व्यवस्थित चिंतन विचारों की शक्ति का आधार है
यह साधना मनुष्य के समूचे अस्तित्व का परिष्कार करने में सबल है॥ आत्मविकास के लिए पर्याप्त रूप से कहा गया, अब आगे बात आत्मनिर्माण पर आती है॥ वे क्षमताएँ जो हमारे भीतर जन्म से नहीं आई पर होनी चाहिए, उन्हें अपने भीतर विकसित करना आत्मनिर्माण की श्रेणी में आता है॥ यहाँ बात क्षमता की है, skill स्किल और क्षमता का भेद जानना होगा॥ कई बार क्षमताएँ स्किल के माध्यम से भी आती हैं॥ skill अर्थात जो बाहरी विद्याएँ हैं, लौकिक विद्याएँ उन्हें skill के नाम से सम्बोधित करते हैं, जबकि 'क्षमताएँ' वे हैं जो हमारे अन्तर्जगत में हैं, हमारी सजगता की क्षमताएँ॥ skill के माध्यम से भी अन्तर्जगत की क्षमताओं को विकसित करने में सहायता प्राप्त होती है, पर एक सीमा तक उससे आगे नहीं, बहुत थोड़ी सीमा तक उससे आगे नहीं॥ जैसे उदाहरण के लिए किसी को निर्भय बनाना है, उसे आप जलते हुए कोयले पर चला करके कुछ समय तक निर्भय रख सकते हो॥ जैसा बहुत सारी वर्कशॉप में कोयले के जलते हुए अंगारों पर चलाते हैं, पैरों में कुछ नहीं होता और वह दुस्साहस भीतर के भय को समाप्त करता है॥ हाँ करता है, पर वह उस समय करता है कुछ समय तक, उसके उपरान्त उसका प्रभाव समाप्त हो जाता है॥ क्योंकि भीतर का अन्तर्जगत जिसकी जड़ें बहुत गहरी हैं, वहाँ परिवर्तन नहीं हुआ होता॥ तो skill अर्थात बाहरी विद्याएँ एक सीमा तक अन्तर्जगत की क्षमताओं को विकसित करती है पर विशुद्ध रूप से कर पाने में सफल नहीं हैं, करती हैं पर एक सीमा तक॥
आत्मनिर्माण की श्रेणी से मुझे अपने भीतर क्या निर्माण करना चाहिए?
यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है जिसका उत्तर वस्तुत: जीव को स्वयं ही खोजना पड़ेगा॥ यूँ तो सारे समाधान उसे स्वयं ही खोजने हैं पर आत्मनिर्माण में कोई बहुत बड़ा सुझाव नहीं दिया जा सकता॥ बहुत बार मनुष्य को पता होता है कि जन्म से यह क्षमता मेरे भीतर नहीं आई॥ मेरी अभिव्यक्ति बहुत कमजोर है Ability to express उदाहरण के लिए, 'I cannot express मैं समझा नहीं पाता हूँ', 'मेरे भीतर वह बात है नहीं कि मैं कर पाऊँ', 'मैं इतना सहन नहीं कर सकता', 'इतना सहन करना मेरे बस का नहीं है', 'इतना प्रयास करना मेरे बस का नहीं है मैं इतना प्रयास नहीं कर सकता', 'मेरे बस का यह सब कुछ करना नहीं है, आप करते होंगे मेरे बस का नहीं है'॥ मनुष्य जब सामान्य विषयों पर ऐसा कह देता है, बड़े विषयों पर नहीं सामान्य विषयों पर, कि 'मेरे बस का नहीं है'॥ जीवन की सामान्य, विषम परिस्थितियों में नहीं critical situations में नहीं, सामान्य परिस्थितियों में जब मनुष्य कह देता है 'नहीं मेरे बस का नहीं है', तो कहीं न कहीं यह अनुमान हो जाता है कि 'यह क्षमता मेरे भीतर नहीं है I am not able to develop this'. कई बार हम उद्दण्ड होकर कहते हैं कि मेरे बस का नहीं है मुझे नहीं करना॥ बात अन्तर्जगत की क्षमताओं की हो रही है जिनका थोड़ा सा उल्लेख मैंने किया॥
