नाभिकमल ध्यान - आपकी मेल से अवगत हो रहे हैं कि आपको इससे अच्छा लाभ हो रहा है॥ ब्रह्म मुहुर्त्त में आए हुए साधक, जो ध्यान से जुड़ गए उनके लिए साधना को आरम्भ करने का सबसे उपयुक्त क्षेत्र है - नाभिकमल का क्षेत्र॥ वे अब तत्पर हैं भीतर कि मुझे बाँधने वाले सारे कारण अब समाप्त हों॥ मेरे वे सभी संस्कार जो किसी न किसी प्रकार मुझे मेरे संकल्प पर टिकने नहीं देते, मुझे मेरे उत्कर्ष हेतु स्थिर नहीं होने देते, मुझे डिगाते हैं और मुझे उन्हें परास्त करना है॥
उत्कर्ष किसका होता है? उसका जो वर्तमान अवस्था से दु:खी है असन्तुष्ट है, दु:खी अर्थात असन्तुष्ट है कि मैं ऐसा नहीं रहना चाहता, नहीं चाहती, मुझे उठना है मुझे उत्कर्ष चाहिए॥ ऐसा जीव निश्चित ही उत्कर्ष प्राप्त करेगा क्योंकि छटपटाहट है॥ यह केन्द्र छटपटाहट वालों के लिए है, इससे नीचे के दो केन्द्र छटपटाहट वालों के लिए नहीं हैं, यह केन्द्र छटपटाहट वालों का है॥ मनुष्य को अवगत नहीं होता कि सूक्ष्म स्तर पर उसकी अवस्था कहाँ पहुँची हुई है॥ किन्तु निश्चित रूप से जो अध्यात्म पथ पर आ गया उसकी प्रगति कितनी हुई यह बात अलग है; उसकी अभिरुचि और छटपटाहट ये दोनों साथ-साथ चलते हैं॥ वह मणिपुर के क्षेत्र में आ चुका, मैं क्षेत्र बोल रहा हूँ यह सदैव ध्यान रखना, मैं चक्र नहीं बोल रहा॥ मैं चक्र जागृत की बात नहीं कर रहा, क्षेत्र की बात कर रहा हूँ॥ चक्र की जागृति से पूर्व क्षेत्र में बहुत कुछ होता है, जिसके आभास भी प्राप्त होते हैं और जिसकी साधना के लाभ भी प्राप्त होते हैं कुछ तो अनायास, अपने आप स्वयं प्राप्त होते हैं॥ उसी प्रकार इस नाभिकमल के क्षेत्र का उल्लेख है॥
साधक थोड़ा बहुत आहार का ध्यान रखते हुए, मैं बहुत नहीं कहूँगा, थोड़ा बहुत संयम रखे, कभी थोड़ा मन माना और कभी थोड़ा संयम साथ-साथ; इतने भर से भी बहुत प्रगति हो जाती है॥ जो एक समय का आहार या सीमित आहार लेते हैं उन्हें तो उपवास की आवश्यकता नहीं है, बाकियों को सप्ताह में एक बार उपवास आवश्यक है॥ जो 3 समय भोजन करते हैं 3 meals a day, उन्हें इन साधनाओं से लाभ लेने के लिए सप्ताह में एक बार उपवास आवश्यक है॥ जो एक समय या दो समय तक भी सीमित हैं वे उपवास न भी करें तो आवश्यक नहीं है॥ उनके लिए तो fasting hours पर्याप्त हो ही जाते हैं, अन्न पच जाता है पर तीन बार भोजन करने वाले को सप्ताह में एक दिन का उपवास आवश्यक है॥ यूँ तो मैं एक बहुत सामान्य बात कर रहा हूँ पर मणिपुर क्षेत्र का है तो आप इसे जोड़कर ही जानें, सामान्य बात है कोई विशेष नहीं है यह॥ पर आप इसे अभी मणिपुर क्षेत्र के सत्संग के प्रकाश में ही अनुभव करिए कि आपको सप्ताह में एक दिन उपवास रखना है॥ दिन आप की इच्छा का हो सकता है॥
यदि प्राण के अर्जन की दृष्टि से देखो तो सबसे उत्तम दिन उपवास के लिए सबसे टेढ़ा होता है, और वह रवि का वार है रविवार॥ कोई बन्धन नहीं है मैं मात्र उल्लेख कर रहा हूँ॥ सबसे उत्तम दिन उपवास के लिए सबसे टेढ़ा है, और वह रविवार है॥ टेढ़ा किसलिए? क्योंकि छुट्टी का दिन होता है और परिवार के साथ कुछ न कुछ आहार का भी समावेश होता है॥ ठीक है आवश्यक नहीं है, शनिवार छोड़कर आप सोमवार से लेकर शुक्रवार तक कभी भी करें॥ पर मैने उल्लेख किया प्राण की दृष्टि से, गायत्री की दृष्टि से रवि का वार उपवास के लिए सबसे उत्तम होता है॥ एक समय भोजन करने वाले का तो उपवास ही है॥ पर उस दिन आप चाहो तो और भी थोड़ा सा हल्का सुपाच्य रख सकते हो जिसका सबसे अच्छा उदाहरण अमृतासन है॥ जिसका प्रयोग हम लोगों ने सभी प्रकार के जितने भी कार्यक्रम किए, अगर बाद में कोई प्रीति भोज या भण्डारा किया है और मुझसे पूछ लिया गया तो, सामान्यत: मैं हस्तक्षेप नहीं करता, पूछ लिया तो मेरी एक ही choice होती है अमृतासन॥ जो डालना है एक ही बर्तन में डाल दो और उसे पका दो और उससे सुपाच्य कुछ नहीं बनता, अद्भुत खिचड़ी की तरह बन जाता है॥ मैंने इसका अभ्यास प्रतिदिन नहीं, विशेष रूप से ऐसे आयोजनों के लिए 40 वर्ष से किया है॥ अत: आप आहार की दृष्टि से भी उपवास के दिन यदि केवल फल पर नहीं रखना चाहें तो उस दिन आप अमृतासन ले लें, खिचड़ी की तरह, वह पर्याप्त है॥ यह रोज भी खाया जा सकता है, पर रोज न भी चाहो तो जिस दिन आप उपवास करें उस दिन कर सकते हैं॥
यह सब कुछ इसी नाभिकमल के प्रकाश में कहा जा रहा है यह ध्यान रहे॥ इसी के प्रकाश में और आगे की कोई साधना के लिए अब हम नहीं जाएँगे॥ आगे के लिए साधनाएँ हठयोग की हैं, आप कहोगे आपने की हैं? नहीं, मैंने नहीं की, मेरा क्षेत्र हठयोग नहीं है॥ मैं गायत्री के मार्ग पर हूँ और मैंने पूर्व में भी कहा - इस पृथ्वी पर कोई भी साधना, वाम मार्गी अथवा दक्षिण मार्गी, गायत्री से सम्भव है॥ अन्यथा महामन्त्र कहने की आवश्यकता वेद के अन्तर्गत भी नहीं थी कि वेदों ने इसे माता मान लिया; वेद की जननी है यह, वेद की जननी imagine. अत: बहुत सहज रूप से एक सद् गृहस्थ होते हुए आप वह सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं जो अन्यथा हठयोग के द्वारा बहुत तीव्र, उग्र और खतरनाक साधनाओं से प्राप्त किया जाता है॥ यह निश्चित है, अकाट्य है यह॥
इस क्षेत्र की साधना के उपरान्त भी साथ-साथ अनुभूतियाँ चलती हैं॥ यूँ तो पहले से ही आपको अनेक प्रकार की अनुभूतियाँ आती रहती हैं पर एक विशेष प्रकार की और भी अनुभूतियाँ जुड़ती हैं॥ जिसमें से केवल एक का उल्लेख मैं करूँगा बाकी नहीं, बाकी फिर साधक अपने अन्दर टटोलते रहते हैं॥ अनुभूति का विषय बहुत खतरनाक है, साधक को लम्बे संघर्ष तक हतोत्साहित करता है - 'मुझे यह अनुभूति नहीं हो रही, मुझे नही हो रही'॥ एकपुष्टि मैं कर सकता हूँ, उसका उल्लेख मैं कर देता हूँ॥ इस क्षेत्र के लिए मैं जागरण शब्द तो नहीं कहूँगा, स्पन्दन कह देता हूँ फिलहाल, से मनुष्य में एक अकाट्य विश्वास उत्पन्न होता है कि जो कुछ कहा जा रहा है कि दुनिया इतनी नहीं बहुत बड़ी है, सूक्ष्म जगत सत्ताएँ, यह यूँ ही नहीं कहा जा रहा, है कुछ, मुझे पता है अथवा नहीं पता है, मैंने देखा है अथवा नहीं देखा, मेरे अनुभव में आया कि नहीं आया, पर यह मिथ्या नहीं है॥ जैसे मुर्गा बाँग देता है न, वैसा मनुष्य में आत्मविश्वास आ जाता है कि सूर्य है और आएगा॥ अन्यथा इससे पूर्व साधक असमंजस में त्रिशंकु बना घूमता है, पता नहीं 'है भी कि नहीं', 'कहीं यूँ ही तो नहीं सब चल रहा?', 'है भी क्या?', 'होता भी है?', न तो दिखा आज तक न सामने कुछ आया आज तक! सब कुछ आसपास उलटा ही हो रहा है, जिसे देखो उलटे लोग सफल, सीधे लोग उलटे पड़ रहे हैं, कुछ है भी? यह असमंजस समाप्त हो जाता है, नहीं सब कुछ है, सब कुछ है॥ एक विश्वास और जगता है कि यदि कहीं कुछ गलत भी हो रहा है तो उसका कारण यह नहीं कि ईश्वर का विधान है कि गलत हो॥ उसके पीछे कारण यह है कि जो सही कर सकते थे, उनकी न्यूनता है उनकी कमी है॥ अब वह चाहे काल, महाकाल के प्रभाव के अन्तर्गत आई बुद्धि की उत्कर्ष की अवस्था हो under the evolutionary cycle, अथवा अन्य कुछ भी हो, ईश्वर दोषी नहीं है, यह बहुत गहरा विश्वास आ जाता है॥ अविश्वास के कारण समाप्त हो जाते हैं, कुछ दिखा कि नहीं दिखा irrespective of that उससे अलग होकर के, अविश्वास समाप्त हो जाता है॥ नहीं, अविश्वास करने की सम्भावना अब नहीं है॥
