पुराने सभी साधकों को इस बात का ज्ञान है कि sand satsang की श्रृंखला दो बार विशेष रूप से चैनल पर सीधे प्रसारण के रूप में आई॥ ईश्वर की प्रेरणा और अनुमति से लगभग 80 के आसपास महान ऋषियों सन्तों का क्षमता अनुसार उल्लेख करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ॥ उसके पीछे का मूल औचित्य, उद्देश्य क्या है? इसका पूर्व में भी एक सत्संग में मैंने उल्लेख किया था, पर आवश्यक है कि इन दिनों चल रहे वैचारिक प्रवाह में भी इसका उल्लेख किया जाए॥ मनुष्य, विशेष रूप से अध्यात्म पथ पर साधक जब अपने बूते अपने भीतर अपने आप से लड़ने में, जिसका कारण बाहरी परिस्थितियाँ भी हो सकती हैं, और उसके अपने भीतर की लिप्साएँ, कामनाएँ, अधूरापन, कुछ भी हो सकता है, विकार किसी स्वरूप में भी हो सकता है, चाहे विषमता बाहर की हो complexity हो चाहे वह कोई भीतर का विकार हो, उससे लड़ पाने में जब वह अपने आप अक्षम अपर्याप्त, incapicitated अनुभव करता है; आवश्यक नहीं कि ऐसी स्थिति में उसे बाहर से सँभालने वाला साथ ही खड़ा हो, आवश्यक नहीं॥ कई बार अपने मन की हम कह भी तो नहीं पाते॥ मनुष्य के मस्तिष्क में प्रकृति के वशीभूत गुण कर्म प्रेरित सृष्टि में और संस्कारों के वशीभूत बहुत सी ऐसी लिप्साएँ, कामनाएँ, वासनाएँ जागती हैं जिनका हम किसी अन्य से उल्लेख कर ही नहीं सकते॥ ऐसे में हम कई बार अपने आप को भी कचोटते हैं पर वह अधूरापन चलता है, मन बहुत खण्डित होता है॥ जिसे कहा न जाए किसी से और भीतर वह अनुभव करते हुए जीना पड़ता है किसे? साधक को॥
ऐसी अवस्था में अन्य ब्रह्म ऋषियों के जीवन परिचय का उल्लेख मनुष्य को सँभालने में मनुष्य को उठाने में, मनुष्य के भीतर के अधूरेपन के चलते हुए उस घटनाक्रम में बहुत बड़े आधार का जिसे कहते हैं handholding, उसका एक स्रोत बनता है साधन बनता है॥ उस समय जिस handholding की आवश्यकता होती है पकड़ कर, उठाकर आगे चलाने के लिए, वह प्राप्त होती है॥ संस्कार की जड़ें बहुत गहरी होती हैं, प्रकृति का प्रभाव है एकाएक नहीं जाएगा, धीरे-धीरे वह फीका होगा, shall become obliterated पर बहुत धीरे एकाएक नहीं होता॥ तप से तो जल्दी भी हो जाता है पर सामान्य जीवन जीते हुए एकाएक ये लिप्साएँ नहीं जाती हैं॥ ऐसे में व्यक्ति खण्डित हो तो ऐसे अधूरेपन में साधना भी पूरे मन से नहीं हो पाती॥
इन ब्रह्म ऋषियों के जीवन परिचय का उल्लेख एक ऐसी सकारात्मक ऊर्जा को मनुष्य तक प्रसारित करता है कि साधक भीतर सँभलने लगता है और यह सत्य है॥ जिस किसी ने ब्रह्म ऋषि का उल्लेख सुनते हुए हम उनके विषय में जानने लगते हैं, उनके चित्र भी देख पाए तो ठीक, नहीं भी देख पाए तो, उनके चरित्र को जब जानने लगते हैं, उनकी चेतना तो कभी नष्ट नहीं होती, उनकी ऊर्जा तो कभी नष्ट नहीं होती॥ चेतना तो किसी की भी नष्ट नहीं होती पर वे अपनी चेतन सत्ता को प्रकृति की सत्ता से ऊपर ले जाते हैं जहाँ वे अपनी अवस्था बनाए रख सकते हैं॥ सामान्य मनुष्य, हम जैसा तो जन्म मरण के चक्र में है पर वे, उनकी सत्ता मुक्त हैं॥ इसीलिए स्वतन्त्र स्वयम्भू अपने आप में अवस्थित, और उनके द्वारा छोड़ी गई ऊर्जा जो उन्होंने उस जीवन काल में छोड़ी अथवा उस समय भी जो वे प्रसारित कर रहे होंगे, भाव रूप वह सब भी मिलकर साधक को उस समय प्राप्त होता है जिस समय आप उनके जीवन परिचय का उनके सन्देश का, जीवन कैसा था, साधना कैसी थी, उनकी समस्याएँ कैसी थी, उनके श्रीवचन क्या थे, क्या कहना चाहते थे, उन महत्त्वपूर्ण वचनों का श्रवण करते हुए, उनकी चेतना उनकी ऊर्जा का एक अंश साधक में, आरोपित होने लगता है॥