मनुष्य को उन क्षमताओं को विकसित करने के विषय में गम्भीर हो जाना चाहिए॥ एक बार आप गम्भीर हो गए तो उसके बाद एक जादू होता है magic होता है॥ क्या magic होता है? आप किसी क्षमता को विकसित करने के लिए अपने भीतर जागरूक हो गए, और आप वह सम्पूर्ण तप, मनन के रूप में संयम के रूप में जो तप आप करते हो, जो कुछ अभी तक इस पूरी श्रृंखला के 31 भाग में अब तक कहा गया, तो
'स्वत: ही वे क्षमताएँ आपकी केवल एकमात्र इच्छा से, विकसित होना आरम्भ हो जाती हैं'॥
और मैं यह यूँ ही नहीं बोल रहा हूँ, हो जाती हैं॥ यूँ ही नहीं बोल रहा हूँ, शब्द मेरा बहुत गहरा होता है, जिसका तात्पर्य होता है - अनेक प्रकार से यह अनुभूत सत्य है, स्वयं में और अन्य में भी॥ अत: केवल एक सोच, एक विचार कि 'मुझे यह क्षमता अपने भीतर विकसित करनी है'॥ उसके प्रति केवल एक गम्भीर भाव और बाकी जितना भी इस श्रृंखला के 31 भाग के अनतर्गत दिया गया तप ईत्यादि; तप भाव है विचार है, वह स्वत: इतना सबल होता है कि मनुष्य के भीतर से उस क्षमता को बाहर लाता है विकसित कर देता है॥ मैंने इसे बहुत निकटता से अनुभव किया हुआ है, बस यदि इसके लिए भाव जीवित रख लिया॥
यह लौकिक क्षमताओं की बात नहीं है॥ लौकिक क्षमताओं के क्षेत्र में तो जब तक आप करते नहीं, अभ्यास नहीं करते, सीखते नहीं, वह skill आ ही नहीं सकती॥ In the worldly affairs outward, if you want to learn something, be perfect in something, you have to slog, you have to do it, learn practice etc. अन्यथा इसके बिना लौकिक स्तर पर वह स्किल कभी नहीं आएगी॥ अध्यात्मिक स्तर पर अन्तर्जगत की क्षमताओं में जो क्षमता जन्म से आपमें नहीं है, उसके प्रति गम्भीर भाव आपने विकसित कर लिया तो सत्य जानना कि यह पीछे बताए हुए 31 भाग के अन्तर्गत का समूचा ज्ञान स्वत: उस क्षमता को आप में से प्रचण्ड प्रकट कर देगा और आपमें वे परिवर्तन स्वत: होने आरम्भ हो जाएँगे and you will experience that magic happening into your owns self. यह आत्मनिर्माण है जो क्षमता मैं जन्म से ही नहीं लाया उसे मुझे इस जीवन के पूर्ण होने से पूर्व कम से कम एक क्षमता तो विकसित करनी है॥ और उनकी पहचान स्वयं जीव को हो जाती है॥ मैंने उल्लेख दिया कुछ क्षण पहले, और वह क्षमता विकसित हो जाती है और करनी है, जिससे हम और अधिक अपने आप को चरितार्थ करें॥ हाँ, अन्तर्मुखी होकर तो क्षमताएँ तो विकसित होनी हैं॥ क्षमताएँ दो प्रकार की हैं 1) जो अन्तर्जगत में सक्रिय होंगी 2) जो बाह्य जगत में सक्रिय होंगी॥ जैसे अभिव्यक्ति ईत्यादि बाह्य जगत से जुड़ी है, धैर्य अन्तर्जगत से जुड़ा है पर दोनों संचालित भीतर से ही हैं॥ एक का सक्रिय स्वरूप बाहर है एक भीतर सक्रिय है पर हैं दोनों भीतर से ही॥ यह भाव मात्र ही मनुष्य में बताए गए तप के अनुसार जो श्रृंखलाओं में बताया गया है, स्वत: बाहर प्रचण्ड होना आरम्भ हो जाता है॥
मनुष्य की जीवात्मा पर आवरण का खेल बिलकुल वैसा है जैसा किसी बहुत पुराने बर्तन पीतल के बर्तन पर बहुत कालिख चढ़ गई, काला सा पड़ गया॥ आपने उसे मांझना आरम्भ किया किसी डिटर्जेन्ट से, नींबू से, किसी कठोर चीज से उसे रगड़ना आरम्भ किया॥ आप रगड़ना आरम्भ करेंगे, उस पीतल की चमक बाहर आती चली आएगी॥ जो उसकी स्वाभाविक चमक है, पॉलिश पेण्ट नहीं, जो स्वाभाविक चमक है वह बाहर आएगी॥ आप केवल थोड़े से क्षेत्र में उसे चमका कर देखेंगे तो जमीन आसमान का अन्तर दिखेगा, बाकी के बर्तन में और उतने हिस्से में जिसे आपने रगड़ कर साफ किया॥ जीवात्मा के साथ भी बिलकुल यथावत है॥ जिन-जिन क्षेत्रों में हम रगड़ते जाते हैं वहाँ से भीतर के प्रचण्ड सूर्य का दर्प बाहर आना आरम्भ हो जाता है॥ ब्रह्म ज्ञानियों में वह पूरा पात्र चमक चुका होता है सर्वस्व प्रकाश है, सम्पूर्ण प्रकाश है॥ अत: साधक, यह भाव गम्भीरता से ध्यान करते हुए आत्मनिर्माण के विषय पर भी मनन करना॥ यूँ तो यह श्रृंखला माँग करती है कि अब इसके विषय में तुम्हारी व्यक्तिगत डायरी बन जानी चाहिए॥ इस पूरी श्रृंखला को सबके लिए खोल दिया॥ बहुत से साधक इस विषय पर अपनी डायरी बना रहे हैं॥ मैं उस लड़की की प्रशंसा करना चाहूँगा॥ मारुति के किसी शोरूम में नौकरी करती थी॥ कोरोना में उसके दोनों मालिक चले गए॥ परिवार ने कहा अब घर बैठ जाओ, घर बैठ गई॥ महाराष्ट्र में कहीं है वह लड़की॥ और उसने, घर बैठकर वह यूँ नहीं बैठी, आप आश्चर्य करेंगे, मैं भी उसकी हृदय से बहुत प्रशंसा करता हूँ॥ यह पूरा लेख जो मैं रोज बोलता हूँ, यह मैंने केवल दो बार उसका लिखा प्रकाशित किया उसके बाद transliteration कहीं और से होकर आ रही थी॥ वह प्रतिदिन स्तर पर इस पूरे वक्तव्य का पूरा लेख बनाकर मुझे रोज भेजती थी जो प्रकाशित भी नहीं होता है॥ और वे सारे के सारे लेख जो उसने बनाएँ हैं मैं कभी साधो साधो लिख देता हूँ कभी नहीं लिखता हूँ॥ अनुभव रोज करता हूँ, उसने, 'सुजाता केलकर' नाम भी दे रहा हूँ, उसने पूरी गम्भीरता से सब लेख संकलन बनाया है उसकी अपनी डायरी बन गई है॥ मैं तो इस सत्संग को करने के बाद अगले किसी सत्संग के विषय पर निकल जाऊँगा॥ मैं अध्यापक हूँ मुझे पढ़ाते चले जाना है पर कुछ बातें कुछ लोगों के लिए बहुत गहरा महत्त्व बन जाती हैं, एक landmark बन जाती हैं जो उसे अपनी डायरी में नोट करते हैं फिर अपने आप में उसे खोजते हैं॥ फिर वे निश्चित रूप से वह करते हैं जो ईश्वर उनसे कराना चाहता है, मैं केवल माध्यम बनता हूँ॥
