॥ एक फोन में खत्म, सब गया पानी हो गया॥ तात्पर्य यह कि उपासना, से ध्यान से जप से, जो एक व्यवस्था चिंतन को प्राप्त हुई, वह अगर जीवन रूपी साधना में उसके प्रति क्षमता नहीं है, तो पानी हो जाएगा बेकार हो जाएगा॥ इसलिए हम इस पूरे प्रशिक्षण को व्यवस्था दे रहे हैं॥ चिंतन को व्यवस्था देकर विचारों की शक्ति को जन्म देना, उपासना अर्थात जप ध्यान जिसका एक भाग है और दूसरा महत्त्वपूर्ण भाग जिसके बिना सब अधूरा है वह साधना है॥ साधना हेतु हमें मनन के व्यायाम करने होंगे, 'Exercise of certain Contemplation', कुछ मनन करने होंगे, जब तक ये मनन नहीं होंगे तब तक यह व्यायाम नहीं होगा॥ तब तक हमारे भीतर के चिंतन की व्यवस्था स्थाई नहीं होगी, टिक नहीं पाएगी, और टिक नहीं पाएगी तो प्रभाव भी नहीं दे पाएगी॥
कल हमने पढ़ा था कि मनुष्य के जीवन में सफलता प्राप्ति हेतु 6 घटक, 6 बिन्दु, बहुत महत्वपूर्ण हैं जिनमें उद्यम Entrepreneurship, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति, पराक्रम का उल्लेख आया॥ इन 6 घटक, 6 बिन्दुओं पर लेख भी प्रकाशित करके आपको भेज दिए॥ अब समय है मनन पर व्यायाम आरम्भ करने का जिससे हम आने वाले समय में इस प्रकार के व्यायाम के द्वारा आगे बढ़ें॥ अब आपको एक एक्सरसाइज दी जाती है:
श्रीमद भगवत गीता पहला श्लोक रट कर के कल सुबह मेरे पास क्लास में पहुँचना॥ यह आप सबका होमवर्क है॥ आपके होमवर्क के लिए अपना समय आपको स्वयं निकालना है॥ श्रीमद भगवत गीता का पहला श्लोक गहरे रूप से स्मरण करना है॥ उसका संदर्भ क्या है? उस के संदर्भ में आपके चिंतन को व्यवस्था देना, आपके विचारों को शक्ति देना, आप की उपासना के अतिरिक्त, यह साधना पक्ष का बहुत बड़ा व्यायाम है॥ मनोमय कोष के परिष्कार हेतु यह बहुत बड़ी युक्ति है॥ आपको इस प्रथम श्लोक को याद करके कल बैठना है॥ जब मैं कहूँ मुझे सुनाओ तो मुझे सुनाने के लिए उपस्थित रहने चाहिए और आप सब मुझे सुनाएंगे, इमानदारी से॥ मैं आपको देख पाया कि नहीं देख पाया, मैं नहीं देख पाया तो क्या हुआ? जिन्होंने मुझे बैठाया है वे देख पाएंगे, आकाश देखेगा आपको, तो आप बोलेंगे॥ कल की कक्षा में पहला श्लोक याद करके रट कर आना मुझे नहीं पता कैसे करोगे॥ फिर वहीं से परिष्कार के व्यायाम की, साधना की, चिंतन को व्यवस्था देने की, विचारों में अद्भुत शक्ति को जन्म देने की, सामर्थ्य की यात्रा आरंभ होगी॥ दरवाजे के भीतर हम चले गए॥ अब यह प्रशिक्षण गंभीर होता जाएगा महत्वपूर्ण होता जाएगा और इससे बहुत लाभ होगा|