शोर में भी मन स्थिर करने की एक युक्ति
मन को ढीला करने का एक उपाय, साधना काल में नहीं सामान्य काल में। कहीं भी, ..कहीं भी मन को ढीला किसी भी परवेश में सरल तरीके से..आंख बंद कर बाहर की जितनी BHI ध्वनियां है उनको सुनना आरंभ करो और एक एक करके उन्हें सुनने का प्रयास करो। प्रातः के समय इसे करोगे तो ध्वनियां लगभग नहीं होंगी पर सामान्य परिवेश में बाहर कहीं ज़ब ध्वनिया बहुत होती है और तुम उनके बीच में होते हो उस समय का यह प्रयोग है।
अपने आपको उन ध्वनियों के प्रति सजग करो, आँखे बंद करके जो जो सुनाई दें वह सभी सुनना आरम्भ कर दो।कहीं पर किसी की रोचक गपशप हो रही होंगी तो हो सकता है की वह आपको हाँक कर के ले जाए, अन्यथा सामान्य बातचीत अन्य ध्वनि के स्रोत भली प्रकार एक - एक करके अनुभव करना आरंभ करों। उन सभी आने वाली ध्वनियों में अलग-अलग भेद करते हुए हर प्रकार की ध्वनि को सुनो। अलग-अलग भेद करते हुए सुनो। एक साथ सुनने का प्रयास मत करना। मन ढीला पड़ना आरम्भ हो जाएगा।
मन कभी भी किसी भी अवस्था में स्थिर नहीं रह सकता। उसे स्थिरता पसंद नहीं है। उसे अस्थिरता चाहिए। अस्थिरता मन को बड़ी प्रिय है। उसे और अगर कहो कि तुझे तेरे हिस्से की अस्थिरता की चलो सैर कराते हैं तो वह भागने लगता है। ऐसा क्यों? चूँकि यह मन उस युवा बच्चे की भांति है जिसे अब आप चीजें दिलवा के खुश नहीं कर सकते। उसको तो अब पैसे चाहिए। उसको अभी अपने हाथ में, अपनी जेब में पैसे चाहिए।
जो बच्चा 13 से 18 साल के बीच की आयु में आ जाते हैं उनका मन इसी प्रकार का होता है। 13 से आरम्भ आयु बड़ी विचित्र होती है। इस आयु के बच्चों को आप चीजे दिलाकर प्रसन्न नहीं कर सकते। उन्हें तो पैसा चाहिए और वह भी उनके अपने हिस्से का।
आप मन को कहो की चल तुझे संगीत, गपशप, सब जो तुझे अच्छा लगता है वो कराते है। ऐसा सुनते ही उस समय मन ढीला पड़ना आरम्भ हो जाएगा। दिन में यह प्रयोग करके देखना और तुम जैसे ही आस पास की ध्वनियाँ सुनकर बाहर आओगे तो पाओगे की तुम स्थिरता बटोरकर लाए हो। इस प्रयोग को करके देखना। ट्रांसक्रिप्शन सुजाता केलकर