पूर्व में भी मैंने इसे दोहराया, बहुत बार दोहराया और आज भी आवश्यकता है॥ मेरे ब्रह्म ऋषि ने मेरी आँखों में आँखें डालकर कहा "क्या यह दुनिया उतनी है जितनी दिखती है बेटा?" मैं चुप रहा॥ "बेटा न दिखने वाली दुनिया, दिखने वाली दुनिया से कई-कई गुणा बड़ी है"॥ ये उनके शब्द थे, आगे पीछे का प्रसंग कोई विशेष नहीं था जिस प्रकाश में वे कह रहे थे॥ कई बार अचानक कोई विषय उठाकर कह देते थे और मैं यह सोचता था कि उन्होंने आज ऐसा क्यों कहा॥ क्या ऐसी कोई बात चल रही थी? नहीं, फिर? उनके मन में आया होगा अचानक॥ तो यह भी उन्होंने ऐसे ही एक दिन कहा था॥ इसमें कोई सन्देह नहीं है "न दिखने वाली दुनिया, दिखने वाली दुनिया से कई-कई गुणा बड़ी है"॥
अध्यात्म के साधक को इसका आभास धीरे-धीरे होने लगता है और इसमें कोई आश्चर्य का विषय भी नहीं है॥ मनुष्य के पदार्थ जगत में भी कई प्रकार के अस्तित्व हैं॥ एक जल को ही ले लो, जल जम जाए तो बर्फ सामान्य रहे तो तरल, और यदि भाप बन जाए evaoprate हो जाए तो वायुमण्डल में व्याप्त और फिर वायुमण्डल में बादल बनकर पुन: बरसता भी है॥ एक ही जल स्वरूप बदलता है न? जब प्रत्यक्ष है तो तरल और बर्फ रूप में दिखाई देता है पर जब वह अपने स्वरूप को बदल कर वाष्प बन जाता है तो अदृश्य हो जाता है दिखाई नहीं देता॥ वर्षा के रूप में पुन: दिखाई देता है पर बीच का अन्तराल जब वह वाष्पीकृत है उसका अदृश्य स्वरूप है इसी प्रकार पदार्थ जगत में भी हम देखते हैं कि बहुत सी चीजें अपने स्वरूप बदलती हैं॥ दृश्यमान जगत visible world से अदृश्यमान जगत invisible world और फिर पुन: उनका अवतरण manifestation यह सम्भव है॥ इसी सिद्धान्त पर जाकर के अर्क ईत्यादि बनाना यह आयुर्वेद का विज्ञान हमारे यहाँ इसी पर ही आधारित है॥ औषधियों को पानी में डालकर उबालो और फिर ठण्डा करके पुन: उनका अर्क उनका तत्त्व एकत्रित कर लो॥
अत: यह विश्वास गहराई से होना चाहिए कि न दिखने वाली दुनिया उतनी नहीं है॥ विशेष रूप से अध्यात्म के साधक को यह विश्वास होना चाहिए॥ सामान्य व्यक्ति बुद्धि के धरातल पर संशय के अधीन बहुत कुछ मानेगा बहुत कुछ नहीं मानेगा॥ पर अध्यात्म पथ का साधक उससे विशेष रूप से आशा की जाती है क्योंकि उसने अनुभव के कुछ चरण पार कर लिए हैं॥ जिसने अनुभव ही नहीं पाया उसका संशय करना बिलकुल उचित है पर जिसने अनुभव पा लिए, जिसने देखा कि मेरे जीवन के चलने वाले घटनाक्रम में कहीं न कहीं से कोई ऐसा हस्तक्षेप आता है जो आकर के मुझे मार्गदर्शन दे जाता है मुझे सँभालता है मुझे कहीं न कहीं प्रेरित करता है, यह केवल मात्र दिखने वाला जगत ही नहीं, इसके अतिरिक्त भी कुछ है॥ यूँ तो आधुनिक विज्ञान भी अदृश्य जगत की सत्ताओं पर विश्वास करना आरम्भ कर चुका है, कुछ शोध इस प्रकार के भी हैं जिन्हें हम पता नहीं क्या नाम दें, hidden science कहें या science of frontiers कहें मैं नहीं जानता क्या नाम दें, पर हाँ उसके अन्तर्गत मनुष्य के सूक्ष्म अस्तित्व को भी उन्होंने बहुत गहराई से भाँप लिया है॥ यह मैं केवल NDE की बात नहीं कर रहा हूँ और भी बहुत कुछ है ऐसा जो जन सामान्य में उस रूप में बाहर नहीं दिया गया परन्तु सत्य है॥ मनुष्य के अस्तित्व के अतिरिक्त भी अत्यन्त विराट दुनिया है॥