ऐसे में उस खण्डित स्वरूप में when he is shattered उस समय वह आकर के सहेजता है, एकत्र करता है और हाथ पकड़ कर पुन: खड़ा करता है॥ यह sand satsang की सीरीज़ यूँ ही नहीं है इसकी पूरी playlist है यह यूँ ही नहीं है॥ इसके पीछे औचित्य यही है॥ केवल सूचित करना ब्रह्म ऋषियों के जीवन के विषय में, केवल इतना उल्लेख नहीं है, वह एक पक्ष है जो बौद्धिक स्तर पर मनुष्य को जानकारी स्वरूप प्राप्त होता है॥ पर आवश्यक नहीं सभी ऋषियों के नाम याद रहें, उन सबके जीवन परिचय सब पूर्ण स्मरण रहें आवश्यक नहीं है॥ उनसे प्राप्त ऊर्जा उस समय की ऊर्जा जो उस समय उन्होंने सहेजा साधक को, वह भीतर काम करता है अवस्थित रहता है स्थिर रहता है इसमें कोई सन्देह नहीं है॥ इस बात की पुष्टि देवरहा बाबा ने भी अपने किसी उद्बोधन में कही है॥ यही कहा कि साधक को सहेजने में महापुरुषों के उल्लेख बहुत सहायक हैं उसे उठा देते हैं॥ समय की नकारात्मकता, बाहर का घटाटोप अन्धकार जिसे देखकर मनुष्य समामन्यत: प्रेरित नहीं होता हतोत्साहित होता है॥ ऐसी स्थिति में इन महापुरुषों के जीवन का उल्लेख उसे सूक्ष्म धरातल पर खड़ा कर देता है, सहेज लेता है॥
इसीलिए इतने सन्तों का उल्लेख किया और आने वाले समय में भी होता है रहेगा निश्चित रूप से होगा॥ कहीं अचानक भी कोई किसी सन्त के जीवन परिचय पर ठिठक कर पहुँचा जाए, बिना सोचे, कुछ सर्च कर रहे थे॥ कर तो रहे थे यूँ ही कुछ निरुद्देश्य पर एकाएक किसी सन्त के जीवन परिचय की वीडियो सामने आ गई और उसने अपना कार्य करना आरम्भ कर दिया क्योंकि वह शक्तिशाली अस्तित्व है॥ सामान्य व्यक्ति का अस्तित्व किसी फिल्मी कलाकार के जीवन में होने वाले घटनाक्रम विवाह, उनके जीवन के अफेयर, उनके कपड़े, घूमना, ये बहुत आकर्षित करते हैं॥ मैं जैसे ही सामान्यत: ऑनलाइन गूगल न्यूज़ देखता हूँ, तो न चाहते हुए भी उनका बहुत उल्लेख दिखता है॥ क्यों? क्योंकि परोसा वही जाता है जो मन भाता है अन्यथा परोसने वाले परोसेंगे ही क्यों? क्योंकि बहुत बड़ी Audience है जो जानना चाहती है उनके जीवन में क्या हुआ, कहाँ गए, क्या-क्या हुआ इसीलिए उनके उल्लेख ईत्यादि होते हैं॥
उसी प्रकार मनुष्य विशेष रूप से साधक जब इन सन्तों के जीवन परिचय, वृत्तान्त के सम्पर्क में आता है तो अनजाने स्वरूप में उसकी सूक्ष्म संरचना में बहुत बड़ा परिवर्तन होने लगता है॥ उस तपस्वी की दिव्य ऊर्जा का एक संचार होने लगता है॥ उसके जीवन के तप का एक अंश उस साधक में भी प्रवाहित होता है॥ क्योंकि वह सूक्ष्म है इसलिए वह एक बूँद भी इतना काम करती है कि पूरे क्षेत्र को प्रभावित कर दे॥ वह थोड़ा सा भी पर्याप्त होता है॥ इसलिए जब कभी तुम्हें ऐसा लगे खण्डित स्वरूप मन कहीं नहीं लग रहा ध्यान में भी नहीं लग रहा, पूजा में अथवा माला उठाने का भी मन नहीं है, किसी सन्त के जीवन परिचय को , sand satsang के वीडियो कहीं से भी सुनना आरम्भ कर दो॥ सँभलना आरम्भ हो जाओगे क्योंकि तुम उस समय अब अकेले नहीं हो, अब तुम और तुम्हारे दिमाग का, तुम्हारे अन्त:करण का अधूरापन अकेला नहीं कोई साथ है सहेजने वाला, उँगली पकड़ ली किसी ने, कर के देखना कर के देखना॥ कम से कम इतना तो अवश्य है कि यदि किसी ने तन्मयता से देख लिया तो उस दिन ही नहीं आने वाले कुछ दिन भी सम्भव है कि वह अपने भीतर उस ब्रह्म ऋषि की चेतना में ही रमण करता रहे॥ बाद में तो जीवन की आपा-धापी अन्य विषय उसे विस्मृत करते हैं॥