विवेक चूडामणि सूक्ष्म परिचय

विवेक चूडामणि सूक्ष्म परिचय

आदि गुरु शंकराचार्य के प्रति हमारी संततियां सदैव ऋणी रहेंगी, वह नहीं रहे होते तो इस राष्ट्र को चार अकाट्य खूंटों में बांधने वाला आज तक कोई नहीं हुआ है। वह नहीं हुए होते तो महाभारत के एक लाख श्लोकों में श्री मद्भगवद गीता जी के 700 श्लोक दबे रह जाते। वह नहीं हुए होते तो वेदान्त की श्रेष्ठतम रचनाएँ हमे उपलब्ध नहीं हुई होती।  वह नहीं होते तो लुप्त होते हुए सनातन देव संस्कृति की शेष धरोहर भी आक्रांताओं का ग्रास बन जाती। सनातन देव संस्कृति के पुनरुथान की आशा कभी नहीं बन पाती।  वह नहीं हुए होते तो श्रुतियों के अनेक गुह्य तथ्य यां तो रहस्य अथवा किसी भ्रामक मर्म का शिकार बने रहते। अदि गुरु शंकराचार्य ब्रह्म की इच्छा के अनुरूप अवतरित हुए और छोटे से जीवन में इतना कर गए जिसकी तुलना सैंकड़ों लोगो के अनेक जन्मों से भी कहीं अधिक है। उन्हें नमन है, बारम्बार नमन है। 


विवेक चूडामणि की रचना उन्होंने सम्भवतः वेदान्त दर्शन को समझने हेतु किया जिससे श्रुति के विशेषकर अरण्यक भाग के साथ एक सामान्य मानस को जोड़ा जा सके। विवेक की व्याख्या करना सहज नहीं है, मोटे रूप से कह सकते हैं की धर्म, दायित्य्व, काल और परिवेश के अनुरूप जो निर्णय सामूहिक हित को ध्यान में रख कर लिया जाए वह भाव विवेक ही है। विवेक दूरदर्शी भाव है। विवेक संकीर्ण नहीं हो सकता। विवेक सदैव जीवन के परम् उद्देश्य के प्रकाश में ही निर्णय लेगा। आत्मनो मोक्षार्थ -जगत हिताय च उसके लिए एक प्रकाश स्तम्भ है। विवेक कल्याणकारी भाव है। विवेक ही की प्रार्थना हेतु गायत्री मन्त्र का मर्म समर्पित है। 


मणि कहते हैं किसी स्व प्रकाशित पदार्थ को... मणि के होने को न तो नाकारा जा सकता है और न ही इसे देखने वाले सामान्यतः सम्पर्क में ही आते हैं। फिर भी उपमा की दृष्टि से अगर मणि है जो स्व प्रकाशित है, तो विवेक भी एक मणि है जो इस स्तर पर स्व प्रकाशित है की उसके जागरण से जीव इस भव सागर से सहजता पूर्वक पार हो जाता है। 




और अगर अनेक मणियां हो तो उनमें से भी जो श्रेष्ठतम है वही चूडामणि है।  सभी मणियों में श्रेष्ठ चूडामणि। विवेक भी चूडामणि है।  इस भाव को ही यह शीर्षक स्थापित करते हुए आगे बढ़ता है।


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