ॐ भूर्भुवः स्वः - शब्द शक्ति से सूक्ष्म केंद्र स्पन्दित ; नाभी क्षेत्र ध्यान

ॐ भूर्भुवः स्वः - शब्द शक्ति से सूक्ष्म केंद्र स्पन्दित ; नाभी क्षेत्र ध्यान

इस विशेष ध्यान के सन्दर्भ में जो सबसे अन्त में हम करते हैं उस पर मैं पहले उल्लेख कर देता हूँ॥ हम हाथ रगड़ते हैं, ध्यान किसी भी प्रकार का हो, हाथों से बाहर भागती प्राण ऊर्जा को भीतर बटोर कर पुन: स्थापित करने का यह एक सबसे सुन्दर माध्यम है॥ प्राण ऊर्जा का सर्वाधिक स्खलन विचारों (जिसमें चिंतन आ गया) और वाणी के अतिरिक्त हाथों की उँगलियों से होता है, सबसे अधिक प्राण का क्षय होता है॥ जब हम हाथ रगड़ते हैं तो ध्यान के उन क्षणों की उपार्जित ऊर्जा को हाथों के माध्यम से सतह पर लाने का प्रयास करते हैं॥ वह गर्मी आप अनुभव भी करते होंगे॥ अत: उस क्षण हाथ रगड़ कर जब हम सबसे पहले सूँघते हैं तो सीधा मस्तिष्क में जाता है और फिर हम आँखों पर लगाते हैं, मुख पर मलते हैं॥ यह निरर्थक नहीं है, बहुत सार्थक है॥ जब नासिका से सूँघते हैं तो एक छोटा सा प्रयास करना चाहिए॥ सामान्यत: मैं कुम्भक के लिए, चाहे वह अन्त: हो या बाह्य हो, to retain the breath or to be without breath मैं इसके लिए बहुत सुझाव नहीं देता पर उस समय जब आप हाथ रगड़ें तब जितना भी सम्भव हो कुछ क्षणों का कुम्भक लगाएँ, यह भाव करते हुए कि समस्त ऊर्जा शरीर में लौट गई, पच गई॥ क्योंकि ध्यान के उपरान्त बहुत सघन मात्रा में ऊर्जा हाथों के द्वारा रगड़ कर हम सूँघते हैं॥ यह ऊर्जा का खेल खुली आँखों से भले दिखाई न दे पर अपने सूक्ष्म स्तर पर बहुत प्रभावी बहुत शक्तिशाली है॥ ऊर्जा यूँ भी चाहे वह सूक्ष्म ऊर्जा प्राण की हो या विद्युत electricity हो, दिखती कोई भी नहीं है, दिखते उनके अलग-अलग स्वरूप हैं जब किसी प्रयोग में आते हैं अन्यथा उन्हें सतत प्रत्यक्ष देख पाना बहुत कठिन है॥ तो यह मैंने मूलत: सबसे अन्त वाली क्रिया के विषय में कहा॥

इसी विशेष ध्यान पर जो नाभि कमल का ध्यान है, क्योंकि हम कुछ दिन इस पर रहने वाले हैं, इसी के अन्तर्गत जब मन्त्र का गुञ्जन होता है 'ॐ भूर्भुव: स्व:'॥ न मैं कुण्डलिनी के विषय में विशेष जानता, मैं अपनी बात के बीच में स्वयं हस्तक्षेप कर रहा हूँ, न मैं कुण्डलिनी के विषय में विशेष जानता न मैंने कभी उसकी साधना उस रूप में की, तो कुण्डली जागरण का तो प्रश्न ही नहीं उत्पन्न नहीं होता॥ पर एक बात मैं पूरी स्थापना से अवश्य कहना चाहता हूँ; ब्रह्म ऋषि के सन्दर्भ से कह सकता हूँ॥ इस पूरी पृथ्वी पर कोई सिद्धि ऐसी नहीं जो गायत्री से अछूती हो॥ जो कार्य किसी अन्य विधि, किसी मन्त्र, किसी से भी सम्भव है, वह गायत्री से भी सम्भव है, यह अकाट्य है॥ इसमें दक्षिण मार्गी और वाम मार्गी दोनों आ गए, सात्त्विक और तान्त्रिक दोनों आ गए॥ दोनों प्रकार के कार्य इस पूरी पृथ्वी पर किसी भी तरह की सिद्धि के लिए हों, वे गायत्री से सम्भव हैं यह बात अकाट्य हैं॥ अन्यथा यूँ ही इस वेद की ऋचा को महामन्त्र की कहने की आवश्यकता नहीं थी, गुरू मन्त्र कहने की आवश्यकता नहीं थी॥ यह इसीलिए कहा क्योंकि इससे सब सम्भव है, कुण्डलिनी ईत्यादि भी, केवल कुण्डलिनी ईत्यादि ही नहीं कुण्डलिनी ईत्यादि भी इससे सम्भव है॥