इसीलिए इस मणिपुर क्षेत्र के ध्यान को हम थोड़ा और आगे, आगे अर्थात इसके स्तर को और आगे नहीं ले जाएँगे॥ उतना उल्लेख आपको दे दिया गया जितना आपको करना है, उससे आगे नहीं॥ उससे आगे साधनाएँ बहुत हैं किताबें भरी पड़ी मिल जाएँगी पर काश सभी कुछ किताबों से हो जाता॥
अत: मेरा निवेदन यह है कि आप आहार की दृष्टि से सजग होकर सप्ताह में एक दिन उपवास रखें॥ वह साधना जिसका उल्लेख कल भी किया था सत्संग में, 5 से 11 बार, प्रात: एक समय खाली पेट अवश्य करें॥ कल मैंने गलती से दिखाने के लिए कि साँस छोड़ कर करना है, वह मैंने जो उस समय दिखाया, मैं सम्भवत: अनजाने में साँस जोर से छोड़ गया॥ वैसा नहीं करना, सहज श्वास छोड़ने के बाद पेट पिचकाना है॥ आप कहोगे साँस छोड़ने के बाद पेट पिचक जाता है॥ आप छोड़ के देखो पेट पूरा नहीं पिचकेगा॥ एक सीमा तक पिचकता है बाकी का आपको पुरुषार्थ से पेट पिचकाना पड़ता है जिसमें श्वास नहीं छूटेगी तो भी पेट पिचकाओगे॥ श्वास छूटने के बाद की बात हो रही है, श्वास छूट गया उसके बाद पेट पिचकाया जा रहा है, समझ गए? उसके बाद पेट पिचकाया जा रहा है, और रुकना नहीं है पेट पिचकाया, उस बिन्दु को अनुभव किया जो नाभि की सीध में रीढ़ में है॥ बैठे हुए स्थिति में पेट मोटा होता है इतना नहीं जाता पर पिचकाओगे तो उसे रीढ़ पर स्पर्श का आभास होगा॥ पिचकाया, रोकना नहीं और पेट खोल दिया॥ पेट खोलने के बाद ढीला छोड़ने के बाद, ढीला छोड़ने के बाद, साँस भरो॥ इसमें साँस आरम्भ में थोड़ा सा हाँफता है॥ कोई बात नहीं, बीच में एक सामान्य साँस ले लो, फिर जारी कर लो॥ फिर हाँफ सकता है कोई बात नहीं, फिर दूसरी बार एक सामान्य साँस ले लो, फिर जारी कर लो॥ इस प्रकार 5 से 11 बार खाली पेट करना है॥ इससे अधिक तीव्र क्रियाओं में नहीं जाना, तीव्र क्रियाओं में नहीं जाना॥ क्योंकि सामान्य जीवन जीने वाले जीव को वह नहीं करना॥ अध्यात्म पथ की साधनाओं में विशेष रूप से इन बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है॥
वर्तमान में सम्यक स्तर पर आप सब लोग साधना कर रहे हैं॥ इसके बाद समुन्नत के दो स्तर हैं॥ समुन्नत के काफी लोग कम किए, दूसरे स्तर पर पहला स्तर समुन्नत का जिसमें 44 साधक हैं पहले स्तर में लगभग 65 साधक हैं, दूसरे स्तर में 144-150 के बीच साधक हैं और तीसरा स्तर है स्थापक का॥ हालांकि इसके लिए समुन्नत के स्तर और भी है पर नहीं, एक साधक ऐसा भी सामने आ चुका है पिछली अवधि से जिसे अब हम स्थापक स्तर पर ले गए हैं वह एक ही है॥ अन्तिम चरण जागृत होगा॥ स्थापक स्तर पर एक साधक जा चुका है॥
सम्यक, समुन्नत दो स्तर, उसके सथापक फिर जागृत
अत: आप भी अपनी साधना के साथ, जिनकी साधना 150 दिन पूरी हो जाए और जो जाना चाहें वे समुन्नत ध्यान में जा सकते हैं॥ समुन्नत ध्यान में, इस बात का ध्यान रखना, प्रतिदिन एक ही प्रकार का ध्यान किया जाता है॥ इस प्रकार सम्यक की भाँति वहाँ परिवर्तन नहीं है, वहाँ परिवर्तन नहीं है॥ जिन्हें अभी एक ही ध्यान पर टिकने में कठिनाई हो सकती है उन्हें अभी सम्यक ध्यान पर ही रखा जाता है॥