आदि शंकराचार्य जी द्वारा रचित शिवांनंद लेहरी श्लोक नंबर 26
हे पर्वत वासी आपको देखकर आपके दोनों दिव्य चरणों को अपने दोनों हाथों से पकड़कर (भाव करते चलना )सिर पर,आंखों पर, ह्रदय पर स्पर्श कराते हुए उनका आलिंगन कर खिले कमल के फुल की गंध को सूंघकर ब्रह्मा आदि को जो अप्राप्य उस आनंद को ह्रदय में आखिर कब अनुभव करूंगा?
महादेव के श्री चरणों में बार-बार भक्त अपना एक विनय प्रस्तुत करता है। भक्त कहता है मुझे सब कुछ इस स्वरूप में कब प्राप्त होगा? जब मैं इसे अपने इंद्रियों से अनुभव कर पाऊंगा। महादेव के समक्ष भक्त अपनी कामना प्रार्थना रूप उनके चरणों में रखते हुए व्यक्त हो रहा है। भक्त उस भाव अनुभूति में जा भी रहा है.। ऐसा प्रतीत होता है की यह केवल लिखा नही गया अपितु आदि शंकराचार्य स्वयं उस भाव में पूर्णतः डूब गए हैं।
आदि गुरु शंकराचार्य जी जैसे विभूति जब कुछ रचना करती है तो निश्चित जानना चाहिए कि उस अद्वेत के सूर्य ने भाव रूप उस भाव को पूर्णरूपेण अनुभव किया होगा। यही उस ब्रह्म और उसकी माया की लीला का संगम है। जहां एक तरफ निर्लिप्त ब्रह्म है, और वहीं दूसरी ओर उसकी माया है जो भाव आधारित भक्तों के लिए प्रस्तुत है। शिवानंद लागरी दोनों का एक संगम है, एक युग्म है। आदि शंकराचार्य जी जिनके माध्यम से हमें वेद उपनिषद विशेषकर, उपनिषदों का मर्म प्राप्त हुआ। श्रीमद भगवत गीता के प्रति समझ हेतु हमें भी बुद्धि प्राप्त हुई कि हम उन्हें समझ सके और उन आर्ष ग्रंथों की गुह्यता के रहस्य जान सके। आदिगुरु शंकराचार्य जी ..जिन्होंने माना कि ब्रह्म का कोई रूप नहीं है वह निराकार है और उन्हीं ने यह भक्ति पूर्ण रचनायें भी कि हैं। यह देव स्तुतियाँ भक्तों को उनकी सामान्य सोच की सीमा से आगे ले जाती हैं। भक्ति हेतु अपने भीतर सुनियोजित भाव सामग्री उपलब्ध कराना भी तो सहज नहीं है ! शिवानंद लहरी उसका एक अनूठा स्वरूप है। ट्रांसक्रिप्शन ; सुजाता केलकर