Part - 26. आत्म विकास हेतु मनोमय कोष की एक साधना - व्यवस्थित चिन्तन विचारों की शक्ति का आधार

Part - 26. आत्म विकास हेतु मनोमय कोष की एक साधना - व्यवस्थित चिन्तन विचारों की शक्ति का आधार

व्यवस्थित चिंतन विचारों की शक्ति का आधार है

आज वर्तमान में श्रृंखला का 25वाँ भाग है॥ इस पाँच स्तर की प्रणाली में हम चौथे स्तर 'आत्म विकास' पर पहुँचे॥
मनोमय कोष की एक गहन साधना को सीखना है प्रतीति में सरल साधना है, पर गहन साधना है॥ मुझे इसका अभ्यास थोड़ा बहुत है अधिक नहीं है॥ मैंने अभ्यास किया हुआ है पर निरन्तर नहीं है॥ जिन्हें व्यवस्थित चिंतन के अन्तर्गत प्रगति करनी है आगे जाना है, उनके लिए मनोमय कोष की कुछ साधनाओं में यह विशेष रूप से बड़ी सहायता करती है॥ आरम्भिक चरण के साधक के लिए इसकी कुछ आगे की भी स्थितियाँ हैं, मैं तो अनुभव कभी नहीं कर पाया क्योंकि मैं आगे बढ़ा ही नहीं पर इसकी जो स्थितियाँ है जिसमें योगी वायु से सब प्राप्त करके शरीर का पोषण कर सकता है॥ मैंने केवल ऐसा सुना है, न अनुभव किया, न सामने देखा, सुनते आए हैं॥

साधना कैसे है? इसे 'रस साधना' कहते हैं॥ रस अर्थात जिसे अंग्रेजी में juice भी कहते हैं॥ तो क्या यह 'रस साधना' जूस पीना है? नहीं, जूस भी पी सकते हैं पर केवल जूस नहीं पीना॥ रस से तात्पर्य इस जिव्हा इन्द्रिय से है॥ मन की समस्त बिखरी हुई शक्तियों को इस जिव्हा के माध्यम से केन्द्रीभूत करना है, कैसे? तकनीक बहुत सरल है, इतनी सरल कि आप कहोगे कि "अच्छा इससे हो जाएगा?"॥ उदाहरण के लिए मान लीजिए, आपने सेब लिया, काटकर मुँह में रखा, चबाया रस लिया बाकी का ढककर रख दिया॥ जो रस आया उस रस की स्मृति के आधार पर उस रस को जिव्हा पर अब कुछ देर निरन्तर अनुभव करना है continuously for some more time. आरम्भ में वह स्मृति जल्दी से धुँधली होगी कम हो जाएगी॥ कैसा था वह रस का स्वाद? हम्म, फिर याद करने का मन होगा, एक और टुकड़ा मुँह में रखो, उसका रस लो, उसके स्वाद को अपनी जिव्हा के साथ अच्छी पहचान कराओ॥ let them get introduced well, second time. उसके उपरान्त आप सेब खा जाओगे॥ अब उस अवधि को और आगे बढ़ाओ जिसमें सेब के वही स्वाद जो दूसरी बार परिचय कराया, उसे अब और सजीव करो लम्बे समय तक let it live for longer duration. समाप्त हो जाएगा, तीसरा टुकड़ा उठाओ और इस प्रकार अभ्यास करो॥ सेब का मैंने उदाहरण दिया, आप कोई अन्य फल अथवा मन पसन्द वस्तु ले सकते हो॥ 15-20 मिनट की यह साधना है॥ आरम्भ में आप इतना समय नहीं दे सकते तो 10 मिनट भी पर्याप्त हैं, 15 मिनट कर सकें तो ठीक है॥ क्या प्रतिदिन करना है? यह साधना ऐसी है कि प्रतिदिन सहजता से हो जाएगी, कयोंकि यह स्वाद से जुड़ी है भोजन से जुड़ी है॥ भोजन के उपरान्त आप कोई न कोई पदार्थ ऐसा जोड़ लीजिए जिसमें आप इस साधना को उस समय भी कर सकते हैं॥