यह सारी बात एक ही प्रकाश में है केवल एक ही प्रकाश में - जब हम ध्यान की गहराईयों में विशेषत: ब्रह्म मुहूर्त्त ध्यान में जब ब्रह्म ऋषियों को भाव जगत में हम स्मरण करते हैं तो निश्चित रूप से अपने भाव के अनुरूप उस जगत के सम्पर्क में आ जाते हैं; जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन्ह वैसी॥ हम तत्काल उनके जगत के सम्पर्क में आते हैं जिसकी गति इतनी है कि कोई नाप ही नहीं सकता beyond time. उनके सम्पर्क में आकर उसके उपरान्त हमारी उस समय ध्यान की परिपक्व अवस्था the mature state जो शान्त है, स्थिर है उसमें अस्थिरता नहीं है, बुद्धि का हस्तक्षेप नहीं है, ऐसी अवस्था में हम किसी सोचे गए विषय पर जब मार्गदर्शन माँगते हैं पहले से निर्धारित जो विषय है उस पर मार्गदर्शन माँगने के लिए एक बार बस केवल एक बार अपनी बात सरका कर हम मौन हो गए तो वह जगत सक्रिय होकर अपना कार्य करता है॥ उसे उत्तर खोजने में कोई समय नहीं लगता, समाधान वहाँ पहले से ही उपलब्ध है॥ मनुष्य तक आकर के उन्हें decode decipher होने में या यूँ कहें परिलक्षित होने में समय लग जाता है॥ साधक की अपनी अवस्था हो सकता है इतनी परिपक्व न हो कि वह तात्कालिक रूप से उसे समझ सके, पर यह भी सत्य है अभी नहीं तो कुछ दिनों के उपरान्त उसे अपने विषय से जुड़े हुए मार्गदर्शन प्राप्त होने आरम्भ हो जाते हैं॥ वे सारे समाधान जो अन्यथा बाहर से सम्भव न होते, वे उसे प्राप्त होने लगते हैं॥ बहुत सी स्पष्टता प्राप्त होती है और भी बहुत कुछ होता है॥ यह इसलिए कहा क्योंकि यह तत्त्व आकाशीय मन से संवाद, उस सूक्ष्म जगत से भाव अनुरूप संवाद करना यह वास्तविक गुरू तत्त्व है गूढ़ता को धारण करने वाला, मार्ग की बाधाओं को निर्मूल करने वाला॥ जिसका पता क्या है? अखण्ड मण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरं - जो अखण्ड मण्डलों में चर अचर animate inanimate में व्याप्त है, वह जड़ में भी है चेतन में भी है॥ उसके अस्तित्व को बाँध नहीं सकते कि गुरू तत्त्व जड़ में नहीं होगा वह जड़ में भी व्यक्त हो सकता है॥
अखण्ड मण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरं। तत्पदं दर्शितं येण तस्मै श्री गुरवे नम:
यह उनका आभास है, यह उनका पता है। इस भाव के साथ जब हम अपने ब्रह्म मुहूर्त्त ध्यान के उपरान्त किसी भी विषय पर समाधान हेतु उपलब्ध होते हैं तो कोई कपोल कल्पित नहीं है यूँ ही नहीं है अपितु यह बहुत सार्थक क्रिया है इसमें पारंगत होने पर धीरे-धीरे साधक को बहुत सारे विषयों पर मार्गदर्शन और समाधान प्राप्त होते हैं॥ मैं बार-बार इस विषय को क्या दोहराउँ, बहुत दोहरा चुका॥