Part - 31. आत्म तत्व की निकटता ज्ञान का अवतरण स्वतः कराती है ; व्यवस्थित चिन्तन विचारों की शक्ति का आधार

Part - 31. आत्म तत्व की निकटता ज्ञान का अवतरण स्वतः कराती है  ; व्यवस्थित चिन्तन विचारों की शक्ति का आधार

व्यवस्थित चिंतन विचारों की शक्ति का आधार है

कल का लेख आज प्रात: प्रकाशित हो गया है आप उसे भी पढ़ सकते हैं॥ उसी भाव को थोड़ा सा यौगिक दृष्टि से आगे ले जाना है॥ गहरे ध्यान की अन्तर्मुखी अवस्था में अपना स्वरूप जीवात्मा, जीवात्मा कहें अथवा परमात्मा कहें एक ही बात है; क्योंकि उसी में उसका प्रकाश है, उसकी अति निकटता प्राप्त होती है॥ हम उसके अति निकट होते हैं और गहरे बोध जागृत होना आरम्भ होते हैं॥ क्योंकि इस समय प्राण स्थिर होता है॥ प्राण रूपी ईंधन विद्युत के द्वारा जब कोई भी विचार उत्पन्न होगा, कोई भी कामना, कोई भी कल्पना, कोई भी स्मृति कुछ भी, you do anything in the computer, this computer या सामने का कम्प्यूटर, मूल में ऊर्जा कार्य कर रही है॥ डाउनलोड करो तो, अपलोड करो, सेव करो तो सर्फिंग करो तो कुछ भी करो तो ऊर्जा कार्य कर रही है॥ वह प्राण ऊर्जा अगर व्यवस्थित नहीं है तो भीतर प्रतिपल अस्थिरताएँ पैदा करती है॥ गहरे ध्यान में हम प्राण को स्थिर करने में अनेक अंशों में, पूरी तरह नहीं अनेक अंशों में सफल हो जाते हैं॥ जो प्राण इस प्रकार कम्पायमान है वह यदि एकदम से स्थिर नहीं तो कम से कम एक प्रकार से सन्तुलित wave बन जाती है॥ जिसके कारण भीतर का प्राय: प्राय: अदृश्य सूर्य या कभी छितराया सूर्य कुछ दिखना आरम्भ हो जाता है॥ ऐसा नहीं है कि भीतर कोई सूर्य आ जाता है, अभिप्राय है कि हम भीतर के उस सजगता रूप की निकटता में आ जाते हैं॥

Consciousness है क्या? मेरा अनुभव अध्ययन तो, ज्ञानियों के अपने-अपने शब्दों में कथन की पुष्टि करेगा॥ मेरा अनुभव सजगता का वस्तुत: एक ऐसे निर्लिप्त, 'निर्लिप्त', (मैं बार-बार दोहरा कर कह रहा हूँ), 'निर्लिप्त' जो चैतन्य के रूप में है वह सब अनुभव करता है, किन्तु प्रभावित किसी से नहीं है॥ वह अपना स्वभाव (मैंने शब्द ओढ़ा है स्वभाव, जबकि उसमें कोई स्वभाव नहीं है), वह अपना स्वभाव छोड़ता नहीं है, कौन? भीतर का शुद्ध चैतन्य, वह अपना स्वभाव नहीं छोड़ता॥ इसी को 'विवर्त उपादान' भी कहते हैं॥ अनुभव सब कुछ करेगा, कामनाओं को, विवादों को, खुशी को, उत्सव को सब कुछ everything जो कुछ भी है सब कुछ अनुभव करेगा, पर वह प्रभावित किसी से नहीं है, किसी से भी नहीं है, निर्लिप्त है॥ अपनी आभा सबको देगा पर प्रभावित नहीं होगा॥