जो इसके सूक्ष्म मन्त्र हैं जिन्हें हम उच्चारित करते हैं उन्हें बहुत गम्भीरता से लेना॥ 'ॐ भूर्भुव: स्व:' इसके आवर्तन में repetition में और भी कुछ परिवर्तन हैं जो हमारे लिए आवश्यक नहीं हैं, हम नहीं कर रहे, पर जब 'ॐ भूर्भुव: स्व:' कहा जाए उस क्षण, अपनी नाभि से सीधा रीढ़ में जहाँ आप अवस्थित हैं, उस केन्द्र बिन्दु पर ध्यान केन्द्रित करो॥ मैं नाभि बार-बार बोलता हूँ क्योंकि अभ्यास न होने के कारण विचारों के द्वारा, कल्पनाओं के द्वारा, चिन्तन के द्वारा मन भटक सकता है॥ उसे पुन: लाकर के वहाँ स्थापित करने के लिए बार-बार कहा जाता है 'नाभि की सीध में', कि यदि आप कहीं भी भटक गए, तुरन्त नाभि पर आ जाओ॥ कहीं भी आप विचारों में भटक गए सीधा नाभि पर लौट आओ, 'नाभि से सीध में' लाना तो रीढ़ में है; नाभि तो उसका geographical location का refrence है॥ जब कहा जाता है मन्त्र का गुञ्जन होता है 'ॐ भूर्भुव: स्व:', 'ॐ के बाद भू:, भुव:, स्व:, ॐ के अतिरिक्त इन तीनों शब्दों में, तीनों विहातियां कहते हैं इन्हें, prefix इन तीनों विहातियों में जो एक penetrative बेधक गुञ्जन है वह बहुत जबर्दस्त है॥ अत: हम उस क्षेत्र को जाकर छेड़ते हैं, स्पन्दित करते हैं, क्या इससे चक्र जाग रहे हैं? नहीं, चक्र जागरण ईत्यादि न मैं जानता, न केवल इतने मात्र से होने वाला॥ पर यह सोचो कि चक्र जागरण से पहले क्या कुछ होता ही नहीं क्या?॥ साहब phd कर ली, M.Phil, M.A, B.A., 10th, 12th ये कक्षाएँ नहीं हैं क्या? हैं न? तो फिर सब सीधे Ph. D की बात करो? उससे पूर्व भी बहुत कुछ होता है॥ कितना कुछ? बहुत कुछ॥ उस 'बहुत कुछ' में से 'कुछ' पकड़ लो अभी॥ इस मन्त्र के 'ॐ भूर्भुव: स्व:' को अनुभव करो, अपना हाथ लो, उल्टा हाथ करो और मुँह से दो उँगली दूर रखो॥ अब केवल अनुभव करना ॐ भूर्भुव: स्व:, ॐ भूर्भुव: स्व:, ॐ भूर्भुव: स्व:, उच्चारण करते हुए अनुभव करना॥