इसीलिए सारे लेख खोलकर रख दिए गए हैं इन पर सर्वाधिकार असुरक्षित है Copyright Unprotected है॥ इस पर कोई भी व्यक्ति, चाहिए तो यही कि जितने साधक जुड़े हैं वे सब अपना ब्लॉग आरम्भ करें गूगल वर्डप्रेस कहीं भी ब्लॉग बनाएँ और ये सभी लेख अपने ब्लॉग पर प्रकाशित कर दें॥ यह अनुमति मैं दे रहा हूँ on record, अपने नाम से भी प्रकाशित करो, मुझे अन्तर नहीं पड़ेगा॥ मेरे पास जिनका आया है उन ब्रह्म ऋषियों ने मुझसे कॉपीराइट थोड़ी माँगा है॥ इसलिए आपको अनुमति है, 'सर्वाधिकार असुरक्षित' है इस पूरी लेख श्रृंखला को अपने नाम से अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करो, ताकि अन्य विश्व भी पढ़ सके॥ आप अपने नाम से इसकी पुस्तक भी छाप कर किसी को देना चाहो कि मैंने लिखी है, आप अपने नाम से पुस्तक लिखकर दे सकते हो॥ मुझसे अनुमोदन भी लेना चाहो तो मुझसे लिखित अनुमोदन भी ले लेना कि कल को कहीं इन लेखों का कॉपीराइट ना माँग लें॥
'व्यवस्थित चिंतन विचारों की शक्ति का आधार' - यह आत्म निर्माण की बहुत बड़ी कक्षा है॥ अत: गम्भीरता से इसके निमित्त इसकी डायरी कम से कम बनाओ॥ ब्लॉग बनाओ न बनाओ तुम्हारी इच्छा, डायरी अवश्य बनाओ जिसमें अपने आप को इस पूरी श्रृंखला में खोजना होगा॥ अब इसके प्रीमियर शुरू होने वाले हैं॥ जितने भी सत्संग थे उनके प्रीमियर नहीं हुए, अब उनके प्रीमियर शुरु होंगे॥ रोज शाम को यह श्रृंखला एक महीने तक चलती रहेगी॥ अभी मैं और मनन में हूँ कि इस पर 1-2 और एपिसोड मैं दे सकूँ॥ बल्कि इस पर प्रश्नोत्तर के लिए भी, मेरे पास लगभग केवल 1000 साधकों के लिए, केवल 1000 साधकों का मैं इसका बैच लूँगा जो इस पूरी श्रृंखला पर अपने प्रश्न कर पाएँगे॥ केवल श्रृंखला पर, अपने भाव साँझा करेंगे॥ एक हजार साधक, कोई शुल्क नहीं है इसका, हालांकि हमें लगभग 8-10 हजार प्रति माह देना पड़ता है, 1000 साधकों का zoom पर कार्यक्रम करने का॥ कोई बात नहीं वे संसाधन हैं, हमने कभी शुल्क नहीं माँगा उसके लिए न ऐसी आवश्यकता है॥ आप 2-3 दिन इसे पढ़ लो , दोहरा लो, फिर प्रश्नोत्तर अथवा परस्पर चर्चा के लिए कार्यक्रम करेंगे॥ monitoring कार्यक्रम के सभी साधकों को ईमेल भेज दी जाएगी॥ आपमें से जो भी आ सकें, First come first serve basis पर रहेगा क्योंकि साधकों की संख्या तो बहुत है परन्तु Zoom पर कार्यक्रम के लिए मेरे पास 1000 की क्षमता की सीमा है॥ हम अधिकतम 500 और अलग सत्र में रख लेंगे पर अभी निश्चित नहीं कह सकता॥ पर इसे प्राण प्रतिष्ठा हम देंगे॥