तो फिर अज्ञानता किस कारण से है?
उसके आसपास मँडराने वाले आवरण के कारण है॥ दीपावली के अगले दिन , आजकल तो कम हो गया, सामान्यत: कितना धुआँ हो जाता था, सूर्य भी अक्षम हो जाता था दिखने में, क्या सूर्य कहीं गया़? क्या सूर्य प्रभावित हुआ? नहीं, बस दिख नहीं रहा॥ क्योंकि उसमें और हमारे बीच में आसापास का जो वातावरण है वह प्रभावित है॥ उसी प्रकार शुद्ध चैतन्य प्रभावित नहीं है उसके आसपास का जितना भी आवरण है वह प्रभावित है जिस कारण हमें अपना ही बोध नहीं हो पाता॥ यह सब अटपटा क्यों लगता है सुनने में ? लगेगा, इसमें आश्चर्य मत करो any science which is unknown, appears to be strange, initially. एक प्रयोग के विषय में मैंने बताया था न? पृथ्वी पर ही एक आदिवासी क्षेत्र में एक प्रयोग किया गया था॥ टैबलेट ipads ईत्यादि का प्रयोग किया गया था॥ इसके प्रयोग में उन्होंने आदिवासी क्षेत्र में पैराशूट से किसी माध्यम से गिराया॥ शोध हुआ है इस पर कि whether technology leap by human being, is it possible? Technology Leap अर्थात जहाँ अभी बिजली भी नहीं पहुँची, वहाँ सीधा टैबलेट पहुँच जाए या वहाँ कम्प्यूटर भी पहुँच जाए, उन्होंने कम्प्यूटर कियोस्क भी खोले थे, अब मुझे याद आ रहा है॥ बिजली तक नहीं हो जहाँ वहाँ कम्प्यूटर रख दिया जाए इंटरनेट कनेक्शन के साथ, कीबोर्ड है स्क्रीन है, बस तोड़ नहीं सकते, इस रूप में रख दिया कि उसे तोड़ नहीं पाओगे॥ तो क्या उस मनुष्य का मस्तिष्क इतना सबल सक्षम है कि बिजली तक नहीं देखी, बीच के विज्ञान के समूचे चमत्कार नहीं देखे, कुछ नहीं देखा, न transportation, communication, medical advancement, education कहीं कुछ नहीं, जहाँ तन ढकने के लिए केले के पत्ते तक की व्यवस्था नहीं लगभग ऐसी स्थिति, तो ऐसी अवस्था में क्या मनुष्य का मस्तिष्क जो अभी इतना भी सक्षम नहीं हुआ कि अभी परिष्कृत भाषा बोल सके, क्या वह कम्प्यूटर को उपयोग कर पाएगा?

और आश्चर्य यह है कि 4-5 महीने बाद अनुभव किया गया, (वहाँ कैमरे लगे थे जो बच्चों को बड़ों को observe करते थे), लोगों ने वहाँ वीडियो गेम खेलनी शुरु कर दी थी॥ किसने सिखाया ? nobody, मैने पूरी रिसर्च की वीडियो देखी है nobody taught them anything. Brain ने technology leap लिया, एक छलाँग ली॥ आरम्भ में उनके लिए बहुत अटपटा था, कि यह सब क्या है? क्या इसमें से कुछ खाने को निकलेगा? पहले असुरक्षा का भाव, कहीं कोई मारने तो नहीं आएगा इसमें से? नहीं मारने नहीं आएगा़? कुछ खाने को नहीं मिलेगा, नहीं वह भी नहीं॥ तो फिर क्या है? चलता है, संगीत सा निकलता है, उन्होंने संगीत भी उस रूप में नहीं सुना था॥ जो भी संगीत उन्होंने अब तक सुना, हाथों से बजाया, लाठी पत्थर से बजाया उनके लिए बस वही संगीत था॥ उसके अतिरिक्त उन्हें वाद्य रूप में संगीत भी सुनाई दे रहा था॥ वह उसको नहीं पचा पा रहे थे, comprehend नहीं कर पा रहे थे॥ यह सब क्या हो रहा है? पर धीरे-धीरे गेम खेलनी आरम्भ कर दी उन्होंने॥ तो विज्ञान में यह सिद्ध हो गया कि मनुष्य के मस्तिष्क में क्षमता है कि वह technological leap ले सकता है छलाँग लगा सकता है learning leap ले सकता है॥ वह आदिवासी क्षेत्र जहाँ अभी आग भी पत्थर रगड़ कर पैदा करते हैं वहाँ पर वह कुछ महीनों में कम्प्यूटर या टैबलेट पर गेम खेल सकता है॥ जितने बीच की अवधि के विज्ञान के आविष्कार हैं उनसे कोई परिचय नहीं, सीधा आधुनिक तकनीक पर छलाँग॥