धमक पड़ती है Thump, क्या है यह़? यह उस शब्द का स्थूल स्वरूप है gross impact of the word. है न? अब इसका सूक्ष्म प्रभाव कितना होगा? कल्पनाओं से परे होगा॥ कितना ? कल्पनाओं से परे beyond imagination. Sound शब्द जब परिवर्तित हो जाता है into its ultrasonic level. ultrasound कहते हैं न? ultrasound अर्थात वे सूक्ष्म ध्वनियाँ जो कानों को सुनाई नहीं देती॥ कितनी हैं ? अनगिनत infinite॥

तो शब्द की वह स्थूल ध्वनि जो उल्टे हाथ पर अनुभव की, उसकी सूक्ष्म ध्वनि जो अभी वहाँ हो रही है उसी सूक्ष्म ध्वनि को हम अपने नाभि की सीध में रीढ़ के उस केन्द्र में छोड़ रहे हैं, अभी छोड़ रहे हैं? अभी नहीं पूरा छोड़ रहे हैं, अभी 10% छोड़ रहे हैं॥ 10% कैसे नापा आपने? अनुमान से, इसे नापने के पीछे कोई वैज्ञानिक विधि? नहीं केवल अनुमान से, हम अभी 10% छोड़ रहे हैं॥ और बाकी 90%? शेष 90% तब होगा जब तुम मन्त्र के जप रूप में बिना बोले इसे वहीं जाकर छोड़ोगे॥ अभी बुदबुदा कर बोल रहा हूँ वैसे जप में आरम्भ में बुदबुदाते हैं बाद में नहीं॥ इससे क्या होगा? शब्द का स्थूल स्वरूप सारा का सारा interiorise अन्तर्मुखी होकर वहाँ जाकर धमक करेगा, स्पन्दित करेगा॥ इन मन्त्रों के, इसी शब्द के गुञ्जन से हम अपनी सूक्ष्म संरचना subtle constitution of our body, उनमें जाकर कुछ हस्तक्षेप करते हैं॥ हम अभी इतना ही कर रहे हैं, इससे आगे अभी हमारा क्षेत्र नहीं है॥

पर अभी हम इस पर ही रहेंगे स्थूल पर॥ क्यों? अभी हमें localise करने में भी कठिनाई है॥ इसमें हमने 'अर्द्ध पद्मासन' को भी जोड़ दिया॥ हाँ, अर्द्ध पद्मासन का भी बहुत बड़ा योगदान है॥ वह क्यों है? उसका कारण यह है क्योंकि हम पाचन क्षमता metabolism को लेकर चल रहे हैं॥ पाचन क्षमता को लेकर चलने में पद्मासन के द्वारा, पद्मासन के द्वारा, जितना भी नीचे टाँगों का रक्त है, वह सारा एकत्र करके lower abdomen जो पेट का निचला हिस्सा है, उसकी ओर धकेला जाता है॥ तब आप शरीर को उस समय न केवल ध्यान की दृष्टि से अपितु शरीर की स्थूल संरचना को हठ के माध्यम से भी आप उन अंगों को अधिक ऊर्जा दे रहे हो॥ केवल ध्यान के माध्यम से नहीं अपितु हठ के प्रयोग से भी रक्त के संचार से भी॥ धीरे-धीरे जब पूर्ण पद्मासन का अभ्यास जिन्हें होता है वे और भी अधिक कर पाते हैं॥ वह विषय आगे का है, अभी हम इन दोनों का संयोग कर रहे हैं॥ इसका अर्थ यह नहीं है कि जो अर्द्ध पद्मासन नहीं लगा पा रहा, अर्द्ध पद्मासन लगभग सब लगा लेंगे जिन्हें घुटनों की समस्या है वे सम्भवत: न लगा सकें॥ इसका अर्थ यह नहीं कि जो अर्द्ध पद्मासन नहीं लगा रहे उन्हें इसका लाभ नहीं है ऐसा नहीं है, ऐसा बिलकुल नहीं मानना॥ हाँ कुछ अन्तर थोड़ा सा रहेगा, पर उन्हें लाभ न मिले यह असम्भव है, लाभ मिलेगा अन्तर रहेगा॥ आज के लिए इतना ही, अभी हम इस ध्यान को आगे जारी रखेंगे जिससे आपके अनुभव और बढ़ें॥

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