आत्म विश्वास तब तब विकसित होता है जब जब मनुष्य अपने संकल्प के बूते अपने आप पर विजय प्राप्त करता है। छोटी छोटी आदतों से हारने वाले सहजता से आत्म विश्वास अर्जित नहीं कर पाते हैं। अपने आप को नियंत्रण में लाना एक अत्यंत कठिन कार्य होता है और इसमें किसी प्रकार का भी सन्देह नहीं है, पर साथ ही यह भी सत्य है की सभी प्रयास छोड़ कर निढाल होकर बैठ जाने वाला सदा कमजोर की भांति पीड़ित होता ही रहेगा।
तुम्हें भी अपने आप को सम्भाल कर, अपने आप को बटोर कर, अपने आप को झंझोड़ कर, अपने आप के साथ कड़ाई करते हुए यूँ ही कमजोरी की बली नहीं चढ़ने देना है। ईश्वर की शक्ति है की नहीं अगर उसका प्रत्यक्ष परीक्षण करना हो तो उसका सबसे बढ़िया समय और तरीका यह है की जिस समय तुम अपने आप से पूरी तरह हार चुके हो ऐसे समय में ईश्वर से शक्ति मांगो और फिर से खड़े हो कर प्रयास रत हो जाओ अपने भीतर वह सभी कुछ बदलने के लिए जो तुम बदलना चाहते हो।
ईश्वर दिखाई नहीं देंगे चूँकि शक्तियों के प्रभाव होते हैं, चेहरे नहीं हुआ करते। तुम्हे अपने भीतर एक शक्ति की लहर, एक झनझनाहट अनुभव होगी और फिर से संग्राम में योद्धा उतरेगा। तुम कितना जीत पाए इससे कहीं महत्वपूर्ण है की तुम कितनी बार अपने आप को बटोर कर फिर से आत्म निर्माण हेतु खड़ा कर पाए। राष्ट्रिय सलाहकार अजीत डोभाल एक साक्षात्कार में कहते हैं की मैं अनेको से कमजोर था पर सभी मुझ पर इसलिए भरोसा करते थे की मैं कभी हार नहीं मानता था। शरीर से उतना पुष्ट न होने पर भी उनके कोच उन्हें उनकी इसी विशेषता के कारण बहुत पसन्द करते थे।
इन बातों पर गंभीरता से मनन करना साधक।