यह उदाहरण इस प्रसंग से कैसे जुड़ता है? इसलिए जुड़ता है क्योंकि हम भी सामान्यत: जन्मों से एक प्रकार की उसी अवस्था में हैं जहाँ हमने अन्तर्जगत के विज्ञान का कोई दर्शन नहीं किया॥ अन्तर्जगत के विज्ञान का कोई भाव हम तक किसी स्वरूप में नहीं आया; कहीं से कहीं तक कुछ भी हमारे समक्ष नहीं आया॥ ऐसी अवस्था में जहाँ अन्तर्जगत का कोई भी उस स्तर का खेल हमारे समक्ष नहीं आया, एकाएक यह बात आए कि 'प्राण की स्थिरता होने से भीतर की चेतना, भीतर की जीवात्मा की निकटता प्राप्त होती है सर्वस्व का ज्ञान हो जाता है'; अन्तर्जगत का महागूगल सक्रिया हो जाता है आरम्भ में अटपटा लगना स्वाभाविक है॥ विचित्र प्रतीत होना स्वाभाविक है, बुद्धि का संशय करना स्वाभाविक है, मन का अरुचि पैदा कर देना स्वाभाविक है क्योंकि उसने वह सब कभी चखा नहीं कभी अनुभव नहीं किया॥ हं, कह देने से हो जाएगा क्या? पर सत्य यही है कि जीव जब अनुशासित मन के साथ अपने अन्तर्जगत में प्रवेश करता है तो जीवात्मा की आभा की निकटता में जाता है जहाँ समाधान के समस्त संसाधन पूर्ण रूपेण, पूर्ण रूपेण उपलब्ध हैं; शब्द संसाधन भी छोटा ही है, सब कुछ उपलब्ध है, हम कितना उसे हस्तगत कर पाएँ यह हमारी क्षमता है॥ यह हमारा प्राण है जो कितना स्थिर हो पाया॥ जितने अंशों में प्राण स्थिर होगा उतने अंशों में हम आगे जाएँगे॥ जितने अंशों में प्राण विकसित होगा, प्राण स्थिर होगा, केवल विकसित नहीं स्थिर भी हो॥ प्राण विकसित तो असुर भी कर लेते हैं स्थिर नहीं कर पाते, इसीलिए विघटन होता है॥ इसीलिए आवश्यकता है कि प्राण का वर्धन भी हो और प्राण की स्थिरता, उसका नियमन भी हो, प्राण को आयाम भी दिया जाए॥

साथ ही साथ आज का यह सत्संग आज के पर्व से भी जुड़ता है गोवर्द्धन॥ गो अर्थात प्राण, 'गो' अर्थात प्राण, गो अर्थात प्राण, 'वर्द्धन' अर्थात उसको विकसित करना उसको अर्जित करना, उसके भण्डार को बड़ा करना, प्राण के भण्डार को बड़ा करना गोवर्द्धन है॥ यह पर्वत उठाने के समान ही एक दुस्साहस एक प्रयास है जो साधना हेतु प्रेरित करता है॥

सदाशयता, सदाशयता रूपी राम जब अयोध्या में आएँ तो प्राण के वर्द्धन की व्यवस्था करनी पड़ेगी॥ बड़े बड़े काम करने हैं राम राज्य के॥

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