24 अक्षर 24 तरंगें और 24 ही सृष्टि के निर्माण एवं संचालन में जुटी शक्तियां। संख्या का महत्व चेतना विज्ञान के महान वैज्ञानिकों के अनुभूत शोध का ही परिणाम है। हम भले ही अपनी सुविधा की दृष्टि से कह डालें की यह महान खोज हमारा प्राचीन भारतीय विज्ञान है, पर सत्य तो यह है की जो सनातन है, शाश्वत है उसकी कोई आयु नहीं हो सकती। वह जैसा लाखों वर्ष पूर्व था वैसा ही आज भी उपस्थित सत्य है। आप अब तक बात समझ ही चुके होंगे की चर्चा गायत्री महामंत्र के प्रकाश में की गई है। गय कहते हैं प्राण को और त्रय अर्थात त्राण - रक्षा करना। जो प्राणों की रक्षा करे वह विधा - विज्ञान ही गायत्री है।
सृष्टि का प्रादुर्भाव अर्थात आरम्भ इन्हीं 24 तरंगों के माध्यम से हुआ। ऋषियों ने इसे अनुभव करते ही विचार किया की जन सामान्य को किस सत्य से अवगत कराया जाए। वहीं से विज्ञान का वास्तविक विस्तार आरम्भ हुआ।
ऐसे बहुत से अविष्कार आज इस वर्तमान युग में पदार्थ जगत में होते हैं जिनमे वैज्ञानिक अपनी खोज को करने के उपरान्त उसे सहेज कर विचार करते रहते हैं की अब इसे उपयोगी उत्पादन के स्वरूप में ढाल कर किस प्रकार जन सामान्य तक पहुँचाया जाए। यही भाव हमारे प्राचीन भारतीय मनीषा के वैज्ञानिकों के समक्ष भी अवश्य आया ही होगा। सृष्टि की 24 महान तरंगों को अनुभूत स्तर पर जानना और अनुभव करते हुए उनसे लाभान्वित होने की साधना तो हर किसी के बूते का कार्य कदापि नहीं है। यहीं से ऋषियों की अद्भुत मेधा ने अपना कार्य करना आरम्भ किया और २४ तरंगों को पहले २४ बोले भाषा के २४ अक्षरों में अवतरित किया और तदोपरांत उसे एक महा मन्त्र के रूप में गूँथना आरम्भ कर दिया। उन ऋषियों की मेधा का ही परिणाम था की दुर्लभ और दुर्गम सत्य बड़ी सुगमता के साथ मन्त्र रूप में जन सामान्य को हस्तगत हो पाया।
उन्हें इस बात का भली प्रकार पता था की इस महामंत्र की साधना साधक को उन सृष्टि की 24 कारक शक्तियों से जोड़ देगी जिससे सीमित सा कटा बंटा मनुष्य ससीम से असीम की यात्रा पर अग्रसर हो जाएगा। और यह सारी प्रक्रिया स्वतः ही साधक में होती चली जाएगी। कर्म बंधनो का क्षय और विवेक का जागरण यह दोनों क्रियाएं एक कल्याणकारी विध्वंस और सृजन की धारा रूप साधक में घटेगा।