जिन्हें भोजन के समय करने में कठिनाई हो वे किसी अन्य समय कर सकते हैं॥ कई बार भोजन के उपरान्त कई सारे स्वाद सक्रिय होते हैं सजीव होते हैं, एक को पकड़कर साधना में लय बनाना लीन होना कठिन लगता है, तो आप कुछ और समय चुन लीजिए पर ऐसा नहीं कि इसे ब्रह्म मुहुर्त्त में ही करना है॥ समय की सुविधा आपके पास है आप कभी भी करो पर आपको इस रस साधना में एक रस की स्मृति को अपनी जिव्हा पर सजीव करना है॥ धीरे-धीरे जब यह अभ्यास पकने लगेगा तब पदार्थ की उपस्थिति के बिना without having anything in hand, फिर आप केवल स्मृति से उसके स्वाद को वैसे ही सजीव करने की चेष्टा करो as if you have it before you right now its there on your toungue जिव्हा पर वह है अभी॥ इस प्रकार शहद ले सकते हो, अदरक ले सकते हो, कुछ भी, जो साधक के लिए शाकाहार खाने योग्य है॥ फिर बिना पदार्थ के उसे सजीव करने की चेष्टा करो॥

यह साधना सफल हुई इसे तब मानना, इसका स्केल दे रहा हूँ, जब बिना पदार्थ लिए भी आप उसके रस को अपनी कल्पना के द्वारा अपनी जिव्हा पर पूर्ण रूप से सजीव रख सको for about next 10-15 मिनट, तब मानना, तब यह जानना कि यह साधना सफल हुई॥ यह सरल इसलिए प्रतीत होगी क्योंकि भोजन से जुड़ी है इसके लिए कहीं और से ध्यान बटोरकर नहीं लाना, जो बटोरना है वह स्थूल में है खाने का पदार्थ सामने है, वह मीठा है खट्टा है कड़वा है जैसा भी है उसका एक विशिष्ट गुण है जिसे जिव्हा पहचान कर परिचय लेती है॥ अत: मन की बिखरी क्षमताओं को जिव्हा पर केन्द्रीभूत करना सहज है इसीलिए इसे 'रस साधना' के नाम से सम्बोधित किया॥ आप इसे भली प्रकार कर लोगे इसमें कोई सन्देह नहीं है॥

यह मनोमय कोष की साधना है॥ मेरे ब्रह्म ऋषि का दिया हुआ ज्ञान है, पुरानी प्राचीन काल की साधना है॥ योगी इसके माध्यम से अपनी रसेन्द्रिय को भी धीरे-धीरे संयमित करते हैं, मन को भी एकत्रित करते हैं, बिखरे मन को बाँधने के लिए व्यवस्था देते हैं॥ मन को एक स्थान पर स्थिर करने के लिए यह बहुत सुन्दर साधन है॥ क्योंकि यह स्थूल में इन्द्रिय के माध्यम से मन के भटकाव को बाँधने की चेष्टा है॥ यदि 10 मिनट तक पदार्थ के रसास्वादन को आपने पूर्ण रूप से सजीव किया to enliven that experience of the same taste for another 15 minutes, that matters उसका अर्थ निकलेगा॥ आप देखोगे उसका कितना बड़ा प्रयोजन है॥ आप अपने मन को व्यवस्था दे पाओगे, मन की अनेकों क्षमताओं को उस जिव्हा के माध्यम से एकत्रित कर पाओगे॥ वस्तुत: मन का बिखराव ही बटोरा जा रहा है, जिव्हा और पदार्थ माध्यम बन रहे हैं॥ रस तो केवल एक धारा है रस की धारा से मन के बिखराव को जिव्हा पर लाकर के बाँध रहे हैं॥ जिसका प्रभाव फिर व्यवस्थित चिंतन में आता है क्योंकि मन को टिकना, स्थिर होना, एक भाव पर आरूढ़ रहना आ गया तो फिर वह अन्य प्रकार के चिंतन में भी स्थिर रहना आरम्भ करता है॥ अत: इस साधना को आप आज से ही आरम्भ कर दें प्रशिक्षण तो आगे चल निकलेगा॥ प्रशिक्षण तो यहाँ नहीं रुकेगा प्रशिक्षण आगे चल निकलेगा॥ इस साधना के माध्यम से परिवर्तन कहाँ कर रहे हैं हम? अपने मनोमय कोष में, आपके सूक्ष्म अस्तित्व में, आपके मनोमय कोष में, यह साधना मनोमय कोष की है बाबू॥

व्यवस्थित चिंतन विचारों की शक्ति का आधार , यह साधना उसकी है॥ उसके माध्यम से विकास कैसे होगा, यह तो हम अगली कक्षा में देखेंगे, पर यह साधना समझ में आ गई होगी॥

   Copy article link to Share   



Other Articles / अन्य लेख